देहरादून घाटी में केदारनाथ-धराली जैसी आपदाओं के प्रति सरकार की चिंताएं: धस्माना की चेतावनी
1989 के दून घाटी अधिसूचना को खत्म कर उद्योगपतियों के लिए खोला गया रास्ता, एनजीटी The post देहरादून घाटी में केदारनाथ-धराली जैसी आपदाओं की तैयारी कर रही है सरकार: धस्माना first appeared on radhaswaminews.

देहरादून घाटी में केदारनाथ-धराली जैसी आपदाओं के प्रति सरकार की चिंताएं: धस्माना की चेतावनी
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लेखिका: साक्षी मिश्रा, प्रिया शर्मा, और नंदिनी राठी
टीम हक़ीक़त क्या है
परिचय
कम शब्दों में कहें तो, देहरादून घाटी में हालिया घटनाक्रम ने पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। राज्य सरकार द्वारा 1989 के दून घाटी अधिसूचना को समाप्त किए जाने के बाद कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना ने चेतावनी दी है कि यह कदम देहरादून को केदारनाथ और धराली जैसी आपदाओं की ओर ले जा सकता है। हकीकत क्या है पर अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें।
दून घाटी अधिसूचना का रद्द होना
1989 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर दी गई दून घाटी अधिसूचना, इस क्षेत्र की पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करती थी। अब, राज्य सरकार ने इसे खत्म कर प्रदूषणकारी उद्योगों को स्थापित करने का रास्ता खोल दिया है। इससे स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
विरोध की आवाज़
धस्माना ने इस निर्णय को खतरनाक बताते हुए कहा है कि यदि सरकार ने इस नीति पर पुनर्विचार नहीं किया, तो प्रदेश की पारिस्थितिकी एवं जलवायु में विकट परिवर्तन आ सकते हैं। उन्होंने कहा, "यह एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि देहरादून की आत्मा को बचाने का आंदोलन है।" इस मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सरकार को नोटिस जारी किया है, जिससे व्यापक विधिक पहलुओं की ओर ध्यान खींचा गया है।
जीवंतता की चुनौती
देहरादून घाटी भूकंप संभावित क्षेत्र के अंतर्गत आती है और यह प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है। धस्माना ने चेताया है कि यदि सरकार ने अधिसूचना को वापस नहीं लिया, तो आने वाली पीढ़ियों को इसके भयानक परिणाम भोगने पड़ सकते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए अभी से कदम उठाने की आवश्यकता है।
सरकार का दृष्टिकोण
सरकार का यह कदम विकास के नाम पर उठाया गया एक प्रयास है, लेकिन उसके सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों पर उचित विचार नहीं किया गया है। यह नीति स्पष्ट रूप से मानवता के भले के खिलाफ कुछ उद्योगपतियों के लाभ-हानि के संदर्भ में देखी जा रही है। इससे सभी बुनियादी विकास को खतरा पैदा हो सकता है।
निष्कर्ष
दमदारी और चिंता के बीच संतुलन बनाने के लिए धस्माना का यह आंदोलन न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देवभूमि के नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि यदि यह अधिसूचना वापस नहीं ली जाती है, तो भविष्य में यह क्षेत्र गंभीर संकट का सामना कर सकता है। अब देहरादून की जनता को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने की आवश्यकता है, और यह लड़ाई केवल प्रदूषण के खिलाफ नहीं, बल्कि क्षेत्र की समग्र सुरक्षा के लिए है।
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