उत्तराखंड वन विभाग में भ्रष्टाचार का भयानक खेल, मंत्री जी का दामाद अब तक बचा

Rajkumar Dhiman, Dehradun: उत्तराखंड वन विभाग के जंगलराज में भ्रष्टाचार का जानवर खूब फल फूल रहा है। भ्रष्ट अधिकारियों के कारनामे तो चौंकाने वाले हैं ही, पूरा सिस्टम भी उन्हें बचाने में लगा रहता है। नरेंद्रनगर वन प्रभाग में हुए घपले घोटालों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने के लिए … The post जंगलों में सुलगी भ्रष्टाचार की आग, पूर्व में मुख्यमंत्री ने बचाया, अब तक मंत्री जी का दामाद बेदाग appeared first on Round The Watch.

Jul 30, 2025 - 00:39
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उत्तराखंड वन विभाग में भ्रष्टाचार का भयानक खेल, मंत्री जी का दामाद अब तक बचा
जंगलों में सुलगी भ्रष्टाचार की आग, पूर्व में मुख्यमंत्री ने बचाया, अब तक मंत्री जी का दामाद बेदाग

उत्तराखंड वन विभाग में भ्रष्टाचार का भयानक खेल, मंत्री जी का दामाद अब तक बचा

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राजकुमार धीमान, देहरादून: उत्तराखंड के वन विभाग में जारी भ्रष्टाचार का सिलसिला एक बार फिर से सुर्खियों में है। हाल ही में नरेंद्रनगर वन प्रभाग में हुई अनियमितताओं ने यह साबित कर दिया है कि कैसे भ्रष्ट अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं का एक तंत्र उन्हें बचाने में जुटा रहता है। इस मामले ने न केवल वन विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है, बल्कि यह भी दर्शाया है कि किस प्रकार उच्च पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार को संरक्षण देते हैं।

भ्रष्टाचार का विनाशकारी सफर

उत्तराखंड में भ्रष्टाचार कोई नई समस्या नहीं है। हाल के वर्षों में नरेंद्रनगर वन प्रभाग में करोड़ों रुपये के गबन और वित्तीय अनियमितताओं का मामला सामने आया है। सरकार द्वारा उच्च स्तर पर की गई जांचों के बाद भी, आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है। यह स्थिति यह दिखाती है कि कैसे कोई भी ठोस परिणाम बिना राजनीतिक इच्छाशक्ति के संभव नहीं है।

राजनीतिक संरक्षण की परतें

भ्रष्टाचार की इस कथा में राजनीतिक संरक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उदाहरण के लिए, एक पूर्व मुख्यमंत्री के संरक्षण में काम कर रहे अधिकारियों को अखबारों में सकारात्मक कवरेज मिलता रहा है। जब जांच शुरू होती है, तो गहन साक्ष्यों के बावजूद कई दफे डीएफओ को “अनुभवहीन” करार देकर छोड़ दिया जाता है। यह सवाल उठता है कि क्या जांच प्रणाली वास्तव में स्वतंत्र और निष्पक्ष है।

भ्रष्टाचार की सूची में कई बड़े मामले

  • बग्वासेरा में पुलिया का निर्माण केवल कागजों पर था, जबकि जमीन पर कोई कार्य नहीं हुआ।
  • गजा-शिवपुरी सड़क के लिए प्रस्तावित निर्माण में कोई भी वास्तविकता नहीं थी।
  • ढालवाला में हाथी सुरक्षा दीवार का निर्माण बिना टेंडर के किया गया, जो नियमों के खिलाफ है।
  • वन आरक्षियों की भर्ती में भी व्यापक फर्जीवाड़े सामने आए हैं।

भ्रष्टाचार की रिपोर्टों पर कार्रवाई की कमी

कई उच्च अधिकारियों द्वारा की गई जांचों के बावजूद, शासन की तरफ से डीएफओ का बचाव होता रहा है। जिलाधिकारी और प्रमुख सचिव की रिपोर्टों ने डीएफओ को गुनहगार ठहराया है, लेकिन उन्हें केवल "भविष्य में सावधानी बरतने" की सलाह देकर छोड़ दिया गया। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई की जा रही है या केवल दिखावे के लिए।

वर्तमान सरकार की सक्रियता

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जीरो टॉलरेंस नीति ने इस बार निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद जगाई है। हाल ही में शासन ने डीएफओ से स्पष्टीकरण मांगा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में शासन किस प्रकार की कार्रवाई करता है।

निष्कर्ष

नैतिकता और पारदर्शिता की कमी ने उत्तराखंड में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। यह मामला केवल वन विभाग का नहीं बल्कि समूचे प्रशासनिक तंत्र के लिए एक चेतावनी है। यदि सुधार की दिशा में कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में ऐसे मामले सामने आते रहेंगे। नागरिकों को अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस प्रकार की अनियमितताओं पर नजर रखनी चाहिए और अपनी आवाज उठाने में पीछे नहीं हटना चाहिए।

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टीम Haqiqat Kya Hai, द्वारा साक्षी शर्मा

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