आईएफएस ने दिया जीवन और स्वतंत्रता हवाला, विभाग ने दिया टका सा जवाब
Rajkumar Dhiman, Dehradun: जब एक वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी को ही अपने खिलाफ हुई विभागीय कार्रवाई की जानकारी पाने के लिए आरटीआई में जूझना पड़े, तो आम नागरिकों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारी राहुल की ओर से मांगी गई सूचना पर शासन के लोक सूचना अधिकारी ने … The post आईएफएस ने दिया जीवन और स्वतंत्रता हवाला, विभाग ने दिया टका सा जवाब appeared first on Round The Watch.
Rajkumar Dhiman, Dehradun: जब एक वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी को ही अपने खिलाफ हुई विभागीय कार्रवाई की जानकारी पाने के लिए आरटीआई में जूझना पड़े, तो आम नागरिकों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारी राहुल की ओर से मांगी गई सूचना पर शासन के लोक सूचना अधिकारी ने न केवल “जीवन और स्वतंत्रता” के आधार पर भी 48 घंटे में सूचना देने से इनकार किया, बल्कि “जांच लंबित होने” का हवाला देकर आवेदन ही खारिज कर दिया।
यह पूरा मामला सूचना आयोग तक पहुंचा, जहां राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने लोक सूचना अधिकारी की दलीलों को सिरे से खारिज करते हुए तीखी टिप्पणी की कि “सूचना का अधिकार अधिनियम पारदर्शिता के लिए है, न कि उससे बचने के बहाने ढूंढने के लिए।”
यह है पूरा मामला
वर्ष 2004 बैच के आईएफएस अधिकारी राहुल ने शासन से दो अलग-अलग आरटीआई आवेदन दायर किए थे। पहले आवेदन में उन्होंने यह जानकारी मांगी थी कि “क्या सीबीआई ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत मेरे विरुद्ध जांच या अन्वेषण के लिए राज्य सरकार से धारा 17(क) के अंतर्गत अनुमति प्राप्त की है? यदि हां, तो उसकी प्रति उपलब्ध कराई जाए।” दूसरे आवेदन में उन्होंने यह भी पूछा था कि “कालागढ़ वन प्रभाग के पाखरो टाइगर सफारी प्रकरण में जनवरी 2022 से अब तक की अनुशासनिक कार्रवाई की समस्त पत्रावली एवं नोटशीट की प्रति दी जाए।”
विभाग ने दिया टका-सा जवाब
लोक सूचना अधिकारी ने दोनों ही आवेदनों पर एक ही जवाब दिया, “प्रकरण न्यायालय में लंबित है और सीबीआई जांच गतिमान है, इसलिए सूचना नहीं दी जा सकती।” राहुल ने इस रवैये के खिलाफ राज्य सूचना आयोग में अपील दायर की। अपील दायर किए जाने के बाद इतना जरूर हुआ कि सीबीआई अनुमति संबंधी जानकारी उन्हें दे दी गई, लेकिन विभागीय कार्रवाई से जुड़ी जानकारी अब भी रोक दी गई।
सूचना आयोग की सख्त टिप्पणी
राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने सुनवाई में पाया कि लोक सूचना अधिकारी ने जानबूझकर मामले को उलझाया। आयोग ने यह भी उल्लेख किया कि अधिकारी राहुल केवल वर्ष 2022 में दी गई चार्जशीट पर हुई कार्रवाई की जानकारी मांग रहे थे, न कि 2025 में दी गई नई चार्जशीट पर।
सूचना आयोग की सुनवाई के दौरान शासन के लोक सूचना अधिकारी राजीव मिश्र ने केंद्रीय सूचना आयोग और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि सूचना नहीं दी जा सकती है और सूचना आयोग भी इन आदेशों के अलोक में उचित निर्णय लें। राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने लोक सूचना अधिकारी को आदेश दिया था प्रकरण से संबंधित मूल पत्रावली को प्रस्तुत किया जाए। हालांकि, पत्रावली प्रस्तुत नहीं की गई।
ऐसे में स्पष्ट है कि लोक सूचना अधिकारी की सूचना देने की मंशा नहीं है। वह अप्रासंगिक सूचना का अधिकार अधिनियम की धाराओं एवं अन्य आदेशों का उल्लेख करते हुए गैर- जरूरी ढंग से सूचना की राह में बाधा पहुंचा रहे हैं। निर्देश के बाद भी लोक सूचना अधिकारी ने पत्रावली प्रस्तुत न किए जाने का कारण बताया कि उच्चाधिकारियों की अनुमति प्राप्त नहीं थी। लेकिन, उच्चधिकारियों के नाम नहीं बताए गए। जिस कारण उन्हें पक्षकार भी नहीं बनाया जा सका।
आयोग ने कहा कि लोक सूचना अधिकारी ने यह नहीं बताया है कि किस तरह मांगी गई सूचना देने से जांच प्रभावित हो सकती है। आयोग ने भी ऐसे मामलों में न्यायालयों के आदेशों का हवाला दिया। जिसमें स्पष्ट हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने जांच पूरी करने के लिए 03 माह का समय दिया था। यहां तो वर्ष 2025 में सूचना मांगी जा रही है कि वर्ष 2022 में दी गई चार्जशीट पर क्या कार्रवाई की गई। साथ ही दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश में साफ किया गया है कि सूचना देने पर जांच पर क्या असर पड़ेगा, यह साबित करने का दायित्व लोक प्राधिकारी पर है। इस मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया।
राज्य सूचना आयुक्त भट्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यहां सूचना कोई तृतीय पक्ष नहीं, बल्कि स्वयं वह अधिकारी मांग रहा है, जो कार्रवाई के दायरे में है। उन्होंने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम का प्राविधानों का प्रयोग सूचना में बाधा उत्पन्न करने में नहीं, बल्कि इस अधिनियम के प्रति सदमंशा रखते हुए किया जाए। लिहाजा, लोक सूचना अधिकारी को एक सप्ताह के भीतर सूचना देने का आदेश जारी किया गया।
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