उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं के संकट: सेना के जवान ने खोया बेटा, सिस्टम से हार गया
Rajkumar Dhiman, Dehradun: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति ने एक बार फिर मानवता को झकझोर कर रख दिया है। बागेश्वर जिले में एक फौजी पिता ने अपने मासूम बेटे को इलाज के अभाव में खो दिया। बताया जा रहा है कि बच्चे को लगातार पांच अस्पतालों में इधर से उधर भटकाया … The post सिस्टम से हारा सेना का जवान, गढ़वाल से कुमाऊं तक मासूम बेटे को नहीं मिला इलाज appeared first on Round The Watch.

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं के संकट: सेना के जवान ने खोया बेटा, सिस्टम से हार गया
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राजकुमार धीमान, देहरादून: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर स्थिति ने एक बार फिर समाज को झकझोर दिया है। बागेश्वर जिले के एक सेना के जवान ने अपने तीन वर्षीय बेटे को इलाज के अभाव में खो दिया। बताया जा रहा है कि बच्चे को पहले पांच विभिन्न अस्पतालों में भेजा गया, लेकिन कहीं भी उचित चिकित्सा नहीं मिल सकी। अन्ततः यह मासूम बच्चा दम तोड़ गया, जिससे परिवार का दुःख और गहरा गया।
घटनाक्रम का संक्षिप्त विवरण
चमोली जिले के रहने वाले सैनिक लक्ष्मण सिंह का बेटा शुभांशु अचानक बीमार हो गया। रविवार को जब बच्चे की तबीयत खराब हुई, तो उसे पहले जिला अस्पताल लाया गया, जहां से उसे हल्द्वानी रेफर कर दिया गया। लेकिन हल्द्वानी जाते समय किसी भी अस्पताल में बच्चे को सही चिकित्सा नहीं मिल पाई।
बच्चा बागेश्वर जिला अस्पताल, अल्मोड़ा बेस अस्पताल, पिथौरागढ़ जिला अस्पताल, रानीखेत कैंट अस्पताल, और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में गया, लेकिन सभी स्थानों पर या तो डॉक्टर अनुपस्थित थे या चिकित्सा व्यवस्था अधूरी थी। उपचार के अभाव में अंततः बच्चे की हालत बिगड़ गई और वह चल बसा।
परिवार की पीड़ा और आक्रोश
दुखी पिता लक्ष्मण सिंह ने कहा, “मैंने देश के लिए सर्वस्व अर्पित किया, लेकिन सिस्टम से हार गया। अस्पतालों में समय पर इलाज नहीं मिला और मैंने अपने बेटे को खो दिया। अगर किसी अस्पताल में समय पर इलाज मिल जाता, तो शायद मेरा बेटा आज जिंदा होता।” उनका यह बयान स्वास्थ्य सेवाओं की अत्यंत खराब स्थिति को उजागर करता है।
स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर गंभीर सवाल
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) ने इस घटना को अत्यंत दुःखद करार दिया है। उन्होंने कहा है कि मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं और स्वास्थ्य विभाग से रिपोर्ट मांगी गई है। जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इससे पहले से सक्रिय स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो पाएगा?
यह मामला न केवल एक परिवार की व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि इसके जरिए पूरे राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का संकेत मिलता है। दूरदराज के क्षेत्रों में चिकित्सकीय सुविधाएं न सिर्फ अदृश्य हैं, बल्कि स्वास्थयकर्मियों की भारी कमी और अस्तित्व में अस्पतालों की अपर्याप्त सुविधाएं आम जनजीवन के लिए खतरा बन चुकी हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता
इस घटना ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में एक व्यापक जागरूकता की आवश्यकता को दर्शाया है। जन जागरूकता और सरकार के सहयोग से ऐसी घटनाओं को भविष्य में टाला जा सकता है। स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों का यह कर्तव्य है कि वे लोगों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें और समय पर उचित कार्रवाई करें।
अंतिम शब्द
बागेश्वर में इस घटना के कारण स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति व्यापक विरोध देखने को मिल रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों ने तत्परता दिखाई होती, तो इस संवेदनशील मामले का परिणाम कुछ और हो सकता था।
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टिम हैकीकत क्या है - प्रियंका शर्मा
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