Karpoori Thakur Death Anniversary: ईमानदारी और सादगी के मिशाल थे कर्पूरी ठाकुर, दो बार बने थे बिहार के CM
बिहार के पूर्व सीएम और दिवंगत नेता कर्पूरी ठाकुर का आज ही के दिन यानी की 17 फरवरी को निधन हो गया था। कर्पूरी ठाकुर के ईमानदारी और सादगी के किस्से भी सुनाए जाते हैं। वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनका बचपन कष्ट और गरीबी में बीता। लेकिन सीएम बनने के बाद भी न तो उनका मन बदला और न जीवन बदला। वह फटा धोती-कुर्ता पहनकर रिक्शे से सीएम कार्यालय से अपने घर आते-जाते दिख जाते थे। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर कर्पूरी ठाकुर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और परिवारआज से 100 साल पहले भारत में ब्रिटिश शासन काल के दौरान समस्तीपुर के एक गांव पितौंझिया में 24 जनवरी 1924 को जन्म हुआ था। इनका जन्म नाई परिवार में हुआ था। उनकी शुरूआती शिक्षा गांव से ही पूरी हुई और साल 1942 में पटना यूनिवर्सिटी में आने के बाद वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की हिस्सा बन गए।इसे भी पढ़ें: Satyendranath Bose Death Anniversary: सत्येंद्रनाथ बोस ने विज्ञान के क्षेत्र में दिया था अमिट योगदान, जानिए रोचक बातेंराजनीतिक सफरभारतीय गणतंत्र के प्रथम आम चुनाव में कर्पूरी ठाकुर समस्तीपुर की ताजपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीते। फिर वह बिहार विधानसभा चुनाव कभी नहीं हारे और दशकों तक कर्पूरी ठाकुर विधायक और विरोधी दल के नेता रहे।दो बार रहे बिहार के सीएमअपने राजनीतिक जीवन में कर्पूरी ठाकुर एक बार बिहार के डिप्टी सीएम और दो बार सीएम रहे। लेकिन दोनों ही बार कर्पूरी ठाकुर सीएम के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। साल 1970 में पहली बार बिहार के सीएम के रूप में कर्पूरी ठाकुर ने शपथ ली, लेकिन इस दौरान उनका कार्यकाल सिर्फ 163 दिन का रहा था। वहीं दूसरी बार वह साल 1977 को सीएम बनें। लेकिन इस दौरान भी उनका कार्यकाल अधूरा रहा। लेकिन ईमानदार छवि और गरीबों की आवाज बनने वाले कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के समाज पर अपनी जो छाप छोड़ी, वह आज भी बिहार की राजनीति में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।अंग्रेजी की अनिवार्यता को किया खत्मसाल 1967 में जब वह बिहार के डिप्टी सीएम थे, तो उस दौरान केंद्र सरकार का राज्य सरकारों से पत्राचार अंग्रेजी भाषा में हुआ करता था। लेकिन इसका कर्पूरी ठाकुर ने विरोध किया। कर्पूरी ने इस दौरान अंग्रेजी पत्राचार की अनिवार्यता को खत्म कर दिया। इसके बाद राज्य के सभी विभागों हिंदी पत्राचारों का दौर शुरू हुआ। इसके साथ ही उन्होंने उर्दू को बिहार की दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने का कार्य किया था। इसके अलावा कर्पूरी ठाकुर देश के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक फ्री पढ़ाई की घोषणा की थी। इसके साथ ही कर्पूरी ठाकुर के अथक प्रयासों के कारण मिशनरी स्कूलों में हिंदी पढ़ाना शुरू हुआ था।निधनकई दशकों तक कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति का अहम हिस्सा रहे। वह गरीब-गुरबों की आवाज बने और उनको अपनी जीवन काल में जननायक की उपाधि से सुशोभित किया गया। वहीं 17 फरवरी 1988 को 66 साल की उम्र में कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था।

Karpoori Thakur Death Anniversary: ईमानदारी और सादगी के मिशाल थे कर्पूरी ठाकुर, दो बार बने थे बिहार के CM
Haqiqat Kya Hai | यह लेख हमारी टीम द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें हम बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि के अवसर पर उनकी जीवन यात्रा और राजनीति में उनके योगदान पर चर्चा करेंगे।
परिचय
कर्पूरी ठाकुर, जिन्हें "समाजवादी नेता" और "सादगी का प्रतीक" माना जाता है, भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण नाम हैं। बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी सेवा और उनके मूल्यों ने आज भी लोगों के दिलों में खास स्थान बना रखा है। उनकी पुण्यतिथि पर, हम उन्हें याद करते हैं और उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं को साझा करते हैं।
कर्पूरी ठाकुर का जीवन और शिक्षाएं
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था। वे एक साधारण किसान परिवार से थे, लेकिन उनकी सोच और दृष्टि में गहराई ने उन्हें समाज के लिए एक परिवर्तनकामी नेता बना दिया। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद यह ठान लिया कि वह अपने समाज के पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ेंगे।
राजनीतिक सफर
कर्पूरी ठाकुर ने 1967 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। वे दो बार इस पद पर रह चुके थे, पहली बार 1967 से 1968 तक और फिर 1970 से 1971 तक। उनके शासनकाल में उन्होंने शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के लिए कई योजनाएं लागू कीं, जिन्हें आज भी याद किया जाता है।
ईमानदारी और सादगी का प्रतीक
कर्पूरी ठाकुर अपनी ईमानदारी और सादगी के लिए जाने जाते थे। उनकी जीवनशैली ने उनके अनुयायियों और राजनीतिक साथियों पर गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने कभी भी भौतिक वस्तुओं के पीछे दौड़ने का अभ्यास नहीं किया, और उनका मानना था कि असली समृद्धि इंसान के गुणों में है, न कि धन में।
उनका योगदान और Legacy
कर्पूरी ठाकुर ने न केवल बिहार के विकास के लिए काम किया, बल्कि उन्होंने समाज के हर वर्ग के उत्थान की दिशा में भी प्रयास किए। उनके द्वारा स्थापित नीतियां आज भी लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रही हैं। उनकी विचारधारा से प्रेरित होकर नई पीढ़ी को सामाजिक न्याय के प्रति सजग रहने की प्रेरणा मिलती है।
निष्कर्ष
कर्पूरी ठाकुर का जीवन हमें यह सिखाता है कि यदि हम सच्चे मन से समाज के लिए काम करें, तो हमारा योगदान अमिट रहेगा। उनकी पुण्यतिथि पर, आइए हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास करें। कर्पूरी ठाकुर का नाम हमेशा याद रखा जाएगा, क्योंकि उन्होंने समाज के लिए जो किया वह सदियों तक लोगों को प्रेरित करेगा।
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