Pandit Bhimsen Joshi Death Anniversary: सुरों की साधना करते थे भीमसेन जोशी, महज 11 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में बड़े नामों में शामिल पंडित भीमसेन जोशी का 24 जनवरी को निधन हो गया था। सुरों की साधना करने वाले पंडित जोशी कला के प्रति खुद को समर्पित कर दिया था। उनको देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया था। कला जगत के अलावा पूरी इंसानियत के लिए पंडित जोशी की जिंदगी प्रेरक है। उनके परिवार में कोई भी संगीत से नहीं जुड़ा था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर पंडित भीमसेन जोशी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और परिवारकर्नाटक के गड़ग में 04 फरवरी 1922 को भीमसेन जोशी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम गुरुराज जोशी अंग्रेजी, कन्नड़ और संस्कृत के विद्वान थे। उनके परिवार में कोई भी संगीत से जुड़ा नहीं था। उन्होंने महज 19 साल की उम्र में पहली बार संगीत की प्रस्तुति दी थी। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में पंडित जोशी का योगदान बेहद अहम था।इसे भी पढ़ें: Harivansh Rai Bachchan Death Anniversary: हरिवंश राय बच्चन ने शुरू किया था काव्य पाठ के मेहनताना की परंपरा, जानिए रोचक बातेंसंगीत की शिक्षाबता दें कि पंडित जोशी बचपन से ही गायन का शौक रखते थे। वह स्कूल से लौटने के बाद एक ट्रांजिस्टर की दुकान पर बैठ जाते थे, वहीं पर ट्रांजिस्टर पर बजते रिकॉर्ड को सुनकर गाने का प्रयास करते थे। दुकानदार ने इस बात की जानकारी उनके पिता को दी थी कि उनका बेटा बहुत अच्छा गाना गाता है। बताया जाता है कि 11 साल की उम्र में पंडित जोशी गुरु की खोज में घर छोड़कर चले गए थे। इस दौरान उन्होंने सवाई गंधर्व से संगीत की शिक्षा ली थी। जब वह सवाई गंधर्व के पास संगीत की शिक्षा लेने गए, तो सवाई गंधर्व ने उनसे कहा कि वह संगीत सिखाएंगे, लेकिन इससे पहले तुमने जो भी सीखा है, वह तुम्हें भूलना होगा। इस बात की स्वीकृति मिलने के बाद ही सवाई गंधर्व ने उनको संगीत की शिक्षा दी।संगीत की पहली प्रस्तुतिमहज 19 साल की उम्र में पंडित भीमसेन जोशी ने पहली संगीत की प्रस्तुति दी थी। फिर वह बतौर रेडियो कलाकार मुंबई में काम करने लगे थे। फिर 20 साल की उम्र में उनका पहला एल्बम रिलीज हुआ था। पंडित जोशी ने कई फिल्मों के लिए भी गाने गाए। उनको पूरिया, दरबारी, भोगी, मालकौंस, ललित, तोड़ी, भीमपलासी, यमन और शुद्ध कल्याण आदि राम पसंद थे। पंडित जोशी की अद्भुत प्रतिभा की वजह से उनको पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। वहीं साल 2008 में पंडित जोशी को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया था।मृत्युवहीं 24 जनवरी 2011 को पंडित भीमसेन जोशी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था।

Pandit Bhimsen Joshi Death Anniversary: सुरों की साधना करते थे भीमसेन जोशी, महज 11 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर
Haqiqat Kya Hai
इस साल, पंडित भीमसेन जोशी की पुण्यतिथि पर, हम उनकी अद्वितीय करियर और जीवन के क्षणों को याद करते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के इस दिग्गज ने संगीत की दुनिया में एक नई पहचान बनाई और आज भी उनकी गूंज हमारे हृदयों में मौजूद है। यह लेख उनके जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर रोशनी डालता है।
भीमसेन जोशी का प्रारंभिक जीवन
पंडित भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी 1922 को कर्नाटक के गडग शहर में हुआ था। उनका परिवार प्रारंभ से ही संगीत के प्रति संवेदनशील था। उन्होंने महज 11 साल की उम्र में अपने घर को छोड़ दिया और संगीत के साधना के लिए मुम्बई चले गए। इस छोटे से उम्र में उनका समर्पण और संगीत के प्रति जुनून बहुत उल्लेखनीय था।
संगीत की साधना
भीमसेन जोशी की संगीत यात्रा बहुत ही प्रेरणादायक रही है। वे न केवल शास्त्रीय संगीत के महान गायक रहे हैं, बल्कि उन्होंने ठुमरी, भजन और टप्पा जैसे विभिन्न शैलियों में भी अपनी पहचान बनाई। उनकी आवाज़ में एक अद्भुत जादू था जो अद्भुत भावनाओं को जगाता था। वे अक्सर गाते समय अपनी आत्मा को उस गीत में समर्पित कर देते थे, जो उन्हें एक असामान्य कलाकार बनाता था।
महान उपलब्धियाँ
भीमसेन जोशी को कई सम्मान मिले, जिनमें से पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे पुरस्कार शामिल हैं। वे संगीत अकादमी में कई बार सम्मानित हुए और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनकी संगीत साधना ने लाखों लोगों को प्रेरित किया और आज भी उनके गाए गीत सुनने वाले दर्शकों का दिल छू लेते हैं।
समापन
पंडित भीमसेन जोशी का योगदान भारतीय संगीत में अविस्मरणीय रहेगा। उन्होंने अपनी साधना और कठोर परिश्रम के बल पर शास्त्रीय संगीत को एक नई दिशा दी। उनके गायन के जादू से पूरी पीढ़ियाँ मंत्रमुग्ध हुई हैं। उनकी संगीत यात्रा को याद कर हम उन्हें न केवल श्रद्धांजलि देते हैं, बल्कि उनके जीवन से प्रेरणा भी लेते हैं।
इस पुण्यतिथि पर, हम सभी को उनके संघर्ष और अद्भुत प्रतिभा को याद करना चाहिए। संगीत जीवन का अभिन्न हिस्सा है और पंडित भीमसेन जोशी ने इसे एक नई ऊंचाई तक पहुँचाया।
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