मोबाइल या दोस्त, जिंदगी में कौन ज्यादा अपना : उर्वशी दत्त बाली

विकास अग्रवाल काशीपुर (महानाद) : डी-बाली ग्रुप की डायरेक्टर एवं समाजसेवी उर्वशी दत्त बाली जिंदगी के प्रति बहुत संजीदा है। उनकी नजर में मोबाइल संचार क्रांति तो लाया है मगर उसने हमारी जिंदगी के रंगों को भी छीना है। अभी भी समय है यदि हमने सावधानी न बरती तो मोबाइल हमें बहुत कुछ देगा मगर […]

Dec 14, 2025 - 00:39
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मोबाइल या दोस्त, जिंदगी में कौन ज्यादा अपना : उर्वशी दत्त बाली

विकास अग्रवाल
काशीपुर (महानाद) : डी-बाली ग्रुप की डायरेक्टर एवं समाजसेवी उर्वशी दत्त बाली जिंदगी के प्रति बहुत संजीदा है। उनकी नजर में मोबाइल संचार क्रांति तो लाया है मगर उसने हमारी जिंदगी के रंगों को भी छीना है। अभी भी समय है यदि हमने सावधानी न बरती तो मोबाइल हमें बहुत कुछ देगा मगर सब कुछ छीन भी लेगा। मोबाइल ने भौतिक दूरियों को तो घटाया है मगर दिलों की दूरियां इतनी बढ़ा दी है कि पास पास बैठे लोगों में भी संवाद नहीं क्योंकि मोबाइल से पीछा छूटे तो समय निकले। हमें समझना होगा कि मोबाइल हमारे लिए है ना कि हम मोबाइल के लिए।

उर्वशी बाली कहती है कि मोबाइल वाली जिंदगी में से बहुत कुछ निकल गया है और आज स्थिति यह है कि हमें अपनों से ही बात करने का समय नहीं है। वह कहती हैं कि जैसे-जैसे वह समाज में बाहर निकलती हैं, लोगों के व्यवहार को करीब से महसूस करती हैं। देखने को मिलता है कि मिलने का तरीका बदल गया है, रिश्तों और दोस्तियों में वह गर्मजोशी, वह खिंचाव अब दिखाई नहीं देता। लगता है जैसे प्यार कहीं खो सा गया हो। अब लोग उतना ही बोलते हैं, उतना ही मिलते हैं, जितना एक फोटो या वीडियो रील बनाने के लिए जरूरी होकृताकि सोशल मीडिया पर अपलोड कर यह दिखाया जा सके कि हमारी जिंदगी बहुत व्यस्त है, हमारे बहुत दोस्त हैं। हकीकत में यह दोस्ती नहीं, सिर्फ दिखावा बनकर रह गई है एक झूठी सी दुनिया, जिसमें प्यार नहीं बल्कि प्रदर्शन है।

आजकल सच्चे दोस्त मिलना आसान नहीं रहा। जरा सोचिए आपके कितने करीबी दोस्त हैं? दो, तीन या चार? हालिया अध्ययनों के अनुसार, अधिकांश लोगों के पास मुश्किल से चार ही करीबी दोस्त बचे हैं। उम्र बढ़ने के साथ दोस्त कम होते जाते हैं, जबकि सच तो यह है कि इस उम्र में हमें और मिलना चाहिए, नए दोस्त बनाने चाहिए। हमें अच्छा पहनना चाहिए, हल्का-सा सलीकेदार मेकअप करना चाहिए, खुद को तरोताज़ा रखना चाहिए। लेकिन अक्सर होता इसके उलट हैकृजैसे-जैसे इंसान बड़ा होता है, ये शौक धीरे-धीरे खत्म कर देता है, अपनी ही जिंदगी को बोरिंग बना लेता है और वही पुराने कपड़े, वही पुरानी आदतें दोहराने लगता है।

एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि लगभग 80 प्रतिशत लोग अपनी जिंदगी में 8 से 10 ऐसे दोस्तों को खो चुके होते हैं, जिन्हें वे कभी बेहद करीब मानते थे। दोस्त बनाना आसान नहीं होताकृइसमें समय, मेहनत और ऊर्जा लगती है। और ये तीनों चीजें पैसों से कहीं ज्यादा कीमती होती हैं।

डिजिटल दुनिया ने हमारी निजी मुलाकातों को सीमित कर दिया है। मोबाइल ने हमारी जिंदगी को आसान तो बनाया है, लेकिन अकेलेपन और डिप्रेशन का एक बड़ा कारण भी बन गया है। हम स्क्रीन पर जुड़े तो हैं, पर दिलों से दूर होते जा रहे हैं। आज जरूरत इस बात की है कि हम फोन से थोड़ी दूरी बनाएं और अपनों के करीब आएं।

रिश्तों और दोस्ती को समय देना जरूरी है, क्योंकि जिंदगी मोबाइल के लिए नहीं बनी मोबाइल हमारी सुविधा के लिए है। असली खुशी इंसानों से, रिश्तों से और उन पलों से मिलती है जो हमें सच्चा रंग और नई ऊर्जा देते हैं।
क्योंकि आखिर में, यादें फोन में नहीं, दिल में बसती हैं।

-लेखिका उर्वशी बाली काशीपुर के मेयर दीपक बाली की धर्मपत्नी हैं।

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