देहरादून घाटी में केदारनाथ-धराली जैसी आपदाओं की तैयारी कर रही है सरकार: धस्माना

1989 के दून घाटी अधिसूचना को खत्म कर उद्योगपतियों के लिए खोला गया रास्ता, एनजीटी The post देहरादून घाटी में केदारनाथ-धराली जैसी आपदाओं की तैयारी कर रही है सरकार: धस्माना first appeared on radhaswaminews.

Aug 8, 2025 - 00:39
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देहरादून घाटी में केदारनाथ-धराली जैसी आपदाओं की तैयारी कर रही है सरकार: धस्माना
देहरादून घाटी में केदारनाथ-धराली जैसी आपदाओं की तैयारी कर रही है सरकार: धस्माना

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लेखिका: साक्षी मिश्रा, प्रिया शर्मा, और नंदिनी राठी
टीम हक़ीक़त क्या है

परिचय

देहरादून घाटी में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार द्वारा 1989 के दून घाटी अधिसूचना को रद्द कर दिए जाने के बाद, इसका असर पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ने की संभावना बढ़ गई है। कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना ने चेतावनी दी है कि यह नीति देहरादून को केदारनाथ और धराली जैसी आपदाओं का शिकार बना सकती है।

दून घाटी अधिसूचना का रद्द होना

साल 1989 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर दून घाटी को एक विशेष अधिसूचना प्राप्त हुई थी, जिससे कि इसे पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित रखा जा सके। अब, सरकार ने इस अधिसूचना को समाप्त कर दिया है, जिसके तहत प्रदूषणकारी उद्योगों को स्थापित करने की अनुमति देने वाली नीति बनाई गई है। इससे कई प्रदूषित उद्योगों के लिए अनुमति आसान हो गई है, जो कि राज्य के प्राकृतिक संसाधनों के लिए खतरा बन सकती है।

विरोध की आवाज़

सूर्यकांत धस्माना ने चेताया है कि यदि यह स्थिति जारी रही, तो प्रदेश की पारिस्थितिकी, जलवायु और कृषि योग्य भूमि को बड़ा खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा, "यह केवल कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि यह देहरादून की आत्मा को बचाने का आंदोलन है।" उनकी याचिका को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने स्वीकार कर लिया है और इस मामले में केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।

जीवंतता की चुनौती

देहरादून घाटी भूकंप संभावित क्षेत्र के अंतर्गत आती है और यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील है। 1989 में दी गई विशेष सुरक्षा के कारण, यह क्षेत्र सुरक्षित रहा। धस्माना ने कहा है कि यदि सरकार ने इस अधिसूचना को वापस नहीं लिया, तो आने वाली पीढ़ियों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

सरकार का दृष्टिकोण

सरकार ने सार्वभौमिक विकास और उद्योग के लिए यह नीति बनाई थी, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि इसके सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव पर गहराई से विचार नहीं किया गया। इस नीति को मानवता की भलाई की बजाय कुछ उद्योगपतियों की लाभ-हानि के संदर्भ में देखा जा रहा है।

निष्कर्ष

देहरादून घाटी की सुरक्षा और स्वावलंबन के लिए धस्माना का यह आंदोलन निश्चित ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा है कि यदि यह अधिसूचना वापस नहीं ली जाती है, तो यह भविष्य में संकट का कारण बनेगी। देहरादून की जनता को अब अपनी आवाज़ उठानी होगी; और यह लड़ाई केवल प्रदूषण के खिलाफ नहीं, बल्कि इस क्षेत्र की समग्र सुरक्षा के लिए है।

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