Ramakrishna Paramahamsa Birth Anniversary: रामकृष्ण के पहले आध्यात्मिक अनुभव ने बदल दी गदाधर की जिंदगी, मां काली के हुए थे दर्शन

आज ही के दिन यानी की 18 फरवरी को भारत के महान संत और आध्यात्मिक गुरु रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। उनकी गिनती ऐसे महात्माओं में होती है, जिन्होंने एक बड़ी आबादी के मन को छुआ था। उनका संसार के सभी धर्मों पर विश्वास था। रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य भारत के एक और विख्यास आध्यात्मिक गुरु, प्रणेता और विचारक स्वामी विवेकानंद भी थे। गुरु रामकृष्ण परमहंस आध्यात्मिक चेतना की तरक्की पर जोर देते थे। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर आध्यात्मिक गुरु रामकृ्ष्ण परमहंस के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और परिवारबंगाल के कामारपुकुर गांव में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में 18 फरवरी 1836 को रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। इनका असली नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। इनके पिता का नाम खुदीराम और मां का नाम चंद्रमणि देवी था। कहा जाता है कि चौथी संतान के जन्म के समय पिता खुदीराम को स्वप्न आया कि भगवान गदाधर (भगवान विष्णु) उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे। इस कारण उनका नाम गदाधर पड़ गया। वहीं महज 7 साल की उम्र में रामकृष्ण के सिर से पिता का साया उठ गया।इसे भी पढ़ें: Ramakrishna Paramahamsa Jayanti: महान साधक थे रामकृष्ण परमहंसआध्यात्मिक अनुभवप्राप्त जानकारी के अनुसार, महज 6-7 साल की उम्र में रामकृष्ण को पहली बार आध्यात्मिक अनुभव हुआ था। वह अनुभव उनको आने वाले वर्षों में समाधि के अवस्था में ले जाने वाला था। एक दिन रामकृष्ण चावल के मुरमुरे खाते हुए धान के खेत की संकरी पगडंडियों पर टहल रहे थे। वहीं पानी से भरे बादल आसमान में तैर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे घनघोर बारिश होने वाली हो। तभी बालक रामकृष्ण ने देखा कि सारस पक्षियों का झुंड बादलों की चेतावनी के खिलाफ उड़ान भर रहा था।तभी आसमान में काली घटा छा गई और यह प्राकृतिक दृश्य इतना मनमोहक था कि  बालक रामकृ्ष्ण की पूरी चेतना उसी में समा गई और उनको सुधबुध न रही। चावल के मुरमुरे हाथ से छूटकर खेत में बिखर गए और वह अचेत होकर गिर पड़े। जब लोगों ने उनको देखा तो फौरन बचाने के लिए दौड़े और उठाकर घर ले गए। यह रामकृष्ण का पहला आध्यात्मिक अनुभव था। इसी अनुभव ने उनके परमहंस बनने की दिशा तय कर दी थी।साधना में रम गया मनमहज 9 साल की उम्र में रामकृष्ण का जनेऊ संस्कार कराया गया और धीरे-धीरे उनका मन अध्यात्मिक स्वाध्याय में रम गया। हुगली नदी के किनारे रानी रासमणि ने दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनवाया था। रामकृष्ण का परिवार इस मंदिर की जिम्मेदारी संभालता था और फिर रामकृष्ण भी इसी में सेवा देने लगे। साल 1856 में रामकृष्ण को इस मंदिर का मुख्य पुरोहित बना दिया गया और उनका मन पूरी तरह से मां काली की साधना में रम गया।स्वामी विवेकानंद के गुरुरामकृष्ण ने युवावस्था में तंत्र-मंत्र और वेदांत सीखा था। जिसके बाद उन्होंने इस्लाम और ईसाई धर्म का भी अध्ययन किया था। उनके आध्यात्मिक अभ्यासों, साधना-सिद्धियों और विचारों से प्रभावित होकर तमाम बुद्धिजीवी उनके अनुयायी और शिष्य बनने लगे। उस दौरान बंगाल बुद्धिजीवियों और विचारकों का गढ़ हुआ करता था। तभी नरेंद्र नाथ दत्त जोकि स्वामी विवेकानंद के नाम से जाने गए, वह रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए।मृत्युअपने जीवन के आखिरी दिनों में रामकृष्ण गले में सूजन की बीमारी ग्रस्त थे। डॉक्टर ने उनको गले का कैंसर बताया था, लेकिन यह बीमारी भी उनको विचलित नहीं कर पाई। इस बीमारी का जिक्र होने पर वह मुस्कुराकर जवाब देते थे और साधना में लीन हो जाते थे। हालांकि वह इलाज कराने से भी मना करते थे, लेकिन शिष्य विवेकानंद अपने गुरु परमहंस की दवाई कराते थे। वहीं 16 अगस्त 1886 को 50 साल की उम्र में रामकृष्ण परमहंस ने परम समाधि को प्राप्त किया और देह त्याग दिया।

Feb 18, 2025 - 11:39
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Ramakrishna Paramahamsa Birth Anniversary: रामकृष्ण के पहले आध्यात्मिक अनुभव ने बदल दी गदाधर की जिंदगी, मां काली के हुए थे दर्शन
Ramakrishna Paramahamsa Birth Anniversary: रामकृष्ण के पहले आध्यात्मिक अनुभव ने बदल दी गदाधर की जिंदगी, मां काली के हुए थे दर्शन

Ramakrishna Paramahamsa Birth Anniversary: रामकृष्ण के पहले आध्यात्मिक अनुभव ने बदल दी गदाधर की जिंदगी, मां काली के हुए थे दर्शन

Haqiqat Kya Hai

लेखिका: सुषमा शर्मा, टीम नेटानागरी

परिचय

रामकृष्ण परमहंस, जिनका जन्म1772 में हुआ, एक महान संत और गुरु थे, जिन्होंने अपने अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभवों के द्वारा लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया। उनका जीवन केवल साधना तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने ध्यान और ऊर्जा के आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले अनगिनत लोगों को मार्गदर्शन प्रदान किया। आज हम उनके जन्मदिन पर उनकी आध्यात्मिक यात्रा के एक महत्वपूर्ण क्षण पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जब उन्होंने मां काली के दर्शन किए थे।

पहला आध्यात्मिक अनुभव

गदाधर चट्टोपाध्याय, जो बाद में रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए, की ज़िंदगी में एक मोड़ तब आया जब उन्होंने मां काली के दर्शन किए। इस अनुभव ने उनकी सोच और व्यवहार को गहराई से प्रभावित किया। गदाधर की साधना में वृद्धि हुई, और इस अनुभव ने उन्हें भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।

मां काली के दर्शन का महत्व

उनका मां काली के दर्शन का अनुभव आध्यात्मिक रूपांतरण का प्रतीक है। उन्होंने इस अनुभव के बाद अपने अस्तित्व को पहचानने के लिए कई साधनाओं का मार्ग अपनाया। यह अनुभव न केवल उनके लिए बल्कि उनके शिष्यों और अनुयायियों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बन गया। उन्होंने सिखाया कि साधना और भक्ति के माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर की शक्ति को पहचान सकता है।

रामकृष्ण का योगदान

रामकृष्ण ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से भारतीय समाज में अद्भुत बदलाव लाया। उन्होंने जाति, धर्म और समुदाय के भेदभाव को समाप्त करने का आह्वान किया। उनकी शिक्षाएं आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनती हैं। रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाएं न केवल धार्मिक बल्कि मानवता के लिए भी प्रेरणात्मक रही हैं।

निष्कर्ष

रामकृष्ण परमहंस का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची आध्यात्मिकता केवल साधना में नहीं, बल्कि जीवन में प्रयोग करने में है। उनके दर्शन और अनुभव हमें यह बताते हैं कि हमारी अंतर्निहित शक्ति को पहचानना और उसे समझना कितना महत्वपूर्ण है। इसलिए, उनके जन्मदिन पर हमें उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करने और अपने जीवन में ध्यान और साधना का स्थान देने की प्रेरणा लेनी चाहिए।

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