Sant Kabirdas Jayanti 2025: भारतीय अध्यात्म जगत के महासूर्य हैं कबीर
भारतीय संत परम्परा और संत-साहित्य में संत कबीर एक महान् हस्ताक्षर, समाज-सुधारक, अध्यात्म की सुदृढ़ परम्परा के संवाहक एवं अनूठे संत हैं। जब भारतीय समाज और धर्म का स्वरूप रूढ़ियों एवं आडम्बरों में जकड़ा एवं अधंकारमय था, एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांधता से जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी और दूसरी तरफ हिंदूओं के कर्मकांडों, विधानों एवं पाखंडों से धर्म-बल का हृास हो रहा था, तब संत कबीर एक रोशनी बनकर समाज को दिशा दी। कबीर ने मानव चेतना के विकास के हर पहलू को उजागर किया। श्रीकृष्ण, श्रीराम, महावीर, बुद्ध, जीसस के साथ-ही-साथ भारतीय अध्यात्म आकाश के अनेक संतों-आदि शंकराचार्य, नानक, रैदास, मीरा आदि की परंपरा में कबीर ने धर्म की त्रासदी एवं उसकी चुनौतियों को समाहित करने का अनूठा कार्य किया। जीवन का ऐसा कोई भी आयाम नहीं है जो उनके दोहों-विचारों से अस्पर्शित रहा हो। अपनी कथनी और करनी से मृतप्रायः मानव जाति के लिए कबीर ने संजीवनी का कार्य किया। इतिहास गवाह है, इंसान को ठोंक-पीट कर इंसान बनाने की घटना कबीर के काल में, कबीर के ही हाथों हुई। शायद तभी कबीर कवि मात्र ना होकर युगपुरुष और युगस्रष्टा कहलाए।महात्मा कबीर सत्व, रज, तम तीनों गुणों को छोड़कर त्रिगुणातीत बन गये थे। उन्होंने निर्गुण रंगी चादरिया रे, कोई ओढ़े संत सुजान को चरितार्थ करते हुए सद्भावना और प्रेम की गंगा को प्रवाहित किया। उन्होंने इस निर्गुणी चदरिया को ओढ़ा है। उन्हें जो दृष्टि प्राप्त हुई है, उसमें अतीत और वर्तमान का वियोग नहीं है, योग है। उन्हें जो चेतना प्राप्त हुई, वह तन-मन के भेद से प्रतिबद्ध नहीं है, मुक्त है। उन्हें जो साधना मिली, वह सत्य की पूजा नहीं करती, शल्य-चिकित्सा करती है। सत्य की निरंकुश जिज्ञासा ही उनका जीवन-धर्म रहा है। वही उनका संतत्व रहा, वही उनकी साधना का अभिन्न अंग रहा। वे उसे चादर की भाँति ओढ़े हुए नहीं हैं बल्कि वह बीज की भाँति उनके अंतस्तल से अंकुरित होता रहा है। कबीर ने सगुण-साकार भक्ति पर जोर दिया है, जिसमें निर्गुण निहित है।इसे भी पढ़ें: Guru Arjun Dev Death Anniversary: शहीदों के 'सरताज' कहे जाते थे गुरु अर्जुन देव, स्वर्ण मंदिर की रखी थी नींवहर जाति, वर्ग, क्षेत्र और सम्प्रदाय का सामान्य से सामान्य व्यक्ति हो या कोई विशिष्ट व्यक्ति हो -सभी में विशिष्ट गुण खोज लेने की दृष्टि कबीर में थी। गुणों के आधार से, विश्वास और प्रेम के आधार से व्यक्तियों में छिपे सद्गुणों को वे पुष्प में से मधु की भाँति उजागर करने में सक्षम थे। परस्पर एक-दूसरे के गुणों को देखते हुए, खोजते हुए उनको बढ़ाते चले जाना कबीर के विश्व मानव या वसुधैव कुटुम्बकम् के दर्शन का द्योतक है। उन्होंने मन, चेतना, दंड, भय, सुख और मुक्ति जैसे सूक्ष्म विषयों पर भी किसी गंभीर मनोवैज्ञानिक की तरह विचार किया था और व्यक्ति को अध्यात्म की एकाकी यात्रा का मार्ग सुझाया था। कबीर ने लोगों को एक नई राह दिखाई। घर-गृहस्थी में रहकर और गृहस्थ जीवन जीते हुए भी शील-सदाचार और पवित्रता का जीवन जिया जा सकता है तथा आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया जा सकता है। वे संसार से भागे नहीं, बल्कि संसार में रहकर सादगी को, संतता को साधा। इसीलिये कबीर एक सामान्य मनुष्य के लिये आशा का द्वार है।संत कबीर का जन्म लहरतारा के पास जेठ पूर्णिमा को हुआ था। उनके पिता नीरू नाम के जुलाहे थे। 119 वर्ष की आयु में उन्होने मगहर में अपना देह त्यागा। कुछ लोगों का कहना है कि वे जन्म से मुसलमान थे और युवा अवस्था में स्वामी रामानंद के प्रभाव से उन्होंने हिन्दू धर्म की विशेषताओं को स्वीकारा। कबीर ने हिन्दु, मुसलमान का भेद मिटाकर हिन्दू भक्तों तथा मुसलमान फकीरों के साथ सत्संग किया और दोनांे की अच्छी बातों को आत्मसात किया। उनके जीवन में कुरान और वेद ऐसे एकाकार हो गये कि कोई भेदरेखा भी नहीं रही। कबीर पढ़े लिखे नहीं थे पर उनकी बोली बातों को उनके अनुयायियों ने लिपिबद्ध किया जो लगभग 80 ग्रंथों के रूप में उपलब्ध है। कबीर ने भाईचारे, प्रेम और सद्भावना का संदेश दिया है। उनके प्रेरक एवं जीवन निर्माणकारी उपदेश उनकी साखी, रमैनी, बीजक, बावन अक्षरी, उलट बासी में देखे जा सकते हैं। कबीर एक ऐसे संत हैं, जिनके लिये पंथ और ग्रंथ का भेद बाधक नहीं। वे दो संस्कृतियों के संगम हैं। उनका मार्ग सहजता है, यही कारण है कि उन्होंने सहज योग का मार्ग सुझाया। वे जाति-पांति के भेदभावों से मुक्त एक सच्चा इंसान, क्रांतिकारी संतपुरुष एवं अनूठे योगी थे। कबीर ने इन क्रांतिकारी शब्दों के जरिये पाखंडियों को किया था लहूलुहान-कबीर बानी अटपटी, सुनकर लागे आग। अज्ञानी जन जल मुए,ज्ञानी जाए जाग। कबीर की वाणी धधकती हुई आग के समान थी, जिस अग्नि में अज्ञानी और पाखंडियों का भस्म होना निश्चित है। संत सज्जन व्यक्तियों का जीवन सुसज्जित तथा उन्हें परम सत्य की प्राप्ति होना सुनिश्चित है। सत्य परम प्रकाश हमारे अंदर है जिसकी प्राप्ति संत कबीर जैसे महापुरुषों के ज्ञान से की जा सकती है।महात्मा कबीर ने स्वयं को ही पग-पग पर परखा और निथारा। स्वयं को भक्त माना और उस परम ब्रह्म परमात्मा का दास कहा। वह अपने और परमात्मा के मिलन को ही सब कुछ मानते। शास्त्र और किताबें उनके लिये निरर्थक और पाखण्ड था, सुनी-सुनाई तथा लिखी-लिखाई बातों को मानना या उन पर अमल करना उनको गंवारा नहीं। इसीलिये उन्होंने जो कहा अपने अनुभव के आधार पर कहा, देखा और भोगा हुआ ही व्यक्त किया, यही कारण है कि उनके दोहे इंसान को जीवन की नई प्रेरणा देते थे। कबीर शब्दों का महासागर है, ज्ञान का सूरज हैं। उनके बारे में जितना भी कहो, थोड़ा है, उन पर लिखना या बोलना असंभव जैसा है। सच तो यह है कि बूंद-बूंद में सागर है और किरण-किरण में सूरज। उनके हर शब्द में गहराई है, सच का तेज और ताप है।संत शिरोमणि कबीर सर्वधर्म सद्भाव के प्रतीक थे, साम्प्रदायिक सद्भावना एवं सौहार्द को बल दिया। उनको हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदायों में बराबर का सम्मान प्राप्त था। दोनो

Sant Kabirdas Jayanti 2025: भारतीय अध्यात्म जगत के महासूर्य हैं कबीर
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संत कबीर दास भारतीय संत परंपरा के एक महान हस्ताक्षर हैं, जिन्हें मानवता के सच्चे मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है। कबीर ने अपने विचारों और शिक्षाओं के माध्यम से समाज में सुधार लाने का कार्य किया। अब आ रहा है संत कबीर दास जयंती 2025, जो हमें उनके विचारों और जीवन से प्रेरित होने का एक और अवसर देगा।
संत कबीर का जीवन और शिक्षाएँ
संत कबीर का जन्म लहरतारा के पास जेठ पूर्णिमा को हुआ। वे 119 वर्ष की आयु में मगहर में देह त्यागे। कबीर एक जुलाहे के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने जाति और धर्म की सीमाओं को पार कर हर वर्ग के लोगों को अपने विचारों से प्रेरित किया। उनके प्रमुख ग्रंथों में 'साखी', 'बीजक' और 'रामैन' शामिल हैं, जो उनके दार्शनिक और आध्यात्मिक विचारों का प्रतिबिंब हैं। कबीर ने कभी वैदिक या कुरानिक विचारों को अपने विचारों से अलग नहीं रखा, बल्कि उन्होंने दोनों का संयोजन किया।
समाज में कबीर का योगदान
कबीर का संदेश था कि सभी धर्मों का सार एक ही है और सभी को प्रेम और भाईचारे का पालन करना चाहिए। उनके दोहे आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और समाज के लिए एक नया दृष्टिकोण पेश करते हैं। उन्होंने जात-पांत के भेदभाव को खत्म करने के लिए अपनी आवाज उठाई और सच्चे इंसान की पहचान केवल उसके गुणों पर निर्भर करते हैं।
कबीर का अद्वितीय दृष्टिकोण
कबीर ने जीवन के सूक्ष्म विषयों पर गहन विचार किए, जैसे कि सुख, दुःख, मुक्ति, और मानवता। उन्होंने कहा कि इंसान को अपने भीतर झांककर अपनी गलतियों को समझना चाहिए, न कि दूसरों में दोष ढूंढना चाहिए। उनका संदेश स्पष्ट था: "जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।" कबीर की ये शिक्षाएँ हमें आत्म-ज्ञान और सुधार के लिए प्रेरित करती हैं, जिससे हम अपने जीवन को बेहतर बना सकें।
कबीर का महत्व और जयंती समारोह
हम संत कबीर दास जयंती के दौरान उनके विचारों और शिक्षाओं को नए सिरे से समझने का प्रयास करेंगे। यह समारोह हमें उनकी शिक्षाओं को जीवन में उतारने तथा समाज में सद्भाव और भाईचारा फैलाने का अवसर предоставляет है। कबीर के अनमोल विचारों से हम अपने जीवन को प्रेरित कर सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष
कबीर दास ने मानवता के प्रति अपने महान योगदान के माध्यम से एक अमिट छाप छोड़ी है। उनकी जीवन शैली और विचार आज भी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी जयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम कबीर के संदेश को अपने जीवन में अपनाएंगे और समाज में भाईचारे को बढ़ावा देंगे। आइए हम सब मिलकर इस अवसर को सार्थक बनाएं और संत कबीर के विचारों को फैलाने का कार्य करें।
- लेखिका: राधिका शर्मा, प्रिया वर्मा, और सुमन गुप्ता (टीम haqiqatkyahai)
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