Ramdhari Singh Dinkar Death Anniversary: कलम से देश की आजादी का अलख जगाते थे रामधारी सिंह दिनकर
आज ही के दिन यानी की 24 अप्रैल को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का निधन हो गया था। वह एक राष्ट्रकवि होने के साथ जनकवि भी थे। उनकी गिनती ऐसी कवियों में की जाती हैं, जिनकी कविताएं आम आदमी से लेकर विद्वानों तक भी पसंद करते हैं। देश की गुलामी से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर ने अपनी कविताओं द्वारा व्यक्त किया है। दिनकर की कविताओं में विद्रोह, ओज, आक्रोश और क्रांति की पुकार है। तो वहीं दूसरी ओर कविताओं में कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी देखने को मिलती है। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और शिक्षाबिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में 23 सितंबर 1908 को रामधारी सिंह दिनकर का जन्म हुआ था। इनके पिता एक साधारण किसान थे। वहीं जब दिनकर 2 साल के थे, तो उनके पिता का निधन हो गया था। ऐसे में दिनकर और उनके बहन-भाई का पोषण मां ने किया था। फिर साल 1928 को उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। फिर पटना विश्वविद्यालय इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया। इसके अलावा दिनकर ने बांग्ला, संस्कृत और उर्दू का गहन अध्ययन किया। इसके बाद वह मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। भागलपुर यूनिवर्सिटी में उपकुलपति के पद पर रहे और फिर भारत सरकार के हिंदी सलाहकार बने।इसे भी पढ़ें: William Shakespeare Death Anniversary: महान नाटककार और कवि विलियम शेक्सपियर ने आज ही के दिन दुनिया को कहा था अलविदारचनाएंबता दें कि रामधारी सिंह दिनकर की पहली रचना साल 1930 के दशक में 'रेणुका' प्रकाशित हुई थी। फिर करीब तीन साल बाद रचना 'हुंकार' प्रकाशित हुई। तो देश के युवा दिनकर के लेखन से चकित रह गए। इसके अलावा दिनकर की रचना 'संस्कृति के चार अध्याय' के साल 1959 में उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया था। फिर साल 1959 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।राजनीतिक सफरकवि होने के साथ-साथ रामधारी सिंग दिनकर स्वतंत्रता सेनानी भी थे। इसके अलावा उनको राजनीति में भी रुचि थी। साल 1952 में जब पहली बार भारत की पहली संसद का गठन हुआ था। तो वह राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे और वह दिल्ली चले गए। दिनकर की फेमस पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने लिखी है। इस प्रस्तावना में पीएम नेहरु ने दिनकर को अपना 'साथी' और 'मित्र' बताया है।मृत्युवहीं 24 अप्रैल 1974 को 65 साल की उम्र में रामधारी सिंह दिनकर का बेगुसराय में निधन हो गया था।

Ramdhari Singh Dinkar Death Anniversary: कलम से देश की आजादी का अलख जगाते थे रामधारी सिंह दिनकर
Haqiqat Kya Hai
रामधारी सिंह दिनकर, भारतीय साहित्य के महान कवि और विचारक, ने अपनी लेखनी से देश की आजादी के सपनों को जगाया। आज हम उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके महत्वपूर्ण योगदान को याद करते हैं। यह लेख उनके जीवन, काव्य और स्वतंत्रता संग्राम में उनके प्रभाव पर केंद्रित है।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन एवं शिक्षा
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरी गाँव में हुआ था। उनके पिता एक साधारण किसान थे, लेकिन दिनकर की प्रतिभा और शिक्षा में रुचि ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय शिक्षा और साहित्य के प्रति समर्पित किया। दिनकर ने हिंदी की उर्दू और संस्कृत शैलियों को अपने काव्य में शामिल किया, जिससे उनकी रचनाएँ और भी समृद्ध हुईं।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी कविता “रामधारी सिंह दिनकर की कविताएँ” केवल एक काव्य संग्रह नहीं हैं, बल्कि उन दिनों की गूंज हैं जब देश स्वतंत्रता की तलाश में था। उन्होंने अपने शब्दों में ऐसी शक्ति भरी जो लोगों को एकजुट करती थी और उन्हें स्वतंत्रता के प्रति जागरूक करती थी।
प्रमुख काव्य रचनाएँ
दिनकर की कुछ प्रमुख कृतियाँ जैसे “कुरुक्षेत्र”, “उर्वशी” और “रेणु” आज भी पाठकों के बीच प्रचलित हैं। “कुरुक्षेत्र” युद्ध, नैतिकता, और मानवीय जीवन का अद्भुत मिश्रण पेश करती है। वहीं, “उर्वशी” भारत के प्राचीन मिथकों और भारतीय संस्कृति की गहराइयों को उजागर करती है।
साहित्यिक शैली और प्रभाव
रामधारी सिंह दिनकर की साहित्यिक शैली अद्वितीय थी। उनकी कविताएँ सरल भाषा में गहरे भाव व्यक्त करती थीं, जो जनता के हृदय को छू जाती थीं। उन्होंने स्वतंत्रता, वीरता और मानवता के मूल्यों को अपनी रचनाओं में बेहद प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया। अपनी लेखनी के माध्यम से, उन्होंने समकालीन समाज को जागरूक किया और उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
निष्कर्ष
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन और कार्य भारतीय साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक प्रेरणा है। वे केवल एक कवि नहीं, बल्कि एक सशक्त विचारक थे जिन्होंने लेखनी के माध्यम से देश की आजादी के प्रति लोगों में जागरूकता जगाई। हम उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करते हैं और उनके विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।
ध्यान रखने योग्य है कि रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ आज भी युवाओं को प्रेरित करती हैं। उनके विचारों और उनकी साहित्यिक धरोहर को संजोना हम सभी की जिम्मेदारी है।
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