मसूरी वन प्रभाग में सीमा स्तंभों का गायब होना: केंद्र सरकार ने उत्तराखंड से मांगी रिपोर्ट

Rajkumar Dhiman, Dehradun: मसूरी वन प्रभाग में 7375 सीमा स्तंभों (बाउंड्री पिलर) के मौके से गायब होने और वन भूमि पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण के मामले ने अब केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित कर लिया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उत्तराखंड शासन से तत्काल विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी है और दोषियों … The post मसूरी वन प्रभाग के अदृश्य पिलर केंद्र सरकार को दिखे, उत्तराखंड से मांगा जवाब appeared first on Round The Watch.

Sep 9, 2025 - 09:39
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मसूरी वन प्रभाग में सीमा स्तंभों का गायब होना: केंद्र सरकार ने उत्तराखंड से मांगी रिपोर्ट
मसूरी वन प्रभाग में सीमा स्तंभों का गायब होना: केंद्र सरकार ने उत्तराखंड से मांगी रिपोर्ट

मसूरी वन प्रभाग में सीमा स्तंभों का गायब होना: केंद्र सरकार ने उत्तराखंड से मांगी रिपोर्ट

राजकुमार धीमान, देहरादून: मसूरी वन प्रभाग में 7375 सीमा स्तंभों (बाउंड्री पिलर) के मौके से गायब होने का मामला अब केंद्र सरकार के ध्यान में आ चुका है। इस गंभीर मुद्दे के चलते पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उत्तराखंड शासन से तात्कालिक विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी है। मंत्रालय ने साथ ही दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। यह एक संकेत है कि सरकार अब वन संरक्षण के प्रति अपनी गंभीरता को दर्शा रही है।

मंत्रालय की सहायक महानिरीक्षक वन (केंद्रीय), नीलिमा शाह ने प्रमुख सचिव (वन), उत्तराखंड को एक पत्र लिखकर स्पष्ट किया है कि इस मामले में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 की धारा-2 का उल्लंघन हो सकता है। इसके साथ ही, धारा 3-ए के अंतर्गत कानूनी कार्रवाई करने की बात भी कही गई है, जिससे यह मामला और गंभीर हो गया है। Uttarakhand Forest Department

यह मामला तब उजागर हुआ जब तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (कार्ययोजना) हल्द्वानी, संजीव चतुर्वेदी द्वारा 22 अगस्त को केंद्र को एक पत्र भेजा गया था। इस पत्र में मसूरी वन प्रभाग की पुनरीक्षणाधीन कार्य योजना के दौरान कई गंभीर खुलासे किए गए। उसमें कहा गया है कि 7375 सीमा स्तंभ ऐसे हैं जो मानचित्र में दर्ज हैं, लेकिन मौके पर उनकी उपस्थिति नहीं है। इसके अतिरिक्त, वन भूमि पर बड़े पैमाने पर अवैध अतिक्रमण की शिकायतें भी सामने आई हैं।

केंद्र का सख्त रुख: पारदर्शी कार्रवाई के निर्देश

केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय, पारदर्शी और त्वरित जांच करने के लिए निर्देश दिया है। इसके साथ ही, भारतीय वन अधिनियम, 1927 और वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 1980 के उल्लंघन पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया है। यह निर्देश इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार अब इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है और दोषियों के खिलाफ कदम उठाने के लिए तैयार है।

मुख्य वन संरक्षक का सवाल: दोबारा जांच क्यों?

इस संवेदनशील मामले में, मुख्य वन संरक्षक (कार्य योजना) संजीव चतुर्वेदी ने वन विभाग की ओर से दोबारा जांच आदेश पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। उन्होंने प्रमुख वन संरक्षक को पत्र लिखकर वन संरक्षक शिवालिक वृत्त, राजीव धीमान को जांच अधिकारी नियुक्त करने के आदेश रद्द करने की मांग की है।

आईएफएस चतुर्वेदी का कहना है कि इस मामले पर पहले ही राज्य स्तरीय स्थायी परामर्शदात्री समिति द्वारा उच्च-स्तरीय अनुमोदन दिया जा चुका है। ऐसे में, कनिष्ठ स्तर के अधिकारी से पुनः जांच कराना न केवल स्थापित प्रशासनिक परंपराओं के विरुद्ध है, बल्कि इससे गंभीर भ्रांतियाँ, विवाद एवं अव्यवस्था भी उत्पन्न हो सकती हैं।

वन भूमि संरक्षण पर गंभीर सवाल

मसूरी वन प्रभाग लंबे समय से अतिक्रमण, सीमा निर्धारण की गड़बड़ियों और वन भूमि संरक्षण से जुड़े विवादों का केंद्र बना हुआ है। गायब सीमा स्तंभों के कारण वन क्षेत्र की सटीक परिभाषा धुंधली हो रही है, जिससे अवैध कब्जों का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। यह स्थिति न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि स्थानीय वन्य जीवों और पारिस्थितिकी को भी खतरे में डाल रही है। इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।

कम शब्दों में कहें तो, मसूरी वन प्रभाग का यह विवाद न केवल वन संरक्षण के लिए एक चुनौती है, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए भी यह एक संकेत है कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। यह केंद्र सरकार द्वारा उठाया गया कदम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

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