उत्तराखंड विजिलेंस बनी 'काला धब्बा': फर्जी मुकदमों की 'संस्कृति' और बड़े अधिकारियों की 'कमाई पोस्टिंग'!
उत्तराखंड सतर्कता अधिष्ठान (Vigilance) पर गंभीर आरोप लगे हैं, जिसमें विभाग पर निर्दोषों को फँसाने के लिए 'फर्जी मुकदमे' बनाने, व्यक्तिगत लाभ के लिए नियमों का उल्लंघन करने और आंतरिक भ्रष्टाचार को छिपाने का आरोप है। खबर में कहा गया है कि हाल ही में कई 'फेक केस' कोर्ट में टिक नहीं पाए, जो विजिलेंस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं। फर्जी ट्रैप करने वाले अधिकारियों (भानु, हेम चंद्र) पर कोई कार्रवाई न होने और हल्द्वानी विजिलेंस पीओ की शासनादेश के विपरीत पोस्टिंग होने को विभाग में व्याप्त अनियमितताओं का प्रमाण बताया गया है। निष्कर्ष यह है कि भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बना यह विभाग अब खुद 'काला धब्बा' बन गया है और सरकार से इस 'कायरता' पर सख्त कार्रवाई की मांग की गई है।
देहरादून/हल्द्वानी (विशेष रिपोर्ट)।उत्तराखंड का सतर्कता अधिष्ठान (Vigilance) इन दिनों भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के बजाय, खुद भ्रष्टाचार और गंभीर अनियमितताओं के आरोपों से घिरा हुआ है। विभाग की कार्यशैली पर 'फर्जी मुकदमे' बनाने और निर्दोषों को फँसाने की 'संस्कृति' को बढ़ावा देने के गंभीर आरोप लग रहे हैं, जिससे सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति पर ही 'काला धब्बा' लग गया है।
न्याय के कठघरे में फर्जी मुकदमे विजिलेंस द्वारा पिछले कुछ समय में बनाए गए कई तथाकथित ट्रैप और भ्रष्टाचार के मामले कोर्ट में आरोप तय होने की स्टेज पर भी दम तोड़ चुके हैं। यह साफ दिखाता है कि विभाग केवल मीडिया ट्रायल और अपनी झूठी पीठ थपथपाने के लिए बेकसूरों को फंसाने में जुटा है। निर्दोषों को फँसाना अब उत्तराखंड विजिलेंस की एक स्थापित कार्यशैली बन चुकी है।
फर्जी ट्रैप अधिकारियों को खुला संरक्षण विजिलेंस विभाग के भीतर इंस्पेक्टर भानु और हेम चंद्र जैसे अधिकारियों को खुला संरक्षण मिला हुआ है, जिन्होंने श्री बिष्ट को फंसाने के लिए 'फर्जी ट्रैप' किया था। इन अधिकारियों ने केवल व्यक्तिगत ईनाम या मीडिया में वाहवाही बटोरने के लिए, नियमों के विरुद्ध जाकर प्रेस रिलीज़ जारी की थी। इस 'बड़ी गलती' (Blunder) के बावजूद, इन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इससे स्पष्ट होता है कि विजिलेंस विभाग में व्यक्तिगत मंशा और मीडिया ट्रायल के लिए किए गए 'फर्जी मुकदमों' को बढ़ावा दिया जा रहा है।
हल्द्वानी सेक्टर में शासनादेशों का उल्लंघन और 'कमाई पोस्टिंग'
आंतरिक अनियमितताओं की लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती।
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शासनादेशों का मज़ाक: विजिलेंस हल्द्वानी के प्रभागीय अधिकारी (PO) की पोस्टिंग शासनादेशों का स्पष्ट उल्लंघन करके की गई है। यह दिखाता है कि एक PO अपनी सत्ता और पैसे का दुरुपयोग करके इस 'कमाई वाली पोस्ट' पर बने रहना चाहता है। स्थानीय लोगों में खुल्लम-खुल्ला चर्चा है कि हल्द्वानी और पूरे उत्तराखंड विजिलेंस में क्या असली धांधली चल रही है।
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पुलिस एक्ट का उल्लंघन: विजिलेंस हल्द्वानी में सीओ (CO) की पोस्टिंग भी अनुबंध/अनुकंपा के आधार पर की गई है, जो पुलिस एक्ट के विरुद्ध है। इस पोस्टिंग के लिए न कोई पत्र जारी हुआ और न कोई समिति (Committee) बनी। यह सीधे तौर पर खुला भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है?
फर्जी हलफनामा और पैसा लेकर पोस्टिंग उत्तराखंड विजिलेंस ने एक शिकायत के मामले में आयोग (Ayog) को शपथपत्र (Affidavit) पर फर्जी एसओपी (SOP - Standard Operating Procedure) तक जमा करा दी, जो एक और गंभीर अनियमितता है। यह तमाम घटनाक्रम प्रथम दृष्टया (Prima Facia) यह दर्शाता है कि विजिलेंस में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों ने 'पैसे वाली' (Money Making Post) पोस्टिंग सुरक्षित करने के लिए भुगतान किया है, ताकि वे अपने कामकाज में हेरफेर कर सकें और विभाग को एक 'कठपुतली' (Puppet) की तरह चला सकें।
दिखावटी कार्रवाई: जनता की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश
एक तरफ विजिलेंस में यह आंतरिक भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है, वहीं दूसरी ओर अपनी छवि चमकाने के लिए छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई की जा रही है, जो केवल विभाग के ढोंग को उजागर करता है: विजिलेंस (सतर्कता अधिष्ठान) सेक्टर हल्द्वानी की टीम ने मस्टा वन बैरियर पर दो फॉरेस्ट गार्ड (भुवन चंद्र भट्ट और दीपक जोशी) को ₹20,000 की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया। विजिलेंस अधिकारियों ने इसे भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई बताया है, लेकिन यह कार्रवाई विजिलेंस के आंतरिक भ्रष्टाचार के आगे केवल कागजी खानापूर्ति ही लगती है।
विजिलेंस, खुद भ्रष्टाचार की गिरफ्त में आज स्थिति यह है कि विजिलेंस विभाग अपने ही विभाग पर 'काला धब्बा' लगा रहा है और खुद भ्रष्टाचार की दलदल में धंस चुका है। अब यह देखना है कि सरकार इस 'कायरता' पर क्या 'चाबुक' विजिलेंस के हीन भावना से ग्रसित अधिकारियों पर चलाती है, या केवल अपनी 'मियाँ मिट्ठू' बन कर झूठी तारीफें बटोरती रहेगी।
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