पंजाब के किसानों का उबाल दमन नहीं, संवाद से थमेगा

पंजाब में आम आदमी पार्टी की नाकामयाबियां, अप्रभावी प्रशासन कौशल, असंवाद, हठधर्मिता एवं दमनात्मक कदमों से अराजकता एवं अशांति का वातावरण उग्र से उग्रतर होता जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है आप सरकार के पाप का घड़ा भर चुका है, जनता, किसान एवं अधिकारी सभी कोई त्रस्त एवं परेशान है। इसकी निष्पत्ति के रूप में सामने आ रहा है किसानों का आन्दोलन एवं आम जनता का अंतोष। ये वे ही किसान है जिनको भड़काकर, गुमराह करके एवं गलत दिशाओं में धकेल कर ‘आप’ पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने केन्द्र सरकार के सामने जटिल स्थितियां पैदा की, दिल्ली की जनता का सुख-चैन छीना था एवं खुद किसानों का मसीहा बनने का प्रयास किया था। अब उन्हीं किसानों की समस्याओं को सुनने की बजाय उन पर सख्त दमनात्मक कदम उठाये जा रहे हैं। नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली कहावत को चरितार्थ करने वाली ‘आप’ सरकार के लिये पंजाब एक जटिल समस्या एवं चुनौती बनकर खड़ी है। जैसी करनी वैसी भरनी-यही हश्र हो रहा है आप सरकार की कथनी और करनी में फर्क की राजनीति का। पंजाब की आप सरकार पहले किए गए कई चुनावी वादों को पूरा करने नाकाम रही है, हालांकि, नाटकीयता के प्रति उसकी प्रवृत्ति के अलावा, सभी चुनावी वादे एवं घोषणाएं काफी हद तक असफल रही है। पंजाब में मान सरकार के खिलाफ नाराज किसानों ने मोर्चा खोल दिया है, ’चंडीगढ़ चलो मार्च’ के लिए कूच करने वाले किसानों को भले ही पुलिस ने रोक दिया, चंडीगढ़ की सभी सीमाओं पर पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी हो और भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया हो। लेकिन बातचीत की बजाय ऐसे दमनात्मक तरीकों से किसान अधिक भडकेंगे। सवाल यह है कि कृषि प्रधान राज्य क्या किसानों के हितों की अनदेखी कर सकता है?  पंजाब में हालात अनियंत्रित, जटिल, अराजक एवं अशांत होते जा रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के एक घटक द्वारा चंडीगढ़ में नये सिरे से आंदोलन शुरू करने की चेतावनी के बाद पुलिस-प्रशासन की सख्ती से बुधवार को सामान्य जीवन व यातायात बुरी तरह से प्रभावित हुआ। चंडीगढ़ से लगते इलाकों में पुलिस के अवरोधों के चलते वाहन घंटों जाम में फंसे रहे। जिन हालातों को दिल्ली की जनता ने लम्बे समय तक झेला, वे ही हालात अब पंजाब के हो रहे हैं। पुलिस आंदोलनकारियों से निबटने के लिये सख्त एवं आक्रामक बनी रही और कई किसान नेताओं को गिरफ्तार किया गया। चंडीगढ़ के अनेक प्रवेश मार्गों को सील किया गया था और भारी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया था। सवाल उठाया जा रहा है कि ‘आप’ सरकार की यह सख्ती क्या हताशा का पर्याय है या समस्याओं से निपटने में उसकी नाकामी को दर्शाता है? बड़ी-बड़ी आदर्श की बातें करने वाली आप पार्टी का दोगला चरित्र ही उजागर हो रहा है। भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप पार्टी की सरकार, जिसे कभी बदलाव का अग्रदूत एवं जन-जन का सच्चा हितैषी माना जाता रहा है, अब खुद को प्रमुख हितधारकों- किसानों, राजस्व अधिकारियों और नौकरशाही के साथ उलझी हुई पा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि किसानों का सबसे बड़ी हितैषी मानने वाली सरकार आज किसानों की दुश्मन कैसे हो गयी? कृषिभूमि पंजाब को कैसे अशांत होने दिया जा रहा है?इसे भी पढ़ें: बदले-बदले से ‘सरदार’ नजर आते हैंआप सरकार द्वारा जिस तरह से लंबे समय से आंदोलनरत किसानों की मांगों के प्रति उदासीनता एवं उपेक्षा दर्शायी जा रही है, उससे किसानों की लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर चिंताएं पैदा होती हैं। निश्चित रूप से किसी भी लोकतांत्रिक आंदोलन के दमन से सामाजिक विभाजन और संघर्ष की स्थितियां ही गहराती है, आन्दोलन एवं विद्रोह भावना भड़कती है। दरअसल, पंजाब का संकट सिर्फ हड़ताली अधिकारियों या फिर विरोध करने वाले किसानों को लेकर ही नहीं है। यह असंतोष शासन के दोगलेपन, रीति-नीतियों, झूठे आश्वासनों एवं छलपूर्ण कार्यप्रणाली से जुड़ा है। ये स्थितियां न केवल किसान आंदोलनकारियों से सहज संवाद की कला को खोती हुई प्रतीत हो रही है, बल्कि जिसने पंजाब को नशे का जंगल बना दिया है, आतंकवाद को पनपने दिया एवं महिलाओं को नाराज किया है। निश्चित रूप से अपने राज्य के लोगों के साथ सख्ती का व्यवहार एवं झूठे वायदों ने तंत्र की नाकामी को ही उजागर करता है। निर्विवाद रूप से निराशाजनक वातावरण को यथाशीघ्र दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए, अन्यथा पंजाब की अशांति एवं अराजकता प्रांत को न केवल आर्थिक मोर्चे पर बल्कि सुशासन के मोर्चें पर धराशाही कर देगी।संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर शुरू हुआ किसान आंदोलन अब उग्र से उग्रतर होता जा रहा है। इस आन्दोलन से उपजे हालात से जनजीवन अस्तव्यस्त हो रहा है। जाम की बड़ी समस्या पर आम लोग कह रहे कि जाम किसानों की तरफ से है या सरकार की तरफ से। दरअसल, पंजाब जो लंबे समय से कृषि क्षेत्र में उदार दृष्टिकोण एवं हरित क्रांति वाला राज्य रहा है, तंत्र की संवेदनहीनता और शासन की आक्रामकता के चलते अब अशांत नजर आ रहा है। समय रहते किसानों की मांगों को पूरा न किए जाने और कारगर समाधान के लिये परामर्श न मिल पाने से निराश किसान यूनियनों ने नये सिरे से विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। जिसकी परिणति ’चंडीगढ़ चलो मार्च’ के रूप में सामने आई है। किसान नेता आरोप लगा रहे हैं कि किसानों की समस्याओं के समाधान पर संवेदनशील रवैया अपनाने के बजाय दमनात्मक कदम उठाये जा रहे हैं। जिसे वे देर रात छापेमारी करके किसान नेताओं की गिरफ्तारी और चंडीगढ़ की सीमाएं सील करने के रूप में देख रहे हैं। अपनी हार एवं नाकामयाबियों से बौखलायी आप सरकार अधिकारियों को निलंबित एवं तबादलें कर रही है, जिससे किसानों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारियों में भी गहरा असंतोष सामने आ रहा है, वे भी तल्ख प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। राजस्व अधिकारियों ने सामूहिक अवकाश लेने के विकल्प चुनकर सरकार की समस्याओं को बढ़ा दिया है।पंजाब में आप सरकार की चुनौतियां बढ़ती जा रही है। आम लोग अब बार-बार होने वाले प्रदर्शनों, धरनों और नाकेबंदियों से ऊब चुके हैं। आप शासन की खामियां ही उ

Mar 7, 2025 - 15:39
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पंजाब के किसानों का उबाल दमन नहीं, संवाद से थमेगा
पंजाब के किसानों का उबाल दमन नहीं, संवाद से थमेगा

पंजाब के किसानों का उबाल दमन नहीं, संवाद से थमेगा

Haqiqat Kya Hai - पंजाब के किसानों का आंदोलन एक बार फिर सुर्खियों में है। किसानों द्वारा उठाए गए मुद्दे और उनकी आवाज़ को दबाने के बजाय, संवाद के माध्यम से ही इसका समाधान किया जा सकता है। यह लेख इस मुद्दे की जड़ों, हालात और संभावना को आंकने का प्रयास करेगा। यह लेख टीम नेटानागरी द्वारा लिखा गया है।

किसानों की स्थिति और मुद्दे

पंजाब में किसान लंबे समय से विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहे हैं। महंगाई, फसल की सही कीमत न मिलना, और कृषि कानूनों के खिलाफ जताई गई नाराजगी इनकी मुख्य चिंताएँ हैं। हाल ही में, प्रदर्शनकारियों ने सरकार के सामने अपने मुद्दों को उठाया, जिससे स्थिति और भी तंग हो गई है। हालांकि, इस प्रकार के आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य अपनी समस्याओं को न्यायपूर्ण तरीके से उठाना होता है।

संवाद का महत्व

किसानों की समस्याओं का हल दमन से नहीं, बल्कि खुली संवाद से निकाला जा सकता है। जब सरकार और किसान दोनों पक्ष एक दूसरे की बात सुनेंगे, तो कई लाभकारी नतीजों की ओर बढ़ सकते हैं। संवाद से किसान अपनी कठिनाइयों को बता सकते हैं, वहीँ सरकार अपनी नीतियों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकती है। उदाहरण स्वरूप, यदि सरकार खेती से संबंधित नीतियों को समझने और पुनः विचार करने के लिए तैयार है, तो इससे किसान-सरकार के संबंध बेहतर हो सकते हैं।

समाधान की संभावनाएँ

किसान आंदोलन की समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए कई तरीके हो सकते हैं। किसानों को उनकी फसलों की उचित कीमत सुनिश्चित करने के उपायों के साथ-साथ कृषि उत्पादन की बढ़ती लागत को कम करने की दिशा में भी कुछ कदम उठाने की जरूरत है। यदि सरकार और किसान मिलकर संवाद करेंगे, तो समस्या का समाधान ढूँढना आसान हो सकता है।

निष्कर्ष

अंत में, पंजाब के किसानों के मुद्दे का समाधान केवल संवाद के माध्यम से ही संभव है। उनकी मांगें सुननी चाहिए और सरकारी नीतियों में उचित परिवर्तन की दिशा में काम करना चाहिए। दमन का तरीका महज अस्थायी हो सकता है, लेकिन सामंजस्यपूर्ण संवाद ही स्थायी समाधान का रास्ता है। इस दिशा में बढ़ने की अपील करते हुए, सभी पक्षों को एक साथ बैठकर विचार-विमर्श करना चाहिए ताकि किसानों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

जहाँ तक चीज़ों को देखा जाता है, संवाद ही विकास और सुधार का मुख्य हथियार है। इसलिए समय की मांग है कि हम एक साथ बैठकर इस दिशा में काम करें। अधिक जानकारी के लिए, विजिट करें haqiqatkyahai.com.

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