संथाल हूल की 170वीं वर्षगांठ: शहीदों को श्रद्धांजलि और आजादी की पहली जनक्रांति की महत्त्वता

रांची/साहेबगंज : आजादी की पहली जनक्रांति संथाल हूल की 170वीं वर्षगांठ के अवसर पर देशभर The post संथाल हूल की 170वीं वर्षगांठ पर नमन: आजादी की पहली जनक्रांति के शूरवीरों को श्रद्धांजलि first appeared on radhaswaminews.

Jul 1, 2025 - 00:39
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संथाल हूल की 170वीं वर्षगांठ: शहीदों को श्रद्धांजलि और आजादी की पहली जनक्रांति की महत्त्वता
संथाल हूल की 170वीं वर्षगांठ पर नमन: आजादी की पहली जनक्रांति के शूरवीरों को श्रद्धांजलि

संथाल हूल की 170वीं वर्षगांठ: शहीदों को श्रद्धांजलि और आजादी की पहली जनक्रांति की महत्त्वता

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रांची/साहेबगंज: आजादी की पहली जनक्रांति, संथाल हूल, की 170वीं वर्षगांठ के अवसर पर पूरे देश में वीर शहीद सिदो-कान्हू, चांद, भैरव और हजारों संथाल योद्धाओं को श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। 30 जून 1855 को झारखंड के संथाल परगना की पावन भूमि पर अंग्रेजी हुकूमत और जमींदारी प्रणाली के खिलाफ उठी इस विद्रोह ने ना केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश को चेतन किया था।

संथाल विद्रोह का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

संथाल विद्रोह का नेतृत्व भगनाडीह गांव के भूमिहीन प्रधान चुन्नी मांडी के चार बेटों ने किया। सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव ने हजारों आदिवासी समुदाय के लोगों को संगठित कर ब्रिटिश शासन और उनके सहयोगियों के खिलाफ ‘करो या मरो’ का नारा लगाया। सिद्धू मुर्मू के नेतृत्व में आदिवासी योद्धाओं ने तीर-कमान और लाठियों से लैस होकर अंग्रेजों की अच्छी ट्रेनिंग प्राप्त सेनाओं का सामना किया।

संथाल विद्रोह का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

संथाल विद्रोह सिर्फ एक सशस्त्र संघर्ष नहीं था; यह भूमि, संस्कृति, पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए एक गहरा संघर्ष था। विद्रोहियों ने कई जमींदारों और महाजनों के अत्याचारों को समाप्त किया और अंग्रेज नागरिक प्रशासन पर प्रतिरोध का एक नया अध्याय लिखा। यह चंद महीनों का संघर्ष था लेकिन इसका प्रभाव इतना बड़ा था कि इसे भारत का पहला संगठित स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है। लगभग 20,000 संथाल आदिवासी इस संघर्ष में शहीद हुए, जिसने 1857 की क्रांति के लिए आधार तैयार किया।

आज के संदर्भ में संथाल हूल की प्रासंगिकता

संथाल समुदाय पर हुए शोषण और अत्याचार की कहानी आज भी दिल दहला देती है। ज़मींदारों और महाजनों द्वारा किए गए जबरन वसूली, कर्ज़ के बदले ज़मीन की छीना-झपटी और उत्पीड़न की घटनाएँ आज भी जारी हैं। आज जब हम संथाल हूल की 170वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तो यह केवल इतिहास को नहीं, बल्कि उस चेतना को अग्नि में डालने का वक्त है जिसने अन्याय के खिलाफ खड़ा होना सिखाया।

श्रद्धांजलि समारोह और आयोजन

स्वतंत्रता आंदोलन यादगार समिति के प्रतिनिधि प्रशांत सी बाजपेयी ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, "हम वीर सिदो-कान्हू और उनके साथियों को आदरपूर्वक नमन करते हैं। उनका संघर्ष हमें यह संकल्प देता है कि हम आज भी अपने हक और सम्मान की लड़ाई पूरी ताकत से लड़ेंगे। झारखंड की यह भूमि आज भी हमें प्रेरणा देती है।" इस अवसर पर झारखंड सहित देश के विभिन्न भागों में श्रद्धांजलि सभाएं, पद यात्राएं और अन्य आयोजन किए गए।

निष्कर्ष: संघर्ष का निरंतरता

संथाल हूल की 170वीं वर्षगांठ हमें याद दिलाती है कि सत्य और न्याय के लिए लड़ा जाना जरूरी है। यह विद्रोह आज भी भारत के आदिवासी समुदायों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो हमें यह सिखाता है कि एकजुट होकर ही हम अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।

लेखक: प्रिया शर्मा, राधिका देसाई, टीम Haqiqat Kya Hai

कम शब्दों में कहें तो, संथाल हूल 170वीं वर्षगांठ एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो हमें अपनी जड़ों को याद करने और अन्याय के खिलाफ डटकर खड़े होने की प्रेरणा देता है। अन्य घटनाओं के लिए, हमारी वेबसाइट पर अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.

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