Malharrao Holkar Death Anniversary: मालवा के प्रथम मराठा सूबेदार थे मल्हारराव होलकर, ऐसे गढ़ी थी अपनी किस्मत

मल्हारराव होल्कर एक ऐसे इंसान का नाम है, जिसने अपनी किस्मत खुद गढ़ी थी। आज ही के दिन यानी की 20 मई को मल्हारराव होल्कर का निधन हो गया था। चरवाहा परिवार में जन्म लेने के बाद भी उन्होंने इंदौर जैसे राज्य पर शासन किया। इसके साथ ही मराठा साम्राज्य को महाराष्ट्र के बाहर स्थापित किया और गैर सैनिक परिवार के होकर भी सैन्य कौशल की मिसाल स्थापित की। तो आइए जानते हैं मराठी योद्धाओं में अग्रणी नाम मल्हारराव होलकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और परिवारपुणे के निकट एक होले गांव में 16 मार्च 1693 को मल्हार राव होल्कर का जन्म हुआ था। बड़े होकर वह मल्हारराव खानदेश के सरकार कदम बांदे के संपर्क में आए। वहीं किराए के रूप में सैनिक के रूप में खुद की सेवाएं देने लगे। साल 1721 में वह बाजीराव पेशवा की सेना का हिस्सा बन गए। फिर धीरे-धीरे वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। वह जल्द ही पेशवा के काफी करीबी हो गए। जिसके बाद वह सैनिकों के दस्ता की मुखिया बना दिए गए।इसे भी पढ़ें: Bipin Chandra Pal Death Anniversary: क्रांतिकारी विचारों के जनक कहे जाते थे बिपिन चंद्र पाल, अंग्रेजों के छुड़ा दिए थे छक्केनिजाम को हरायावहीं 1728 में हैदराबाद के निजाम के साथ मराठों की लड़ाई में होल्ककर की भूमिका अग्रणी रही। उन्होंने छोटी टुकड़ी के दम पर निजाम के लिए मुगलों की तरफ से भेजी जाने वाली रसद को रोक दिया था। जिसकी वजह से पेशवा ने निजाम को हरा दिया था। पेशवा इतना प्रभावित हुए कि पश्चिमी मालवा का बड़ा इलाका उन्हें सौंप दिया गया और कई हजार घुड़सवार सैनिक उनके अधीन कर दिए गए थे।दिल्ली में 1737 में हुई जंग से लेकर 1738 तक निजाम को भोपाल में हराने तक मल्हारराव का पूरा योगदान दिया था। इसके अलावा उन्होंने पुर्तगालियों के खिलाफ लड़ाइयां भी जीती थीं। साल 1748 आते-आते मालवा में मल्हारराव होलकर की स्थिति बेहद मजबूत हो चुकी थी। जिसके बाद उनके अधीन इंदौर की रियासत तक कर दी गई थी।मृत्युवहीं 20 मई 1766 को मल्हारराव होलकर का निधन हो गया था।

May 20, 2025 - 18:39
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Malharrao Holkar Death Anniversary: मालवा के प्रथम मराठा सूबेदार थे मल्हारराव होलकर, ऐसे गढ़ी थी अपनी किस्मत
Malharrao Holkar Death Anniversary: मालवा के प्रथम मराठा सूबेदार थे मल्हारराव होलकर, ऐसे गढ़ी थी अपनी किस्मत

Malharrao Holkar Death Anniversary: मालवा के प्रथम मराठा सूबेदार थे मल्हारराव होलकर, ऐसे गढ़ी थी अपनी किस्मत

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मल्हारराव होलकर एक ऐसे इंसान का नाम है, जिसने अपनी किस्मत खुद गढ़ी थी। आज ही के दिन यानी की 20 मई को मल्हारराव होलकर का निधन हो गया था। चरवाहा परिवार में जन्म लेने के बाद भी उन्होंने इंदौर जैसे राज्य पर शासन किया। इसके साथ ही मराठा साम्राज्य को महाराष्ट्र के बाहर स्थापित किया और गैर सैनिक परिवार के होकर भी सैन्य कौशल की मिसाल स्थापित की।

जन्म और परिवार

पुणे के निकट एक होले गांव में 16 मार्च 1693 को मल्हार राव होल्कर का जन्म हुआ था। बड़े होकर वह मल्हारराव खानदेश के सरकार कदम बांदे के संपर्क में आए। वहीं किराए के रूप में सैनिक के रूप में खुद की सेवाएं देने लगे। साल 1721 में वह बाजीराव पेशवा की सेना का हिस्सा बन गए। फिर धीरे-धीरे वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए। वह जल्द ही पेशवा के काफी करीबी हो गए। जिसके बाद वह सैनिकों के दस्ता के मुखिया बना दिए गए।

निजाम को हराया

1728 में हैदराबाद के निजाम के साथ मराठों की लड़ाई में होल्कर की भूमिका अग्रणी रही। उन्होंने छोटी टुकड़ी के दम पर निजाम के लिए मुगलों की तरफ से भेजी जाने वाली रसद को रोक दिया था। जिसकी वजह से पेशवा ने निजाम को हरा दिया था। पेशवा इतना प्रभावित हुए कि पश्चिमी मालवा का बड़ा इलाका उन्हें सौंप दिया गया और कई हजार घुड़सवार सैनिक उनके अधीन कर दिए गए थे।

दिल्ली में 1737 में हुई जंग से लेकर 1738 तक निजाम को भोपाल में हराने तक मल्हारराव का पूरा योगदान था। इसके अलावा उन्होंने पुर्तगाली लोगों के खिलाफ भी लड़ाइयां जीती थीं। साल 1748 आते-आते, मल्हारराव होलकर की स्थिति मालवा में बेहद मजबूत हो चुकी थी, जिसके बाद उनके अधीन इंदौर की रियासत तक कर दी गई थी।

मृत्यु

वहीं 20 मई 1766 को मल्हारराव होलकर का निधन हो गया था। उनके योगदान और उपलब्धियों को आज भी याद किया जाता है, और उनका नाम भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

उनकी किंवदंतियां आज भी जीवित हैं, और वह मराठा साम्राज्य के पहले सूबेदार के रूप में अमर हो गए। हमें उनके साहस और नेतृत्व से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह पता होना भी महत्वपूर्ण है कि कैसे उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अपने सच्चे भाग्य को निर्मित किया।

निष्कर्ष

मल्हारराव होलकर जैसे महान योद्धा हमें सिखाते हैं कि सही दिशा में मेहनत और निष्ठा से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। उनके योगदान हमारे समाज के साथ-साथ भारतीय इतिहास में भी महत्वपूर्ण हैं।

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