पत्रकारों की जुर्रत और जब्जे के आगे धराली आपदा की चुनौती बौनी
Rajkumar Dhiman, Dehradun: आपदा जैसे सबसे चुनौतीपूर्ण घटनाक्रमों में पत्रकारों की निगाह की जरूरत सभी को होती है। सरकार किस ढंग से और कितनी तत्परता से आपदा प्रभावितों का दर्द दूर कर रही है, इसे लाखों और करोड़ों लोगों तक पहुंचाने का एकमात्र व्यवस्थित माध्यम पत्रकार ही होते हैं। दूसरी तरफ आपदा पीड़ितों की आवाज … The post पत्रकारों की जुर्रत और जब्जे के आगे धराली आपदा की चुनौती बौनी appeared first on Round The Watch.
पत्रकारों की जुर्रत और जब्जे के आगे धराली आपदा की चुनौती बौनी
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By: Anjali Kumar, Neha Sharma, and Priya Singh
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आपदा के समय पत्रकारों की भूमिका
राजकुमार धिमान, देहरादून: आपदा जैसे चुनौतीपूर्ण मौकों पर पत्रकारों की निगरानी और तत्परता की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। जब सरकार की नीतियाँ और निर्णय आपदा प्रभावितों के दर्द को कम करने के लिए आगे बढ़ते हैं, तब उन्हें लाखों की संख्या में लोगों तक पहुँचाना पत्रकारों का काम होता है। दूसरी ओर, आपदा पीड़ितों की आवाज़ को सशक्त रूप से उठाने का जिम्मा भी पत्रकारों के कंधों पर होता है।
धराली आपदा में पत्रकारों का साहस
उत्तरकाशी की धराली आपदा के दौरान, पत्रकारों ने चुनौतियों का सामना करते हुए ग्राउंड जीरो तक पहुँचने की कोशिश की। इनकी जुर्रत के आगे धराली आपदा की विनाशकारी चुनौतियाँ बौनी साबित हुईं। इस कठिनाई का सामना करने के लिए पत्रकारों ने अपनी जान जोखिम में डालकर बाधाओं को पार किया। यह एक ऐसा साहसिक कार्य था जिसे शायद ही कोई अधिकारी अपनी जिम्मेदारी समझता हो।
सभी माध्यमों से कवरेज
आपदा की कवरेज में देश के प्रमुख समाचार पत्रों और टीवी चैनलों ने मिलकर कर्मचारियों के साथ मिलकर काम किया। दैनिक जागरण और अन्य प्रमुख समाचार पत्रों के पत्रकारों ने ग्राउंड जीरो से लेकर आवश्यक मार्गों की अपार मेहनत और संवेदनशीलता से कवरेज की। यह आपदा एक ऐसी स्थिति है जहां वैज्ञानक दृष्टिकोण से लेकर मानवता और संवेदनशीलता के पहलुओं पर विस्तृत कार्य करने की आवश्यकता होती है।
डिजिटल मीडिया का योगदान
यहाँ डिजिटल मीडिया का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बारामासा के पत्रकारों ने धराली के दुर्गम रास्तों की चुनौती को पार करते हुए घटनाक्रम को दुनिया तक पहुँचाया। पत्रकारों ने जान जोखिम में डालकर गंगनानी में क्षतिग्रस्त पुल और तबाह हुए राजमार्ग पर आगे बढ़कर अपने दायित्व का निर्वहन किया।
प्रशांत आर्य और अन्य अधिकारियों की भूमिका
उत्तरकाशी के जिलाधिकारी प्रशांत आर्य ने भी हालात का जायजा लेने की कोशिश की, लेकिन जब उन्हें पता चला कि पूरा मार्ग नदी में समा गया है, तो उन्हें भी लौटना पड़ा। आपदा के हालात में पत्रकारों की बहादुरी और प्रण को देखकर यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक सहायता की कमी के बावजूद, पत्रकारों ने जुर्रत से काम किया।
निष्कर्ष
इस प्रकार, धराली आपदा के दौरान पत्रकारों की जुर्रत और साहस ने दिखाया कि जब बात आती है सच्चाई और सुरक्षा की, तो मीडिया का कर्तव्य कोई भी खतरा झेलने से पीछे नहीं हटता। पत्रकार केवल एक कड़ी ही नहीं होते; वो समाज के संवेदनशील साक्षी होते हैं जो आपदा के समय में सच्चाई को सामने लाने के लिए अपने प्राण भी दांव पर लगाते हैं।
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