उत्तराखंड के मुख्य सचिव तलब, 2.5 साल से गंगा फ्लड प्लेन तय न करने पर सख्त हुआ एनजीटी
Rajkumar Dhiman, Dehradun: गंगा नदी के फ्लड प्लेन (बाढ़ क्षेत्र) के सीमांकन में लगातार टालमटोल और आदेशों की अनदेखी पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तराखंड सरकार पर रुख अपनाया है। एनजीटी ने राज्य के मुख्य सचिव को प्रतिवादी बनाते हुए जिम्मेदार अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए हैं और 08 सप्ताह में कार्रवाई … The post उत्तराखंड के मुख्य सचिव तलब, 2.5 साल से गंगा फ्लड प्लेन तय न करने पर सख्त हुआ एनजीटी appeared first on Round The Watch.
Rajkumar Dhiman, Dehradun: गंगा नदी के फ्लड प्लेन (बाढ़ क्षेत्र) के सीमांकन में लगातार टालमटोल और आदेशों की अनदेखी पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने उत्तराखंड सरकार पर रुख अपनाया है। एनजीटी ने राज्य के मुख्य सचिव को प्रतिवादी बनाते हुए जिम्मेदार अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के निर्देश दिए हैं और 08 सप्ताह में कार्रवाई की रिपोर्ट तलब की है।
नई दिल्ली स्थित एनजीटी की प्रधान पीठ ने हरिद्वार के कनखल स्थित बेलीराम आश्रम क्षेत्र में गंगा की फ्लड प्लेन में हुए निर्माण कार्य और उससे जुड़े प्रदूषण के मामले की सुनवाई करते हुए यह सख्त आदेश पारित किया। न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए सेंथिल वेल की पीठ ने स्पष्ट किया कि गंगा की फ्लड प्लेन का सीमांकन 1:100 वर्ष की अधिकतम बाढ़ सीमा को आधार बनाकर किया जाना कानूनन अनिवार्य है।
देश भर में 1 मीटर कंटूर, उत्तराखंड में अलग नियम
एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि गंगा पुनर्जीवन, संरक्षण एवं प्रबंधन प्राधिकरण आदेश-2016 के तहत गंगा और उसकी सहायक नदियों के अंतर्गत आने वाले अन्य राज्यों में फ्लड प्लेन का सीमांकन 1 मीटर कंटूर के आधार पर किया जा रहा है, जबकि उत्तराखंड में अब तक 10 मीटर कंटूर अपनाया गया, जिससे वास्तविक बाढ़ क्षेत्र संकुचित हो गया।
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH), रुड़की के वैज्ञानिक एके लोहानी ने ट्रिब्यूनल को बताया कि वर्ष 2016 में 1 मीटर कंटूर डेटा उपलब्ध नहीं था, लेकिन अब यह उपलब्ध है और अधिक सटीक है। उन्होंने कहा कि सभी आवश्यक आंकड़े मौजूद हैं और 1 मीटर कंटूर के आधार पर सीमांकन एक से दो महीने में पूरा किया जा सकता है।
06 महीने का भरोसा, फिर भी जमीनी काम शून्य
एनजीटी ने रिकॉर्ड पर लिया कि 18 अगस्त 2025 को उत्तराखंड सरकार ने ट्रिब्यूनल को बताया था कि छह माह में फ्लड प्लेन का सीमांकन पूरा कर लिया जाएगा। इसके बावजूद 13 नवंबर 2025 की सुनवाई में स्वीकार किया गया कि कोई प्रगति नहीं हुई। बाद में सिंचाई विभाग, हरिद्वार के अधिशासी अभियंता ओमजी गुप्ता ने फंड की कमी का हवाला दिया, जिस पर एनजीटी ने नाराजगी जताते हुए कहा कि पहले ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई थी।
एनजीटी के आदेश के विपरीत लिया गया फैसला
ट्रिब्यूनल ने यह भी पाया कि राज्य सरकार की बैठक के मिनट्स में पहले के आदेशों का हवाला देते हुए 1 मीटर कंटूर के बजाय 1 मीटर DEM (डिजिटल एलिवेशन मॉडल) से सीमांकन का निर्णय लिया गया, जो एनजीटी के निर्देशों से मेल नहीं खाता।
मुख्य सचिव को सीधे निर्देश
एनजीटी ने कहा कि मामला मार्च 2023 से लंबित है और अब तक 13 बार सुनवाई हो चुकी है, लेकिन जमीनी स्तर पर काम शुरू नहीं हुआ। इस पर ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया कि देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान कर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। फंड की कमी के कारण कार्य प्रभावित न हो, यह सुनिश्चित किया जाए और आठ सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल की जाए। मामले में अगली सुनवाई 23 फरवरी 2026 को होगी।
100 वर्ष की बाढ़ (1:100 Flood) क्या होती है?
इसका अर्थ यह नहीं कि बाढ़ 100 साल में एक बार ही आएगी, बल्कि इसका मतलब है कि किसी क्षेत्र में किसी विशेष स्तर की बाढ़ आने की प्रत्येक वर्ष 01 प्रतिशत आशंका रहती है। पर्यावरण कानूनों में फ्लड प्लेन तय करने के लिए इसी अधिकतम संभावित बाढ़ स्तर को आधार बनाया जाता है।
1 मीटर कंटूर क्या है और क्यों जरूरी है?
कंटूर रेखाएं जमीन की ऊंचाई दर्शाती हैं। 1 मीटर कंटूर हर एक मीटर ऊंचाई का सटीक डेटा दर्शाता है। 10 मीटर कंटूर बहुत मोटा और कम सटीक आकलन देता है। 1 मीटर कंटूर से नदी के फैलाव और बाढ़ क्षेत्र की सही तस्वीर मिलती है, जिससे अतिक्रमण रोका जा सकता है।
DEM बनाम कंटूर: विवाद क्या है?
DEM (Digital Elevation Model) कंप्यूटर आधारित मॉडल है। कंटूर मैप भौतिक ऊंचाई रेखाओं पर आधारित होता है। एनजीटी का स्पष्ट निर्देश है कि फ्लड प्लेन का सीमांकन 1 मीटर कंटूर के आधार पर किया जाए, न कि केवल DEM पर।
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