हल्द्वानी/देहरादून: उत्तराखंड में 'भ्रष्टाचार मुक्त शासन' के नारों के बीच, सतर्कता अधिष्ठान (Vigilance Uttarakhand) की कार्यप्रणाली गंभीर सवालों के घेरे में है। हकीकत क्या है (haqiqatkyahai) को मिली जानकारी और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध समाचारों के अनुसार, हाल ही में निदेशक सतर्कता, डॉ. वी. मुरुगेशन के निर्देश पर सतर्कता अधिष्ठान सेक्टर कार्यालय हल्द्वानी (Vigilance Haldwani) में विवेचकों और जांच अधिकारियों के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। आधिकारिक तौर पर इसका उद्देश्य त्रुटिरहित विवेचना और प्रभावी पैरवी सुनिश्चित करना बताया गया, ताकि भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसी जा सके।
लेकिन सतर्कता विभाग (Vigilance Department) के अतीत और वर्तमान पर लगे गंभीर आरोपों के आलोक में, यह प्रशिक्षण कार्यक्रम कई कड़वे सवाल खड़े करता है। हकीकत क्या है (haqiqatkyahai) पूछता है - क्या यह वाकई व्यवस्था सुधारने का प्रयास है, या फिर उन कथित गड़बड़ियों और अन्याय पर पर्दा डालने की एक सुनियोजित कोशिश, जिसके चलते अनेक सरकारी कर्मचारी और उनके परिवार बर्बादी की कगार पर पहुँच गए? सबसे बड़ा सवाल तो समय का है – यह प्रशिक्षण अब क्यों? उन मामलों और पीड़ितों का क्या, जिन्हें कथित तौर पर बिना पुख्ता सबूत, बिना किसी लंबित कार्य (pendency) के स्पष्ट आधार के, और सबसे चिंताजनक, बिना किसी मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) या उचित प्रशिक्षण के ही फर्जी ट्रैप (fake trap by vigilance uttarakhand) या झूठे रिश्वत प्रकरण (fake bribe case) में फंसा दिया गया?
नेतृत्व पर गंभीर सवाल और SOP का कथित 'महाफ्रॉड':
आरोपों की सुई सीधे विभाग के शीर्ष नेतृत्व, विशेषकर निदेशक डॉ. वी. मुरुगेशन (dr v murgeshan vigilance fraud), की ओर घूमती है। हकीकत क्या है (haqiqatkyahai) यह पूछने को विवश है कि क्या यह स्वयं में एक गंभीर संस्थागत भ्रष्टाचार और कदाचार नहीं है कि आपके नेतृत्व में अप्रशिक्षित या प्रक्रिया से अनभिज्ञ अधिकारी (dishonest vigilance officer) संवेदनशील ट्रैप कार्रवाइयों को अंजाम देते रहे? क्या ऐसे उत्तराखंड फर्जी विजिलेंस केस (uttarakhand fake vigilance case) बनाने की अनुमति देना, जिनसे निर्दोषों का जीवन तबाह हो, भ्रष्टाचार की परिभाषा में नहीं आता, मिस्टर मुरुगेशन?
विभाग की कार्यप्रणाली पर सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह माननीय उच्च न्यायालय में कथित तौर पर SOP को लेकर हुए 'खेल' (sop fraud by murgesh vigilance uttarakhand) ने लगाया। यह बात अदालती रिकॉर्ड का हिस्सा बताई जाती है कि कैसे विभाग के अधिकारी शपथ लेकर SOP होने का दावा करते रहे, परन्तु जब बात सामने आई तो कथित तौर पर स्वयं निदेशक महोदय ने न्यायालय में स्वीकार किया कि उनके पास कोई SOP नहीं है और न्यायालय से इसे बनाने की अनुमति या मार्गदर्शन मांगा! यह कथित विजिलेंस उत्तराखंड फ्रॉड (vigilance uttarakhand fraud) न केवल विभाग की साख पर बट्टा लगाता है, बल्कि यह विजिलेंस उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand), विजिलेंस सेक्टर हल्द्वानी (Vigilance Sector Haldwani), विजिलेंस सेक्टर देहरादून (Vigilance Dehradun), विजिलेंस हेड क्वार्टर (Vigilance Head Quater) और विजिलेंस एस्टाब्लिशमेंट (Vigilance Establishment) के भीतर चल रही कथित अराजकता, पारदर्शिता के अभाव और संभवतः जानबूझकर की जा रही मनमानी का पर्दाफाश करता है।
सिसकती मानवता, बिलखते परिवार और एक नैतिक डर:
यह केवल फाइलों और नियमों के उल्लंघन का मामला नहीं है। यह उन अनगिनत परिवारों की सिसकियों और मानवीय त्रासदियों का दस्तावेज है जो विजिलेंस हल्द्वानी द्वारा कथित झूठे जाल (false trap by vigilance haldwani) या विभाग की अन्य इकाइयों द्वारा की गई ऐसी ही कार्रवाइयों का शिकार हुए। किसी व्यक्ति पर, विशेषकर एक सरकारी कर्मचारी पर, भ्रष्टाचार का आरोप लगना केवल उसकी नौकरी या प्रतिष्ठा को ही समाप्त नहीं करता, बल्कि उसके पूरे परिवार – उसके बच्चों, उसके जीवनसाथी, उसके माता-पिता – को सामाजिक बहिष्कार, मानसिक प्रताड़ना और आर्थिक विनाश के गहरे गड्ढे में धकेल देता है।
आज विभाग अपने अधिकारियों को प्रशिक्षण देकर अपनी पीठ थपथपा रहा है। लेकिन क्या उन अधिकारियों को, जिन्होंने अतीत में कथित तौर पर किसी निर्दोष को फंसाया, कभी उन बिलखते बच्चों और बेबस परिवारों का ख्याल आया? समाज में एक गहरी मान्यता है, एक डर है कि अन्याय करने वालों को ऊपर वाले की लाठी से कोई नहीं बचा सकता। हकीकत क्या है (haqiqatkyahai) यह सवाल पूछता है – क्या उन अधिकारियों को रात में नींद आती होगी? क्या उन्हें यह डर नहीं सताता कि निर्दोषों को दी गई पीड़ा और उनके परिवारों की आहें व्यर्थ नहीं जाएंगी? क्या उन्हें डर नहीं कि भगवान उनके इस अन्याय का बदला उनके बच्चों से लेगा, कि ईश्वर का श्राप उनके कुल पर लगेगा? यह महज़ भावनात्मक बात नहीं, यह कर्मों के फल का एक सनातन भय है जो हर अत्याचारी को महसूस होना चाहिए।
न्यायिक सजगता और मुख्यमंत्री की नेकनीयती का अपमान?
यह जगजाहिर है कि सतर्कता विभाग की कार्यप्रणाली पर उठते सवालों के बीच, माननीय उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। श्रीमती भंडारी मामले में भगवान तुल्य न्यायमूर्ति श्री राकेश थपलियाल जी द्वारा प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल देना और इस दर्द को समझना, स्वतः ही यह प्रमाणित करता है कि विभाग के भीतर प्रक्रियात्मक और प्रशिक्षण संबंधी गंभीर खामियां मौजूद थीं, जिन्हें नज़रअंदाज़ किया जा रहा था।
उत्तराखंड के लोकप्रिय और ईमानदार मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी बार-बार एक स्वच्छ, पारदर्शी और भ्रष्टाचार-मुक्त उत्तराखंड बनाने का अपना संकल्प दोहराते हैं। उनकी नीयत पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता। लेकिन हकीकत क्या है (haqiqatkyahai) यह सवाल करने पर मजबूर है कि क्या सतर्कता विभाग (vigilance department) की ज़मीनी कार्रवाइयां मुख्यमंत्री की इस नेकनीयती के साथ न्याय कर रही हैं? या फिर, ईमानदार अधिकारियों को कथित तौर पर फर्जी विजिलेंस केस (uttarakhand fake vigilance case) में फंसाकर एक भय और आतंक का राज स्थापित किया जा रहा है, जो मुख्यमंत्री के 'भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड' के विज़न के ठीक विपरीत है?
निष्कर्ष: दिखावे से आगे बढ़कर न्याय करे विभाग
हकीकत क्या है (haqiqatkyahai) का स्पष्ट मानना है कि महज़ प्रशिक्षण आयोजित कर देने से सतर्कता विभाग उत्तराखंड (Vigilance Uttarakhand) अपने कथित पापों से मुक्त नहीं हो सकता। यदि विभाग और इसके मुखिया डॉ. वी. मुरुगेशन अपनी विश्वसनीयता पुनः स्थापित करना चाहते हैं, तो उन्हें केवल भविष्य की बातें करने के बजाय अतीत के पन्ने भी पलटने होंगे।
तत्काल आवश्यकता है उन सभी पुराने मामलों की एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समीक्षा की, जहाँ फर्जी ट्रैप (fake trap), SOP उल्लंघन (sop fraud), या सबूतों के अभाव (fake bribe case without evidence) के बावजूद कार्रवाई करने के गंभीर आरोप लगे हैं। पीड़ितों को न्याय मिलना चाहिए और दोषी अधिकारियों (चाहे वे कितने भी ऊँचे पद पर क्यों न हों) की जवाबदेही तय होनी चाहिए। जब तक विभाग पारदर्शिता नहीं अपनाता, अपनी गलतियों को स्वीकार कर सुधार नहीं करता, और उन परिवारों के आंसू नहीं पोंछता जिन्हें कथित तौर पर बिना वजह बर्बाद किया गया, तब तक ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम जनता की नज़रों में मात्र एक दिखावा, एक ढोंग ही समझे जाएंगे। हकीकत क्या है (haqiqatkyahai) इस पूरे प्रकरण पर अपनी पैनी नज़र बनाए रखेगा और सच को सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध रहेगा, क्योंकि न्याय होना ही नहीं चाहिए, होते हुए दिखना भी चाहिए।