पहाड़ पर मौत का फिर झपट्टा, गुलदार ने 44 साल के व्यक्ति को बनाया शिकार
Rajkumar Dhiman, Dehradun: पहाड़ पर मौत का झपट्टा बढ़ता जा रहा है। कहीं गुलदार लोगों की जिंदगी पर झपट रहे हैं, तो कहीं भालू उन्हें झंझोड़ रहे हैं। मानव और वन्यजीव के बीच बढ़ते संघर्ष में जिंदगी लगातार हार रही है। इस बार चंपावत जिले के बाराकोट विकासखंड स्थित ग्राम पंचायत च्यूरानी में गुलदार ने … The post पहाड़ पर मौत का फिर झपट्टा, गुलदार ने 44 साल के व्यक्ति को बनाया शिकार appeared first on Round The Watch.
Rajkumar Dhiman, Dehradun: पहाड़ पर मौत का झपट्टा बढ़ता जा रहा है। कहीं गुलदार लोगों की जिंदगी पर झपट रहे हैं, तो कहीं भालू उन्हें झंझोड़ रहे हैं। मानव और वन्यजीव के बीच बढ़ते संघर्ष में जिंदगी लगातार हार रही है। इस बार चंपावत जिले के बाराकोट विकासखंड स्थित ग्राम पंचायत च्यूरानी में गुलदार ने एक 44 वर्षीय व्यक्ति को अपना शिकार बना लिया।
जंगली जानवर और मानव के बीच संघर्ष का हाल देखें तो वर्ष 2000 से 2025 के बीच करीब 1200 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें अकेले गुलदार के हमलों में करीब 550 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 70 के आसपास लोग भालू के हमलों में मारे जा चुके हैं।
ताजा घटना में ग्राम पंचायत च्यूरानी के धरगड़ा तोक में मंगलवार तड़के करीब सुबह 5:30 बजे शौच के लिए निकले 44 वर्षीय देव सिंह, पुत्र कल्याण सिंह, गुलदार का शिकार बन गए। उनका शव घर से करीब 300 मीटर की दूरी पर मिला।
काफी देर तक देव सिंह के घर वापस न आने पर उनकी पत्नी ऊषा देवी ने तलाश शुरू की। बताया जा रहा है कि देव सिंह ने आंगन किनारे शौचालय बनवा रखा था। रोज की तरह शौच के लिए बाहर निकले देव सिंह पर घात लगाए बैठे गुलदार ने हमला कर दिया। किसी ने उनकी चीख तक नहीं सुनी।
हमले के बाद गुलदार देव सिंह को घसीटते हुए करीब 300 मीटर दूर जंगल में ले गया। पति की खोजबीन कर रही ऊषा देवी के साथ उनका पालतू कुत्ता भी जंगल की ओर दौड़ पड़ा। इसके बाद ग्रामीण एकजुट हो गए और खोजबीन शुरू की। कुछ ही देर में देव सिंह का खून से लथपथ शव जंगल में मिला, लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी। मृतक अपने पीछे पत्नी और दो बच्चों को छोड़ गया है।
पहाड़ की पहाड़ जैसी यह पीड़ा जाने कब खत्म होगी, लेकिन मौत की हर एक चीख वन विभाग पर एक बदनुमा दाग छोड़ती जा रही है। गुलदार और भालू के हमलों में मौत के बढ़ते आंकड़ों के साथ घायलों की संख्या पर भी गौर करना जरूरी है।
गुलदार के हमलों में करीब 2127 लोग घायल हुए हैं, जबकि भालू के हमलों में 1970 से 2013 के बीच लोग घायल हो चुके हैं। ये लोग भले ही हमलों में बच गए हों, लेकिन उनके शारीरिक और मानसिक घाव ताउम्र उनके मन-मस्तिष्क पर गहरे आघात छोड़ गए हैं।
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