उत्तराखंड हाईकोर्ट में कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सख्त सुनवाई, दून घाटी अधिसूचना 1989 को निष्क्रिय करने पर विचार
नैनीताल : दून घाटी की अधिसूचना 1989 को निष्क्रिय किए जाने के खिलाफ दायर जनहित The post कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई, दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के मामले में हाईकोर्ट सख्त first appeared on radhaswaminews.

उत्तराखंड हाईकोर्ट में कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सख्त सुनवाई, दून घाटी अधिसूचना 1989 को निष्क्रिय करने पर विचार
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नैनीताल: दून घाटी की अधिसूचना 1989 को निष्क्रिय किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर आज उत्तराखंड हाईकोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। इस याचिका को कांग्रेस प्रवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने दायर किया था। उनके प्रयासों ने हाईकोर्ट को केंद्र सरकार से स्पष्ट उत्तर मांगने के लिए प्रेरित किया है।
संक्षिप्त संदर्भ
याचिका में वर्णित किया गया है कि केंद्र सरकार का पर्यावरण मंत्रालय 13 मई 2025 को एक शासनादेश जारी कर चुका है, जिसके जरिए 1989 की अधिसूचना को निष्क्रिय किया गया। इससे दून घाटी में औद्योगिक गतिविधियों का विस्तार होने की संभावना बढ़ गई है, जिसमें स्लॉटर हाउस, क्रशर माइनिंग और अन्य प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयां शामिल हैं। इस निर्णय को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के खिलाफ बताते हुए थापर ने चिंता जताई है कि इससे देहरादून जैसे शहरों की वायु गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
अदालत का निर्देश
हाईकोर्ट की खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र और न्यायाधीश आलोक माहरा ने स्पष्ट उल्लेख किया कि दून घाटी से संबंधित सभी कार्यों को सुप्रीम कोर्ट के 30 अगस्त 1988 के निर्देशों के अनुरूप ही किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिजय नेगी ने अदालत को अवगत कराया कि 1989 की अधिसूचना के निलंबन से विपरीत परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
पर्यावरणीय संकट की चेतावनी
याचिका में यह भी कहा गया कि दून घाटी की अधिसूचना का मुख्य उद्देश्य मसूरी, डोईवाला, सहसपुर, ऋषिकेश और विकासनगर जैसे क्षेत्रों को अवैध खनन और प्रदूषण से सुरक्षित रखना था। लेकिन अब अधिसूचना को निष्क्रिय करके इन क्षेत्रों को रेड जोन कैटेगरी के औद्योगिकीकरण के लिए खोला जा रहा है, जो कि गम्भीर पर्यावरणीय संकट को आमंत्रित कर सकता है।
याचिकाकर्ता का दृष्टिकोण
अभिनव थापर ने कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को इस मुद्दे पर दो बार ज्ञापन प्रस्तुत किया, परंतु पर्यावरण मंत्रालय ने उत्तराखंड वन विभाग से रिपोर्ट मांगने के बाद भी शासनादेश जारी किया। उनका मानना है कि यह सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड के 15 लाख निवासियों की जिंदगी और उसकी पारिस्थितिकी से संबंधित मामला है।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया है कि वे पर्यावरण मंत्रालय को अधिसूचना के निष्क्रिय होने के कारण हुए नुकसान के प्रमाण प्रदान करें। इस मामले की अगली सुनवाई 27 जून को होगी, जिस दिन इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण निर्णय की संभावना है।
निष्कर्ष
दून घाटी की अधिसूचना को निष्क्रिय करने का निर्णय अत्यंत गंभीर है। यह न केवल स्थानीय निवासियों के जीवन को प्रभावित कर सकता है, बल्कि यह उत्तराखंड की समग्र पर्यावरणीय स्थिति को भी खतरे में डाल सकता है। अब सभी की दृष्टि अगली सुनवाई पर है, जहां इस मामले का समाधान खोजा जाएगा।
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