आखिर कौन, कैसे और कब तक पाएगा भीड़ से उत्पन्न भगदड़ पर काबू?

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 15 फरवरी शनिवार की रात प्रयागराज महाकुंभ जाने को उतावली भीड़ ने ऐसी भगदड़ मचाई कि लगभग डेढ़ दर्जन लोगों की जान चली गई, जबकि दर्जनाधिक घायल भी हुए। इस बार भी मृतकों में महिलाओं (10) और बच्चों (3) की संख्या ज्यादा रही, जबकि पुरुषों (2) की संख्या उनसे कम रही। वहीं, दर्जनाधिक घायलों में भी लगभग 14 महिलाएं समेत कुल 25 लोग शामिल हैं। ये महज आंकड़े नहीं हैं, बल्कि हमारी संवेदनाशून्य व्यवस्था की विफलता के नमूने मात्र हैं। ऐसी घटनाओं पर आखिर कौन, कैसे और कबतक काबू पाएगा, यह यक्ष प्रश्न ब्रेक के बाद पुनः समुपस्थित है। ऐसा इसलिए कि भारत में पिछले कुछ वर्षों में भगदड़ के कई मामले सामने आए हैं। वहीं, इस बार तो महज एक महीने के अंदर ही भगदड़ के दो-दो मामले सामने आ चुके हैं, जो कि प्रशासन के लिए चिंता का विषय है। सवाल है कि जब महाकुंभ की तैयारियों को लेकर उत्तरप्रदेश प्रशासन लगातार डींगें हांक रहा था और केंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपा रही थी, तब ऐसी हृदयविदारक घटनाओं का घटित होना उसकी तमाम व्यवस्थाओं पर सवालिया निशान लगा जाता है। सवाल यह भी है कि तमाम सकारात्मक राजनीतिक इच्छाशक्ति के बावजूद इतनी बड़ी प्रशासनिक चुकें कैसे हो गईं। हैरत की बात तो यह है कि प्रारम्भिक तौर पर मीडिया माध्यमों में रेलवे के अधिकारी-कर्मचारी ऐसी किसी घटना व हताहतों के बारे में इंकार कर रहे थे, लेकिन सच्चाई अंत में उन्हें भी बयां करनी ही पड़ी। इससे समझा जा सकता है कि उनका सूचना तंत्र कितना विफल या फिर लोकहित विरोधी है। भले ही इन घटनाओं पर बड़े नेतागण और अधिकारियों के द्वारा खेद प्रकट किया गया हो, जिनके पास वैध टिकट होंगे, उन्हें रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल से मुआवजे भी मिल जाएंगे। लेकिन इससे उन परिवारों की व्यथा कम नहीं हो जाती, जिन्होंने अपने परिजनों को खोया है या फिर जिनके परिजन अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं।इसे भी पढ़ें: नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ के बाद सुरक्षा कड़ी, यात्रियों की भीड़ बढ़ीबताया गया है कि सभी लोग नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में प्रयागराज के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए खड़े हुए थे। तभी ट्रेन सम्बन्धी उद्घोषणा के बाद प्लेटफार्म पर अफरातफरी और भगदड़ मच गई। ऐसे में सवाल है कि देश की राजधानी नई दिल्ली जैसे मुख्य रेलवे स्टेशन पर रेल प्रशासन ने समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की थी। अब भले ही इसकी जांच होगी, पर परिणाम ढाक के तीन पात जैसे ही होंगे!जाहिर है कि भीड़ और भगदड़ में अन्योन्याश्रय का सम्बन्ध है। लेकिन इनके नियंत्रण के समुचित उपाय कब तक दिखेंगे, किनके नेतृत्व में सब होगा, कुछ पता नहीं। तब तक ब्रेक के बाद होने वाले हादसों पर सवाल उठाते रहिए, चुनाव दर चुनाव राजनीतिक नेतृत्व बदलते रहिए, लेकिन ये अधिकारी हैं, जिनका सिर्फ तबादला होगा। क्योंकि उनकी जानलेवा लापरवाहियों के बावजूद उन्हें जिम्मेदार ठहराने के कानूनी प्रबंध नदारत हैं।बता दें कि गत 29 जनवरी 2025 को प्रयागराज में महाकुंभ मेला 2025 में मौनी अमावस्या से ठीक पहले भी एक दु:खद भगदड़ मची थी, जहां लगभग 30 लोगों की मौत हो गई थी और तकरीबन 60 लोग घायल हो गए थे।दरअसल, महाकुंभ मेले में ये हादसा 29 जनवरी के तड़के हुआ था, जब सभी लोग संगम नोज की तरफ नहाने के लिए जा रहे थे। तब यहां भी लाखों लोगों की भीड़ बेकाबू हो चुकी थी। जिसके बाद आनन-फानन में वीवीआईपी व्यवस्था बदल दी गई और अखाड़ों ने भी मौनी अमावस्या के लिए अपने पारंपरिक 'अमृत स्नान' को रद्द कर दिया और दोपहर बाद 'अमृत स्नान' किया। इससे भी धार्मिक आयोजनों में भीड़ प्रबंधन सम्बन्धी सवाल उठे थे। यहां भी एक न्यायिक जांच आयोग का गठन करके प्रशासनिक खाना पूर्ति कर दी गई है। इसलिए भीड़ नियंत्रण सम्बन्धी विफलताओं पर जनसामान्य की चिंता ज्यादा बढ़ गई है।वहीं, गत 8 जनवरी, 2025 को आंध्र प्रदेश के तिरुपति में मची भगदड़ में कम से कम 6 भक्तों की मौत हो गई थी, जबकि दर्जनों लोग घायल हो गए थे, क्योंकि सैकड़ों लोग तिरुमाला पहाड़ियों पर भगवान वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में वैकुंठ द्वार दर्शनम के लिए टिकट पाने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे। बताया गया था कि तब 10 जनवरी से शुरू होने वाले 10 दिवसीय वैकुंठ द्वार दर्शनम के लिए देश भर से सैकड़ों भक्त यहां आए थे।यदि आप पिछले कुछ वर्षों में भारत में हुई प्रमुख भगदड़ की घटनाओं की सूची खंगालेंगे तो पता चलेगा कि साल-दो साल बाद ऐसी घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है। यदि पिछले दो दशकों की प्रमुख भगदड़ सम्बन्धी घटनाओं पर गौर करें तो 27 अगस्त, 2003 को महाराष्ट्र के नासिक में कुंभ मेले में भगदड़ के दौरान जहां 39 लोगों की मौत हो गई थी वहीं, 140 अन्य घायल हो गए थे। इसी प्रकार 25 जनवरी, 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के वाई शहर स्थित मंधारदेवी मंदिर में भगदड़ के दौरान 300 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि  100 अन्य लोग घायल हो गए थे।ये भगदड़ मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियों में फिसलन भरी होने के कारण मची थी।वहीं, 3 अगस्त, 2008 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में नैना देवी मंदिर में भगदड़ के दौरान 162 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए थे। तब यहां पहाड़ी की चोटी पर स्थित नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफवाह के कारण मची भगदड़ मच गई थी। वहीं, 30 सितंबर, 2008 को राजस्थान के जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में नवरात्रि के दौरान भगदड़ मचने पर 250 लोगों की मौत कुचले जाने से हो गई थी। क्योंकि इस दौरान भारी संख्या में तीर्थयात्री इकट्ठा हुए थे। वहीं, 4 मार्च, 2010 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में 63 लोगों की मौत हो गई थी। इसमें अधिकतर बच्चे शामिल थे। इस मंदिर में मुफ्त भोजन और कपड़े के लिए हुई भारी भीड़ के कारण भगदड़ हुई थी। इसके अलावा, 15 जनवरी, 2011 को केरल के इडुक्की जिले के पुलमेडु में एक जीप के घर जा रहे तीर्थयात्रियों से टकरा जाने के कारण मची भगदड़ 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Feb 17, 2025 - 12:39
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आखिर कौन, कैसे और कब तक पाएगा भीड़ से उत्पन्न भगदड़ पर काबू?
आखिर कौन, कैसे और कब तक पाएगा भीड़ से उत्पन्न भगदड़ पर काबू?

आखिर कौन, कैसे और कब तक पाएगा भीड़ से उत्पन्न भगदड़ पर काबू?

Haqiqat Kya Hai

लेखिका: राधिका शर्मा, टीम नेटवर्क

परिचय

भीड़ की भगदड़ एक गंभीर स्थिति है जो कई मौकों पर मृत्युथ प्रकरणों और दुर्घटनाओं का कारण बनती है। यह घटना अक्सर धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक आयोजनों के दौरान होती है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर इसे काबू करने की जिम्मेदारी किसकी है और इसे ठीक कैसे किया जा सकता है? और क्या हम इसे रोकने के लिए किसी प्रभावी उपाय की उम्मीद कर सकते हैं? इस लेख में, हम इन सवालों के उत्तर खोजेंगे।

भीड़ से उत्पन्न भगदड़ की समस्या

भारत में धार्मिक मेलों, त्योहारों और राजनीतिक रैलियों में भीड़ की संख्या हमेशा बहुत अधिक रहती है। एक छोटी सी चेष्टा या झगड़ा भी भगदड़ का कारण बन सकता है। उदाहरण के लिए, हाल ही में एक धार्मिक मेले में हुई भगदड़ में कई लोग दम तोड़ चुके थे। ऐसे कई प्रश्न उठते हैं कि ऐसे मामलों में सुरक्षा व्यवस्थाएं क्यों विफल रहती हैं।

किसकी जिम्मेदारी है?

इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें प्रशासन की कमी, सुरक्षा बलों की स्थिति और लोगों की समझ भी शामिल है। प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयोजनों की योजना में सुरक्षा प्राथमिकता हो। इसी तरह, आयोजकों को भीड़ प्रबंधन के उपायों को अपनाना चाहिए और लोगों को सुरक्षा के लिए जागरूक करना चाहिए।

कैसे काबू पाया जा सकता है?

भीड़ प्रबंधन के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं:

  • प्रशसनिक स्वीकृति: आयोजनों को पूर्व स्वीकृति के दौर से गुजरना चाहिए, जिसमें सुरक्षा योजना का भी विवरण हो।
  • सोशल मीडिया: आयोजनों की जानकारी को सोशल मीडिया के माध्यम से साझा किया जाना चाहिए ताकि अधिक लोग जागरूक हों।
  • सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाना: आयोजनों में पर्याप्त संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती की जानी चाहिए।
  • ऑडियो विज़ुअल उपकरण: स्थिति की निगरानी के लिए कैमरा और अन्य तकनीकी उपकरणों का उपयोग किया जाना चाहिए।

कब तक पाएगा काबू?

इस समस्या का समाधान किसी एक दिन में नहीं होगा। इसके लिए संगठनों और सरकारों को लंबे समय की योजना बनानी पड़ेगी। यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी संबंधित पक्ष सहयोग करें। आत्म-नियंत्रण और जागरूकता से हम भीड़ प्रबंधन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकते हैं।

निष्कर्ष

भीड़ से उत्पन्न भगदड़ की समस्या जटिल है और इसके समाधान के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। प्रशासन, सुरक्षा बलों और नागरिकों को एक साथ आकर इस मुद्दे का सामना करना होगा। आगे की कार्रवाई और सुधारों का पालन करते हुए ही हम इस समस्या का सामना कर पाएंगे।

अंत में, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जहां एक ओर यह जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की है, वहीं हमें भी जिम्मेदारी निभानी होगी।

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crowd control, stampede prevention, event safety measures, crowd management strategies, public safety, crowd behavior, emergency response tips, crowd monitoring technology

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