कोर्ट में नहीं टिकी विजिलेंस की कहानी, राज्य कर अधिकारी बरी; अब ट्रैप लीडर भानु प्रकाश आर्य पर उठे सवाल
कोर्ट में नहीं टिकी विजिलेंस की कहानी, राज्य कर अधिकारी बरी; अब ट्रैप लीडर भानु प्रकाश आर्य पर उठे सवाल

देहरादून/हल्द्वानी। उत्तराखंड सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। राज्य कर विभाग के एक अधिकारी उमेश सिंह बिष्ट की गिरफ्तारी से जुड़ा विजिलेंस का ट्रैप ऑपरेशन कोर्ट में विफल हो गया है। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में या विजिलेंस की कहानी में खामियां पाते हुए अधिकारी को बरी कर दिया है। इस फैसले ने विजिलेंस के ट्रैप अभियानों की वैधानिकता (Legality) और जांच के तरीकों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
कोर्ट में क्यों फेल हुआ विजिलेंस का केस?
बरी किए गए राज्य कर अधिकारी उमेश सिंह बिष्ट की ओर से कोर्ट में यह तर्क मजबूती से रखा गया कि विजिलेंस द्वारा किए गए ट्रैप ऑपरेशन में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों और जाँच की मानक प्रक्रिया (SOP) का कड़ाई से पालन नहीं किया गया। अक्सर ऐसे मामलों में पंचनामा बनाने, गवाहों के चयन या रासायनिक परीक्षण की प्रक्रिया में हुई खामियां अभियोजन पक्ष को कमजोर कर देती हैं।
संदेह के घेरे में ट्रैप लीडर इंस्पेक्टर भानु प्रकाश आर्य
विजिलेंस का यह विफल ऑपरेशन, जिसकी कहानी कोर्ट में टिक नहीं पाई, इंस्पेक्टर भानु प्रकाश आर्य के नेतृत्व में किया गया था। वह वर्तमान में भी विजिलेंस में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं। सूत्रों के अनुसार, यह आरोप है कि इंस्पेक्टर आर्य कई ट्रैप अभियानों में शामिल रहे हैं और उनमें से कई में भी प्रक्रियात्मक खामियां रही हैं।
मुख्य आरोप: उनके नेतृत्व में किए गए अधिकांश ट्रैप ऑपरेशनों में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया, जिससे सरकारी मुकदमे कमजोर पड़ रहे हैं।
विफल ट्रैप पर तय हो इंस्पेक्टर की जिम्मेदारी और दंड
किसी ट्रैप ऑपरेशन के कोर्ट में विफल होने और आरोपी के बरी होने की स्थिति में, ट्रैप लीडर (जांच अधिकारी/इंस्पेक्टर) की जिम्मेदारी तय करना अनिवार्य है।
इस मामले में, सरकार और विजिलेंस महानिदेशालय से यह मांग उठ रही है कि इंस्पेक्टर भानु प्रकाश आर्य के नेतृत्व में हुए सभी विफल या संदेहास्पद ट्रैप की उच्च-स्तरीय समीक्षा की जाए।
निदेशक विजिलेंस और सीएम धामी की जवाबदेही?
क्या निदेशक विजिलेंस (वी. मुरुगेशन) जिम्मेदारी लेंगे?
निदेशक विजिलेंस पर अब नैतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारी है। उन्हें विभाग के मुखिया के तौर पर इस ट्रैप की विफलता के कारणों की गहन समीक्षा करानी चाहिए। अगर इंस्पेक्टर की ओर से जानबूझकर प्रक्रिया का उल्लंघन किया गया है, तो उन पर कार्रवाई के साथ ही विजिलेंस के आंतरिक नियंत्रण और प्रशिक्षण प्रणाली में सुधार करना आवश्यक है।
सीएम धामी का न्याय (CM Dhami Justice):
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार 'भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड' का संकल्प दोहराती रही है। यह मामला सीएम के 'जीरो टॉलरेंस' नीति की असली परीक्षा है। जनता यह देखना चाहती है कि:
क्या सीएम धामी दोषपूर्ण तरीके से फंसाए गए अधिकारी को न्याय सुनिश्चित करेंगे?
क्या वह दोषपूर्ण ट्रैप करने वाले इंस्पेक्टर और उनके पर्यवेक्षकों पर कार्रवाई करेंगे?
अगर ट्रैप विफल होते रहे और प्रक्रियाओं का उल्लंघन होता रहा, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की लड़ाई कमजोर होगी। अब गेंद मुख्यमंत्री और विजिलेंस निदेशालय के पाले में है कि वे प्रक्रिया की शुचिता और निष्पक्ष न्याय के पक्ष में क्या कार्रवाई करते हैं।
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