Dr Rajendra Prasad Death Anniversary: डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नव स्वतंत्र राष्ट्र को आकार देने में निभाई अहम भूमिका
आज ही के दिन यानी की 28 फरवरी को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का निधन हो गया था। सालों की गुलामी और देश की आजादी की लड़ाई के बाद जो राष्ट्र मिला। उस राष्ट्र की कमान का एक सिरा पीएम नेहरू और दूसरी सिरा डॉ राजेंद्र प्रसाद के पास था। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नव स्वतंत्र राष्ट्र को आकार देने में अहम भूमिका निभाई थी। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर डॉ राजेंद्र प्रसाद के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और शिश्राबिहार के ज़िरादेई में एक चित्रगुप्तवंशी कायस्थ परिवार में 03 दिसंबर 1884 को राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ था। बचपन में ही राजेंद्र प्रसाद के सिर मां का साया उठ गया था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद छपरा जिला स्कूल में एडमिशन लिया। इसके बाद आगे की शिक्षा के लिए कलकत्ता यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया और प्रति माह 30 रुपए की छात्रवृत्ति अर्जित की। फिर साल 1902 में वह कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में शामिल हुए। वहीं साल 1904 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के तहत एफ.ए. पास किया और मार्च 1905 में राजेंद्र प्रसाद ने प्रथम श्रेणी के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। फिर साल 1907 में अर्थशास्त्र में एम.ए. पूरा किया।इसे भी पढ़ें: Chandrashekhar Azad Death Anniversary: अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले चंद्रशेखर अपनी आखिरी सांस तक रहे थे 'आजाद'पारिवारिक जिम्मेदारियांकलकत्ता में रहने के दौरान राजेंद्र प्रसाद अपने भाई के साथ एडन हिंदू हॉस्टल में रहे और द डॉन सोसाइटी में सक्रिय रूप से शामिल रहे। इंडियन सोसाइटी ऑफ सर्वेंट्स में शामिल होने के आमंत्रण के बाद भी राजेंद्र प्रसाद ने पारिवारिक जिम्मेदारियों और शिक्षा को प्राथमिकता दी।बिहारी स्टूडेंट्स कॉन्फ्रेंससाल 1906 में राजेंद्र प्रसाद ने पटना कॉलेज के हॉल में बिहारी स्टूडेंट्स कॉन्फ्रेंस की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। यह भारत में अपनी तरह के पहले संगठन की स्थापना का प्रतीक है। इस सम्मेलन ने बिहार के भविष्य के नेताओं जैसे अनुग्रह नारायण सिन्हा और कृष्ण सिंह को पोषित किया। वहीं साल 1917 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गांधी जी के साथ चंपारण आंदोलन और असहयोग आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। देश के पहले राष्ट्रपतिसाल 1920 में डॉ राजेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनकर स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। फिर 26 जनवरी 1950 को जब भारत गणराज्य बना, तो डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति बने। डॉ राजेंद्र प्रसाद 12 वर्षों तक इस पद पर रहे और देश के नवनिर्माण में अहम योगदान दिया। फिर साल 1962 में राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हो गए। उसी साल वह भारत रत्न से सम्मानित किए गए। निधनपटना के सदाकत आश्रम में 28 फरवरी 1963 को डॉ राजेंद्र प्रसाद का निधन हो गया।

Dr Rajendra Prasad Death Anniversary: डॉ राजेंद्र प्रसाद ने नव स्वतंत्र राष्ट्र को आकार देने में निभाई अहम भूमिका
Haqiqat Kya Hai
डॉ राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि पर हम उन्हें याद करते हैं, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और बाद में भारतीय गणराज्य के पहले राष्ट्रपति बने। उनके योगदान को किसी भी शब्द में नहीं बाँधा जा सकता, लेकिन आज हम उनके जीवन और कार्यों पर एक नज़र डालेंगे जिनसे आज का भारत आकार लिया है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद का प्रारंभिक जीवन
डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के जिरादेई में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा महाराजकुमार कॉलेज, एटा में प्राप्त की और बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की। उनका व्यक्तित्व और कुशाग्रता उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी की ओर अग्रसर करने में मददगार बनी।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
डॉ राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता के रूप में उभरे। उन्होंने 1917 में champaran आन्दोलन में शामिल होकर किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज उठाई। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिन्होंने स्वतंत्रता की ओर बढ़ने में मदद की।
भारतीय गणराज्य के पहले राष्ट्रपति
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ, और 26 जनवरी 1950 को भारत ने एक गणराज्य का रूप लिया। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इसके पहले राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला। उनके नेतृत्व में देश ने कई महत्वपूर्ण संविधानिक और सामाजनिक सुधार किए। उन्होंने देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और देश के युवा पीढ़ी को प्रेरित किया।
डॉ राजेंद्र प्रसाद की विरासत
डॉ राजेंद्र प्रसाद का जीवन केवल एक व्यक्तित्व के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रेरणा स्रोत के रूप में हमेशा जिंदा रहेगा। उन्होंने अपनी निस्वार्थ सेवा से देश को सशक्त किया। वे न्याय, स्वतंत्रता और मानवता के मूल्यों के प्रतीक बने रहे। आज के युवाओं को उनके आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि वे भी एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे सकें।
निष्कर्ष
डॉ राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि पर हमें यह समझने की आवश्यकता है कि उनके जीवन से क्या सीखने को मिलता है। उनकी सोच और कार्यों से हमसभी को एक शिक्षित, मजबूत और सहिष्णु राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए। इस प्रकार, हम उन्हें सही मायने में श्रद्धांजलि दे सकते हैं।
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