Rabindranath Tagore Birth Anniversary: रोशनी जिनके साथ चलती थी

भारत का राष्ट्र-गान ‘जन गण मन’ और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार बांङ्ला’ के रचयिता एवं भारतीय साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर की जन्म जयंती हर साल 7 मई को मनाई जाती है। वे एक महान एवं विश्वविख्यात कवि, लेखक, साहित्यकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और चित्रकार थे। उन्हें बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा, युगस्रष्टा एवं युग-निर्माता माना जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी अनूठी, हृदयस्पर्शी एवं आध्यात्मिक रचनाओं के लिए लोग गुरुदेव कहकर पुकारते हैं। उनका जन्मदिन केवल जन्म का जश्न मनाने के लिए नहीं है, बल्कि उनके विचारों और मूल्यों को याद करने और उनके सद्भाव, संपूर्णता और अखंडता के आदर्शों और आकांक्षाओं के अमूल्य योगदान का सम्मान करने का भी एक अवसर है। टैगोर एक ऐसे दिव्य एवं अलौकिक व्यक्ति एवं समाजक्रांति के प्रेरक थे, रोशनी जिनके साथ चलती थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं। उनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। उन्होंने बैरिस्टर बनने की इच्छा में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया किन्तु 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश लौट आए। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था। उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया; बंगाली और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच और पटकथाएं वहां नियमित रूप से प्रदर्शित हुईं थीं। टैगोर के सबसे बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे एवं दूसरे भाई सत्येंद्रनाथ कुलीन और पूर्व में सभी यूरोपीय सिविल सेवा के लिए पहले भारतीय नियुक्त व्यक्ति थे। एक भाई ज्योतिरिंद्रनाथ, संगीतकार और नाटककार थे एवं इनकी बहिन स्वर्णकुमारी उपन्यासकार थीं। टैगोर ने लगभग 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएं तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ध्रूवपद शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं एवं संवेदनाओं के अलग-अलग रंग प्रस्तुत करते हैं।इसे भी पढ़ें: Shahu Maharaj Death Anniversary: महान योद्धा होने के साथ समाज सुधारक भी थे शाहू महाराज, पिछड़ी जातियों के लिए लागू किया था आरक्षणगुरुदेव टैगोर की कविताओं में हमें अस्तित्व के असीम सौन्दर्य, प्रकृति और भक्ति के दर्शन होते हैं। उनकी बहुत-सी कविताएं प्रकृति के सौन्दर्य से जुड़ी हैं। गुरुदेव ने जीवन के अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया। इसमें युग का संशय, मोह, क्लान्ति और निराशा के स्वर प्रकट हुए हैं। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, उनकी रचनाओं में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर सामने आया। टैगोर और महात्मा गाँधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा। जहां गांधी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। लेकिन दोनों एक दूसरे का बहुत अधिक सम्मान करते थे। एक समय था जब शान्ति निकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मंचन करके धन संग्रह कर रहे थे, उस समय गांधीजी ने टैगोर को एक बड़ी राशि का अनुदान का चेक दिया था।टैगोर के कई गीतों और कहानियों ने मानव चेतना को बदलने और कार्य करने के लिए साहस और प्रतिबद्धता को प्रेरित किया। उन्होंने कला का अभ्यास कला के लिए नहीं किया, न ही आत्म-अभिव्यक्ति के तरीके के रूप में और कम से कम मनोरंजन के लिए तो कत्तई नहीं किया, बल्कि उनकी कला भी नये मानव एवं नये विश्व की संरचना से प्रेरित थी। उनकी कला जीवन के गहरे अर्थ को स्पष्ट करने और आत्मा को ठीक करने की पेशकश थी। अपने शिल्प के उस्ताद के रूप में, टैगोर ने कविता की शुद्धता को जीने के उद्देश्य के साथ जोड़ा। उन्होंने न केवल अपने जीवन में मृत्यु, अवसाद और निराशा के कारण अनुभव किए गए दुख और पीड़ा को ठीक किया, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज के भीतर अन्याय और असमानता के घावों को भरने के लिए भी काम किया। उन्होंने उन्नत कृषि, अच्छे स्कूलों, आरामदायक आर्थिक स्थितियों और बेहतर जीवन स्तर के माध्यम से मानव समुदायों के बाहरी विकास के लिए काम किया, लेकिन साथ ही उन्होंने आत्मा के नवीनीकरण, आत्मा की देखभाल, हृदय को पोषण और कल्पना को पोषित करने के माध्यम से आंतरिक विकास पर जोर दिया। वे एक ऐसे पुरुषार्थी पुरुष का महापुरुष के रूप में जाना पहचाना नाम है, जिन्होंने हर इंसान के महान् बनने का सपना संजोया और उसके लिये उनके हाथ में सुनहरे सपनों को साकार होने की जीवनशैली भी सौंपी।टैगोर गहन आध्यात्मिक एवं साधक पुरुष थे, उन्होंने अध्यात्म के गहन रहस्यों को उद्घाटित किया। उनके अनुसार मौन की भाषा शब्दों की भाषा से किसी भी रूप में कमजोर नहीं होती, बस उसे समझने वाला चाहिए। जिस प्रकार शब्दों की भाषा का शास्त्र होता है, उसी प्रकार मौन का भी भाषा विज्ञान होता है। मौन को समझा तो जा सकता है, पर समझाया नहीं जा सकता। संभवतः इसीलिए रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि मौन अनंत की भाषा है। टैगोर अध्यात्म एवं विज्ञान के समन्वयक थे। टैगोर ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और भौतिक कल्याण के साथ आध्यात्मिक विकास की आवश्यकता व्यक्त की। एक के बिना दूसरा एक पैर पर चलने जैसा है। वे आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व निर्माण के प्रेरक थे। इस संतुलित और समग्र विश्वदृष्टि की अब पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है, क्योंकि यह हमारे और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी और लचीले भविष्य के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता एवं शर्त है। शुद्ध तर्क और शुद्ध भौतिकवाद उतने ही विनाशकारी हैं, जितने कि विशुद्ध रूप

May 6, 2025 - 18:39
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Rabindranath Tagore Birth Anniversary: रोशनी जिनके साथ चलती थी
Rabindranath Tagore Birth Anniversary: रोशनी जिनके साथ चलती थी

Rabindranath Tagore Birth Anniversary: रोशनी जिनके साथ चलती थी

Haqiqat Kya Hai - इस महीने हमें एक विशेष अवसर मिलता है, जब हम भारतीय साहित्य के अद्वितीय जादूगर रवींद्रनाथ ठाकुर की जयंती मनाते हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर, जो बांग्लादेश के कोलकाता में 7 मई 1861 को जन्मे थे, अपने समय के सबसे प्रभावी कवि, लेखक, संगीतकार और दार्शनिक माने जाते हैं।

रवींद्रनाथ ठाकुर का जीवन और उपलब्धियाँ

रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपनी लेखनी से लाखों लोगों को प्रभावित किया। उन्हें 1913 में 'नोबेल पुरस्कार' से सम्मानित किया गया, वह पहले एशियाई थे जिन्होंने यह पुरस्कार जीता। उनकी कविताएँ और कहानियाँ न केवल साहित्यिक कृतियाँ हैं, बल्कि उनमें भारतीय संस्कृति और जीवन की गहराई भी छिपी हुई है। उन्होंने 'गितांजलि' जैसी बहुचर्चित काव्य रचनाएँ लिखीं, जो आज भी प्रसिद्ध हैं।

संगीता और संगीत

रवींद्रनाथ ठाकुर केवल एक कवि नहीं थे; वह एक महान संगीतकार भी थे। उन्होंने 'रवींद्र संगीत' की संकल्पना की, जो कि भारतीय संस्कृति में एक नवाचार था। उनके संगीत के बोल और सुर दोनों ही आज भी सुनाए जाते हैं। ठाकुर की रचनाएँ हमेशा से प्रेरणादायक रही हैं, जो हमारे समाज के विभिन्न पहलुओं को छूती हैं।

उनकी शिक्षाएँ और दर्शन

रवींद्रनाथ ठाकुर ने शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान दिया। उन्होंने 'विश्व भारती विश्वविद्यालय' की स्थापना की, जहां छात्रों को न केवल शैक्षिक ज्ञान बल्कि जीवन के मूल्यों की भी शिक्षा दी जाती थी। उनकी सोच थी कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि मानवता और संस्कृति की सेवा करना भी है।

रवींद्रनाथ के अद्वितीय दृष्टिकोण

रवींद्रनाथ का जीवन दर्शन हमें आत्मनिर्भरता, स्वतंत्रता और मानवीय मूल्यों की महत्ता के बारे में सिखाता है। वे हमेशा इस बात का जोर देते थे कि मानवता की सबसे बड़ी पहचान उसकी सहजता और दया में छिपी है। उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं।

निष्कर्ष

रवींद्रनाथ ठाकुर का योगदान साहित्य और मानवता के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ चुका है। उनकी जयंती के इस अवसर पर हमें यह सोचने का मौक़ा मिलता है कि हम उनके विचारों को अपने जीवन में कैसे उतार सकते हैं। उनके अद्वितीय दृष्टिकोण और विचार आज भी हमारे समाज के लिए प्रासंगिक हैं।

उनकी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने हमें सिखाया कि जीवन में सच्ची रोशनी क्या होती है। इस विशेष दिन पर, हम रवींद्रनाथ ठाकुर को याद करते हैं और उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।

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