न्यायिक प्रक्रिया में सुधार सर्वोच्च प्राथमिकता हो
भारत की न्याय प्रणाली विसंगतियों एवं विषमताओं से घिरी है। न्याय-व्यवस्था जिसके द्वारा न्यायपालिकाएं अपने कार्य-संचालन करती है वह अत्यंत महंगी, अतिविलंबकारी और अप्रत्याशित निर्णय देने वाली है। ‘न्याय प्राप्त करना और इसे समय से प्राप्त करना किसी भी राज्य व्यवस्था के व्यक्ति का नैसर्गिक अधिकार होता है।’ ‘न्याय में देरी न्याय के सिद्धांत से विमुखता है।’ एक ही प्रकृति के मामलों में अलग-अलग फैसले आना, कुछ न्यायाधीश कभी-कभी व्यक्तिगत पसंद के आधार पर मामलों को चुनते देखे जाते हैं, कुछ वकीलों को केस असाइनमेंट और सुनवाई के समय के मामले में तरजीह दी जाना, आंशिक सुनवाई के मामलों की प्रथा आदि भारतीय न्यायिक व्यवस्था में विद्यमान चुनौतियों एवं विसंगतियों को दूर करने के लिये न्याय प्रक्रिया में आमूल-चूल परिवर्तन की अपेक्षा है। हाल ही में यह बात सामने आई है कि एक मौजूदा न्यायाधीश के आवास पर बड़ी मात्रा में नकदी पाई गई। इस तरह की घटना, किसी भी चल रही जांच के बावजूद, न्यायपालिका की ईमानदारी और निष्पक्षता पर एक बदनुमा दाग है। न्यायपालिका ईमानदारी, निष्पक्षता और कानून के समक्ष समान व्यवहार के मूल्यों पर आधारित लोकतंत्र के चार स्तंभों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्तंभ है। न्यायालयों की ईमानदारी में जनता और कानूनी समुदाय का विश्वास बहाल करने के उद्देश्य से कानून में क्रांतिकारी बदलाव की अपेक्षा है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में इसके लिये तत्पर है और वे न्याय-प्रक्रिया की कमियों एवं मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं, उनमें सुधार के लिये जागरूक दिखाई दे रहे हैं। निश्चित ही उनसे न्यायपालिका में छाये अंधेरे सायों में सुधार रूपी उम्मीद की किरणें दिखाई देने लगी है। स्वल्प समय में ही सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में वे कई महत्त्वपूर्ण फैसलों के कारण चर्चा में हैं। प्रधान न्यायाधीश के रूप में उन्होंने देश की न्यायपालिका के आमूल-चूल स्वरूप में परिवर्तन पर खुलकर जो विचार रखे हैं, वे साहसिक एवं दूरगामी सोच से जुड़े होने के साथ आम लोगों की धारणा से मेल खाते हैं। नया भारत बनाने एवं सशक्त भारत बनाने के लिये न्यायिक प्रक्रिया में सुधार सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसे भी पढ़ें: हे माननीय! आखिर अपनी जिम्मेदारी कब समझेंगे आप? बहुत हद कर दी आपने!मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना के सामने अनेक चुनौतियां हैं, उनका मार्ग कंटकाकीर्ण हैं। उनके द्वारा शुरु किये कानून सुधार-अभियान की किसी पहल का विरोध होना स्वाभाविक है। न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए कॉलेजियम सिस्टम पर भी सवाल उठाए गए। न्यायिक प्रणाली, जो निष्पक्षता और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर टिकी हुई है, न केवल निंदा से परे होनी चाहिए बल्कि जनता द्वारा भी देखी जानी चाहिए। न्यायालयों के भीतर एक व्यापक आत्मनिरीक्षण किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायिक प्रक्रिया बेदाग रहे और न्यायपालिका के बारे में जनता की धारणा को उसके सही परिप्रेक्ष्य पर बहाल किया जा सके। न्यायालयों की निष्पक्षता में आम आदमी का विश्वास सर्वोपरि है, और इस विश्वास को खतरे में डालने वाली किसी भी घटना से शीघ्रता और विवेकपूर्ण तरीके से निपटा जाना चाहिए।न्यायालयों के कामकाज की पवित्रता बनाए रखने के लिए उनकी समीक्षा की जानी जरूरी है। यह बहुत स्पष्ट है कि कुछ न्यायाधीश, कभी-कभी, व्यक्तिगत पसंद के आधार पर मामलों चुनते देखे जाते हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया की एकरूपता और निष्पक्षता को कमजोर करता है। निष्पक्षता सुनिश्चित करने और पक्षपात या पक्षपात की किसी भी झलक से बचने के लिए मामलों का चयन करने का विवेक सीमित होना चाहिए। यह आवश्यक है कि सभी मामलों को एक स्थापित, पारदर्शी रोस्टर प्रणाली के आधार पर निष्पक्ष रूप से आवंटित किया जाए। यह भी न्याय-प्रक्रिया की एक बड़ी विसंगति है कि कुछ वकीलों को केस असाइनमेंट और सुनवाई के समय के मामले में तरजीह दी जाती है। इस तरह की प्रथाएं न्याय की नींव को ही नुकसान पहुँचाती हैं, क्योंकि वे अनुचित पक्षपात का कारण बन सकती हैं। किसी भी वकील को, चाहे उनकी स्थिति या पद कुछ भी हो, न्यायिक प्रक्रिया में अनुचित लाभ प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।सर्वप्रथम तो भारत के न्यायपालिका का संस्थागत चरित्र बदलने की जरूरत है। यह सामंती है और इसे इसके स्थान पर लोकतांत्रिक बनाना होगा। संवैधानिक जजों की चयन प्रक्रिया बहुत ही अलोकतांत्रिक है, जिसमें संविधान में वर्णित ‘हम भारत के लोग’ इनकी कोई भूमिका नहीं है। यहां पहले से पदासीन चले आ रहे लोग अपनी पसंद के लोगों को चुनकर पदों पर बिठा देते हैं, देखते ही देखते कुछ ही वर्षों में भारत का पूरा न्यायिक तंत्र कुछ परिवारों के कब्जे में आ गया है। वर्तमान सरकार ने परिवारवादी राजनीति के साथ परिवारवादी न्याय-व्यवस्था में सुधार किये हैं। आजादी के अमृत महोत्सव की चौखट पार कर चुके देश की न्याय व्यवस्था अभी तक औपनिवेशिक शिकंजे में जकड़ी हुई है। उच्चतर न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी है तो अधिकांश निचली अदालतों की कार्रवाई और पुलिस विवेचना की भाषा उर्दू है। वह आम आदमी के पल्ले नहीं पड़ती। समय आ गया है कि यह सब आम आदमी की भाषा में हों। वर्षों-वर्ष चलने वाले मुकदमों का खर्च भी बहुत ज्यादा है। न्याय प्रक्रिया की कोई सीमा-अवधि नहीं है। इसलिए निचली अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक समस्त न्यायालयों को दो पालियों में चलाने का प्रावधान किया जाना चाहिए। नए न्यायालय भी स्थापित किए जाने चाहिए। न केवल न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरा जाना चाहिए, बल्कि जनसंख्या और लंबित मामलों का संज्ञान लेते हुए न्यायिक कर्मियों की नियुक्ति भी की जानी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना के ताजा वक्तव्यों में ऐसे ही सुधार को अपनाने के संकेत मिल रहे हैं, जो स्वागतयोग्य होने के साथ सराहनीय भी है। निचली अदालतों से लेकर शीर्ष अदालत तक किसी भी मामले के

न्यायिक प्रक्रिया में सुधार सर्वोच्च प्राथमिकता हो
Haqiqat Kya Hai - भारत में न्यायिक प्रणाली की कार्यप्रणाली में सुधार की आवश्यकता पर बार-बार चर्चा होती रही है। इस विषय पर हमारी टीम नेटानागरी के कुछ विमर्श और विचार प्रस्तुत करते हैं।
न्यायिक प्रक्रिया का मौजूदा हाल
भारत की न्यायिक प्रक्रिया कई मामलों में लम्बी और जटिल है। अदालतों में मामलों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ इनका निपटारा करने की प्रक्रिया में भी विलंब होता जा रहा है। इसके पीछे मुख्य कारणों में न्यायाधीशों की कमी, कानूनों में जटिलता और संसाधनों की अनुपलब्धता शामिल हैं।
न्याय में देरी का असर
ज्यादातर लोग किसी भी वृद्धिशील प्रक्रिया में धैर्य रखने के लिए मजबूर होते हैं, लेकिन यदि न्याय में देरी होती है, तो इस पर जनता का विश्वास प्रभावित होता है। इससे न केवल समाज का नैतिक ताना-बाना बिगड़ता है, बल्कि आर्थिक विकास भी प्रभावित होता है।
सरकार की भूमिका
सरकार को न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए ठोस उपाय करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इसमें डिजिटलाइजेशन, अदालती प्रक्रियाओं का सरलीकरण और संख्या में न्यायाधीशों की बढ़ोतरी शामिल है। इससे न केवल मामले जल्दी निपटेंगे, बल्कि आम जनता को कानून तक पहुँच आसान हो जाएगी।
सुझाव और समाधान
विभिन्न न्यायिक सुधारों की आवश्यकता है, जैसे कि:
- आधुनिक तकनीक का उपयोग
- संसाधनों का बेहतर प्रबंधन
- अदालतों में मानव संसाधनों की वृद्धि
निष्कर्ष
न्यायिक प्रक्रिया में सुधार सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। सिर्फ सुधारों से ही हम एक मजबूत, सशक्त और तेजतर्रार न्याय प्रणाली की दिशा में बढ़ सकते हैं। इससे समाज में एक स्वस्थ संवाद और विश्वास का वातावरण बनेगा। इन सुधारों की जरूरत अब पहले से कहीं अधिक महसूस हो रही है।
और अधिक जानकारी के लिए विजिट करें हमारें वेबसाइट पर: haqiqatkyahai.com.
Keywords
judicial process reform, judicial efficiency, Supreme Court, legal reform in India, judiciary modernization, court delays, justice system improvementWhat's Your Reaction?






