रामपुर तिराहा कांड मामले में हाइकोर्ट ने की सूर्यकांत धस्माना की अपील पर सुनवाई
Amit Bhatt, Dehradun: उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान हुए बहुचर्चित रामपुर तिराहा कांड से जुड़े एक मामले में हाईकोर्ट ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता और तत्कालीन सपा नेता सूर्यकांत धस्माना की अपील पर सुनवाई की। यह मामला वर्ष 1994 में हुए गोलीकांड से संबंधित है, जिसमें एक आंदोलनकारी की मृत्यु हो गई थी और दो अन्य घायल … The post रामपुर तिराहा कांड मामले में हाइकोर्ट ने की सूर्यकांत धस्माना की अपील पर सुनवाई appeared first on Round The Watch.

रामपुर तिराहा कांड मामले में हाइकोर्ट ने की सूर्यकांत धस्माना की अपील पर सुनवाई
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देहरादून: उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान हुए बहुचर्चित रामपुर तिराहा कांड से जुड़े एक मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने वरिष्ठ कांग्रेस नेता और तत्कालीन सपा नेता सूर्यकांत धस्माना की अपील पर सुनवाई की। यह मामला वर्ष 1994 में हुए गोलीकांड से संबंधित है, जिसमें एक आंदोलनकारी की मृत्यु हो गई थी और दो अन्य घायल हुए थे। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने की।
क्या है रामपुर तिराहा कांड?
2 अगस्त 1994 को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर राज्य आंदोलनकारियों पर गोली चलने की घटना ने पूरे उत्तराखंड को हिला कर रख दिया था। इसी घटना के परिणामस्वरूप 3 अक्टूबर 1994 को कई आंदोलनकारी देहरादून स्थित सूर्यकांत धस्माना के आवास पर एकत्र हुए। उस समय हुई गोलीबारी में आंदोलनकारी राजेश रावत की मौत हो गई और दो अन्य घायल हुए। इस घटना के बाद धस्माना समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था।
क्या हुआ कोर्ट में?
मामला विशेष सीबीआई अदालत में चला, जहां साक्ष्यों के अभाव में अदालत ने धस्माना को बरी कर दिया। इसके खिलाफ सीबीआई ने वर्ष 2012 में हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जो अब तक विचाराधीन है। शनिवार को मामले की दोबारा सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अगली तारीख 30 अगस्त को निर्धारित की है। इस दिन यह निर्णय होगा कि यह मामला कौन-सी दिशा में जाएगा।
आंदोलनकारियों के लिए क्या मायने रखती है यह सुनवाई?
इस मामले की सुनवाई उत्तराखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। आंदोलनकारी और उनके परिवार के लोग इस फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उनके लिए यह एक आशा की किरण है कि न्याय की प्रक्रिया अंततः उन्हें न्याय दिला सकेगी।
हमारा दृष्टिकोण
इस मामले में हम यह देख सकते हैं कि कैसे न्याय प्रणाली में लंबित मामले और जांच का मामला कैसे आंदोलनकारियों के लिए मानसिक तनाव का कारण बन सकता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे मामलों में और तेजी से कार्यवाही हो ताकि सभी पक्षों को समय पर न्याय मिल सके।
निष्कर्ष
रामपुर तिराहा कांड का यह मामला केवल एक व्यक्ति की अपील नहीं, बल्कि पूरे आंदोलन का प्रतिनिधित्व करता है। अब यह देखना होगा कि अदालत इस मामले को किस दिशा में ले जाती है। अगले सुनवाई की तारीख पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। इन घटनाओं ने यह स्पष्ट किया है कि न्याय की प्रक्रिया लंबी और कठिन हो सकती है, लेकिन अंततः न्याय की जीत होती है।
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