शिक्षकों का आक्रोश: चयन/प्रोन्नत वेतनमान पर इंक्रीमेंट न देने के शासनादेश के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी

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Dec 21, 2025 - 00:39
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शिक्षकों का आक्रोश: चयन/प्रोन्नत वेतनमान पर इंक्रीमेंट न देने के शासनादेश के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी

देहरादून। उत्तराखंड सरकार के हालिया शासनादेश से शिक्षक समुदाय में भारी रोष व्याप्त है। उत्तराखंड सरकारी वेतन (प्रथम संशोधन) नियमावली 2025 के तहत चयन एवं प्रोन्नत वेतनमान पर दी जाने वाली एक अतिरिक्त वार्षिक वेतनवृद्धि केवल शैक्षणिक संवर्ग (शिक्षकों) के लिए समाप्त कर दी गई है, जबकि अन्य राज्य कर्मचारियों एवं निगम कर्मचारियों को यह लाभ जारी रहेगा। शिक्षक संगठनों ने इसे सरकार की हठधर्मिता करार देते हुए सड़क से कोर्ट तक संघर्ष की चेतावनी दी है।

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शिक्षक नेताओं का कड़ा विरोध

एससीईआरटी अध्यक्ष विनय थपलियाल ने कहा कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप प्रदेश के करीब 1.5 लाख राज्य कर्मचारियों एवं 50 हजार निगम कर्मचारियों को चयन/प्रोन्नत वेतनमान पर इंक्रीमेंट का लाभ दिया जा रहा है। केवल शिक्षकों को इससे वंचित करना स्पष्ट भेदभाव है। उन्होंने चेताया कि शिक्षक इस अन्याय के खिलाफ सड़कों पर उतरेंगे और हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।

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क्या है संशोधन का विवाद?

उत्तराखंड सरकारी वेतन नियमावली 2016 के प्रस्तर 13 के उपनियम (i) एवं (ii) में 1 जनवरी 2016 से प्रोन्नति, समयमान या चयन वेतनमान पर एक अतिरिक्त वेतनवृद्धि का प्रावधान था। 2025 के प्रथम संशोधन में इस लाभ को केवल शिक्षकों के लिए हटा दिया गया और इसे 1 जनवरी 2016 से ही प्रभावी बताया गया।

 

नतीजतन, जिन शिक्षकों को 2016 से यह लाभ मिला, उनके वेतन का पुनर्निर्धारण 2019 के शिक्षा विभाग के शासनादेश के अनुसार किया जाएगा, जिससे कई शिक्षकों को वित्तीय नुकसान होगा।

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पिछला विवाद और न्यायिक हस्तक्षेप

2019 में शिक्षा विभाग के शासनादेश में अतिरिक्त वेतनवृद्धि का उल्लेख न होने से कई शिक्षकों से वसूली शुरू की गई थी। जिन शिक्षकों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, उन्हें राहत मिली और वसूली पर रोक लगी। उच्च न्यायालय ने शिक्षकों के पक्ष में फैसला देते हुए वसूली वापस करने के आदेश दिए। अब नया संशोधन पुराने लाभ को रेट्रोस्पेक्टिवली (पीछे से प्रभावी) समाप्त कर रहा है, जिसे शिक्षक मनमाना बता रहे हैं।

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संवैधानिक आधार पर चुनौती

शिक्षक संगठनों का तर्क है कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) एवं अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) का उल्लंघन है। समान परिस्थितियों में केवल एक संवर्ग को अलग रखना मनमाना वर्गीकरण है।

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साथ ही, वर्षों से मिल रहे लाभ को अचानक छीनना ‘वैध अपेक्षा के सिद्धांत’ (Doctrine of Legitimate Expectation) का हनन है। यदि राज्य कोई ठोस तर्कसंगत आधार (Intelligible Differentia) नहीं दिखा पाता, तो यह नियम असंवैधानिक घोषित हो सकता है।

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