Prabhasakshi Exclusive: Riyadh में हुई बैठक में नहीं बुलाये जाने से नाराज Zelenskyy के तेवर क्या दर्शा रहे हैं?
प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) से जानना चाहा कि रियाद में रूस-यूक्रेन युद्ध पर होने वाली वार्ता का क्या भविष्य रहने वाला है? हमने कहा कि यूके ने यूक्रेन को शांति सेना की पेशकश की है। इसी बीच यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि ‘यूरोप की सशस्त्र सेनाओं’ के निर्माण का समय आ गया है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रूसी राष्ट्रपति के साथ वार्ता को लेकर काफी आशान्वित नजर आ रहे हैं। आखिर चीजें किस दिशा में बढ़ रही हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि सऊदी अरब में अमेरिकी और रूसी अधिकारियों के बीच महत्वपूर्ण बैठक में यूक्रेन को आमंत्रित नहीं किया गया है जबकि बैठक में यह तय होना है कि यूक्रेन में शांति कैसे लौटेगी।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा है कि रूस के साथ तीन वर्ष से जारी युद्ध को समाप्त करने के लिए यूक्रेन की बिना भागीदारी वाली वार्ता में लिये गये किसी भी निर्णय को ‘कभी स्वीकार नहीं करेगा’। उन्होंने कहा कि वार्ता में यूक्रेन के बिना यूक्रेनी लोगों की संप्रभुता को लेकर बातचीत में लिये जाने वाले निर्णय, साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा यूक्रेन की दुर्लभ खनिज संपदा के आधे हिस्से को अमेरिकी समर्थन के लिए कीमत के रूप में दावा करने का स्पष्ट रूप से जबरन वसूली का प्रयास इस बात को बताता है कि ट्रंप यूक्रेन और यूरोप को किस तरह देखते हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन यह पहली बार नहीं है जब बड़ी शक्तियों ने वहां रहने वाले लोगों की राय के बिना नई सीमाओं या प्रभाव के क्षेत्रों पर बातचीत करने के लिए सांठगांठ की है।इसे भी पढ़ें: Prabhasakshi Exclusive: RAND Corporation Report ने China's People's Liberation Army के बारे में जोरदार खुलासा कर दिया हैब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दूसरी ओर, ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर यह कहने वाले पहले यूरोपीय नेता बन गए हैं कि वह यूक्रेन में शांति सेना तैनात करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने युद्धविराम में यूरोप की भूमिका पर चर्चा करने के लिए पेरिस में नेताओं की आपातकालीन बैठक से पहले यह प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते यूक्रेन और यूरोपीय सहयोगियों को चौंका दिया था जब उन्होंने घोषणा की थी कि उन्होंने तीन साल के संघर्ष को समाप्त करने पर चर्चा करने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से परामर्श किए बिना उनसे मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि स्टार्मर, के ट्रंप से मिलने के लिए वाशिंगटन जाने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है, लेकिन रूसी आक्रमण को विफल करने की लड़ाई में यूक्रेन का अग्रणी समर्थक रहा है। उन्होंने कहा कि वैसे एक शांति सेना रूस के साथ सीधे टकराव का जोखिम बढ़ाएगी और यूरोपीय सेनाओं को आगे बढ़ाएगी, जिनके हथियारों का भंडार यूक्रेन को आपूर्ति करने से समाप्त हो गया है और जो प्रमुख अभियानों के लिए अमेरिकी समर्थन पर बहुत अधिक निर्भर रहने के आदी हैं।ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक जेलेंस्की ने यूरोप की सशस्त्र सेनाओं के निर्माण की बात कही है तो वह इसलिए कही है क्योंकि उन्होंने देख लिया है कि ताकतवर देशों ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है। वह यूरोप की सेना की बात इसलिए कर रहे हैं ताकि यूरोपीय देशों को लगे कि वह उनकी भी चिंता कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन रियाद में हुई बैठक में यूक्रेन को नहीं बुलाये जाने से नाराज जेलेंस्की ने जो तेवर दिखाये हैं वह दर्शाते हैं कि वह अब समझ चुके हैं कि अमेरिका उनके साथ नहीं है और रूस की शर्तों पर युद्ध समाप्त होगा। ऐसे में जेलेंस्की अपने देशवासियों से भावनात्मक समर्थन हासिल करने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं लेकिन सच यह है कि यूक्रेन की जनता भी चाहती है कि चाहे जैसे भी हो यह युद्ध समाप्त हो।

Prabhasakshi Exclusive: Riyadh में हुई बैठक में नहीं बुलाये जाने से नाराज Zelenskyy के तेवर क्या दर्शा रहे हैं?
Haqiqat Kya Hai
रूस-यूक्रेन युद्ध के हालात के बीच, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने हाल ही में रियाद में हुई बैठक में शामिल न होने से नाराजगी जताई है। इस बैठक में कई प्रमुख देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, लेकिन ज़ेलेंस्की को आमंत्रित नहीं किया गया। उनकी इस नाराजगी के पीछे क्या कारण हैं और यह यूक्रेन की विदेश नीति पर क्या प्रभाव डालेगा, इसे समझना जरूरी है।
रियाद बैठक की पृष्ठभूमि
रियाद में हुई यह बैठक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा और सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी। इस बैठक में विश्व के कई शक्तिशाली राष्ट्रों ने भाग लिया, जिनमें अमेरिका, चीन, और अरब देश शामिल थे। यूक्रेन के राष्ट्रपति को न बुलाना एक बड़ी चौंकाने वाली बात थी, जिसने न केवल ज़ेलेंस्की बल्कि पूरे यूक्रेन को सुलभ किया।
ज़ेलेंस्की की नाराजगी
ज़ेलेंस्की की नाराजगी सिर्फ आमंत्रण न मिलने तक सीमित नहीं है। उनका कहना है कि यह एक गंभीर विषय है जो उनके देश की सुरक्षा और स्थिरता को प्रभावित करता है। यूक्रेन के लिए यह एक महत्वपूर्ण समय है, जब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की जरूरत है। ज़ेलेंस्की ने बैठक में न शामिल होने पर अपने देश की स्थिति को और भी विश्व स्तर पर उठाने का प्रयास किया है।
यूक्रेन की विदेश नीति पर प्रभाव
ज़ेलेंस्की की इस नाराजगी का असर यूक्रेन की विदेश नीति पर पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनकी स्थिति को मजबूत करने की उनकी कोशिशों को एक झटका लग सकता है। साथ ही, यह बात भी स्पष्ट करती है कि किन देशों के साथ यूक्रेन की प्राथमिकता बढ़ानी है और किसे सबसे पहले संवाद करना चाहिए।
दुनिया की प्रतिक्रिया
विभिन्न देशों की प्रतिक्रिया भी इस मामले में महत्वपूर्ण है। कुछ देशों ने ज़ेलेंस्की के नाराज होने को समझने की कोशिश की है और कहा है कि यूक्रेन के बिना इस तरह की बैठकें अधूरी रहती हैं। वहीं, अन्य देश इसे कोई विशेष महत्व नहीं दे रहे हैं।
निष्कर्ष
रियाद में हुई बैठक में ज़ेलेंस्की की अनुपस्थिति एक बड़ा संकेत है कि यूक्रेन की विदेश नीति में संभावित बदलाव आ सकता है। ज़ेलेंस्की ने जिस तरह अपनी नाराजगी जताई है, वह दर्शाता है कि वह अपने देश के सुरक्षा हितों के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं। आगे आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि यह स्थिति यूक्रेन और अन्य देशों के साथ उनके संबंधों को कैसे प्रभावित करेगी।
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