Sambhaji Maharaj Birth Anniversary: मराठा साम्राज्य के वीर योद्धा थे संभाजी महाराज, जानिए क्यों कहा जाता था 'छावा'
आज ही के दिन यानी की 14 मई को छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म हुआ था। वह मराठा साम्राज्य के वीर और साहसी योद्धा थे। संभाजी महाराज सिर्फ एक योद्धा नहीं बल्कि विद्वान, धार्मिक सहिष्णुता और वीरता के भी प्रतीक थे। राजकुमार होने के नाते छोटी उम्र में ही संभाजी को युद्ध अभियानों और राजनीतिक चालों का अनुभव हो गया था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर संभाजी महाराज के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और शिक्षामहाराष्ट्र के पुरंदर किले में 14 मई 1657 को संभाजी महाराज का जन्म हुआ था। वह मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज और सईबाई के पुत्र थे। संभाजी महाराज की देखभाल उनकी दादी राजमाता जीजाबाई ने की थी। हालांकि उनकी सौतेली मां पुतलीबाई भी उनसे स्नेह रखती थीं। लेकिन संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई ने उनके राजनीतिक जीवन में कई बार दखल किया। संभाजी को संस्कृत, मराठी, फारसी और हिंदी भाषा में दक्षता हासिल थी। वह एक विद्वान होने के साथ लेखक भी थे।इसे भी पढ़ें: Maharana Pratap Birth Anniversary: महाराणा प्रताप को कहा जाता है देश का पहला 'स्वतंत्रता सेनानी', जानिए दिलचस्प बातेंऔरंगजेब की कैद से भाग निकले संभाजीसंभाजी महाराज बहादुर होने के साथ चतुर राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने राजनीतिक बारीकियों को बहुत अच्छे से आत्मसात किया था। महज 9 साल की उम्र में शिवाजी महाराज उनको अपने साथ यात्रा पर ले गए। संभाजी की सोच थी कि अगर वह छोटी उम्र में मुगल दरबार की घटनाओं और राजनीति के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेंगे, तो यह भविष्य में उनके लिए उपयोगी साबित होगी। उधर औरंगजेब के इशारे पर शिवाजी महाराज और संभाजी को कैद करने का प्रयास किया गया, लेकिन शिवाजी और संभाजी फलों की टोकरी में छिपकर वहां से भाग निकले।मुगलों से संघर्षसंभाजी महाराज 1681 में मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति बने थे। उन्होंने अपने शासनकाल में सिद्धी, पोर्तुगीज, मुगलों और अन्य दुश्मनों से कई बार युद्ध किया और मराठा साम्राज्य की रक्षा की। वहीं उन्होंने कई वर्षों तक औरंगजेब की विशाल सेना से युद्ध किया। संभाजी के नेतृत्व में मुगल सेना कई बार पीछे हटने को मजबूर हुई।मृत्युहालांकि 1689 में औरंगजेब की सेना ने संभाजी को पकड़ लिया और उनसे इस्लाम धर्म कुबूल करने का आदेश दिया, लेकिन संभाजी महाराज ने धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया। जिस पर औरंगजेब की तरफ से उनको तरह-तरह की यातनाएं दी गईं। वहीं 11 मार्च 1689 को संभाजी के सिर को कलम कर दिया गया।

Sambhaji Maharaj Birth Anniversary: मराठा साम्राज्य के वीर योद्धा थे संभाजी महाराज, जानिए क्यों कहा जाता था 'छावा'
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आज ही के दिन, यानी कि 14 मई को, छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म हुआ था। वह मराठा साम्राज्य के वीर और साहसी योद्धा थे। संभाजी महाराज सिर्फ एक योद्धा नहीं बल्कि विद्वान, धार्मिक सहिष्णुता और वीरता के भी प्रतीक थे। राजकुमार होने के नाते छोटी उम्र में ही संभाजी को युद्ध अभियानों और राजनीतिक चालों का अनुभव हो गया था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर संभाजी महाराज के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में।
जन्म और शिक्षा
महाराष्ट्र के पुरंदर किले में 14 मई 1657 को संभाजी महाराज का जन्म हुआ था। वह मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज और सईबाई के पुत्र थे। संभाजी महाराज की देखभाल उनकी दादी, राजमाता जीजाबाई ने की थी, जबकि उनकी सौतेली मां पुतलीबाई भी उनसे स्नेह रखती थीं। उनकी सौतेली मां सोयराबाई ने हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में कई दफे दखल दिया। संभाजी को संस्कृत, मराठी, फारसी और हिंदी भाषाओं में दक्षता हासिल थी, और वे एक विद्वान होने के साथ-साथ लेखक भी थे।
औरंगजेब की कैद से भाग निकले संभाजी
संभाजी महाराज न केवल बहादुर थे, बल्कि एक चतुर राजनीतिज्ञ भी थे। महज 9 साल की उम्र में, शिवाजी महाराज उन्हें अपने साथ यात्रा पर ले गए। संभाजी का मानना था कि मुगल दरबार की घटनाओं और राजनीति के बारे में छोटी उम्र में जानकारी प्राप्त करना उनकी भविष्य की रणनीतियों में सहायक होगा। जब औरंगजेब के इशारे पर शिवाजी और संभाजी को कैद करने का प्रयास किया गया, तब उन्होंने फलों की टोकरी में छिपकर वहां से भाग निकले।
मुगलों से संघर्ष
संभाजी महाराज ने 1681 में मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति के रूप में गद्दी संभाली। उनके शासनकाल में, उन्होंने सिद्धी, पुर्तगाली, मुगलों और अन्य दुश्मनों के खिलाफ कई युद्ध किए और मराठा साम्राज्य की रक्षा की। संभाजी के नेतृत्व में, मुगल सेना कई बार पीछे हटने को मजबूर हुई, जो उनके युद्ध कौशल का प्रमाण है।
मृत्यु
हालांकि 1689 में, औरंगजेब की सेना ने संभाजी को पकड़ लिया और उनसे इस्लाम धर्म कुबूल करने का आदेश दिया, परंतु संभाजी महाराज ने धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया। इसके खिलाफ, उन्हें औरंगजेब द्वारा अत्यंत क्रूर यातनाएं दी गईं। अंततः 11 मार्च 1689 को संभाजी का सिर कलम कर दिया गया, जिससे उन्हें शहीद का दर्जा मिला।
संभाजी महाराज के जीवन और संघर्ष ने भारतीय इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है। उनके साहस और निष्ठा का जिक्र हर मराठा का गर्व है। आज के दिन, उनकी बर्थ एनिवर्सरी पर उन्हें याद करना हमारे लिए गर्व की बात है। वे ‘छावा’ के नाम से भी जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है ‘सूर्य की किरण’, जो उनकी वीरता को प्रदर्शित करता है।
जन्मदिवस पर उनकी वीरता और संघर्ष को स्मरण करते हुए, हमें चाहिए कि हम देश के लिए उनके योगदान को समझें और लोगों के बीच जागरूकता फैलाएं।
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