Dada Saheb Phalke Death Anniversary: भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाते थे दादा साहेब फाल्के, ऐसे बनाई थी पहली फिल्म
आज ही के दिन यानी की 16 फरवरी को दादा साहेब फाल्के का निधन हो गया था। उनको भारतीय सिनेमा का पितामह कहा जाता है। दादा साहेब फाल्के ने भारत की पहली मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र में बनाई थी। यह भारत की पहली पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म थी। उन्होंने फिल्म कंपनी की भी स्थापना की थी। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर दादा साहेब फाल्के के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और शिक्षाबंबई प्रेसीडेंसी के त्रिंबक में एक मराठी परिवार में 30 अप्रैल 1870 को दादा साहेब फाल्के का जन्म हुआ था। इनका असली नाम धुंडिराज फाल्के था। इनके पिता का नाम गोविंद सदाशिव फाल्के था, जोकि संस्कृत के विद्वान और हिंदू पुजारी थे। वहीं फाल्के की मां का नाम द्वारकाबाई था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा त्र्यंबकेश्वर में और मैट्रिक की पढ़ाई बॉम्बे में पूरी की। फिर साल 1885 में उन्होंने बॉम्बे के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से एक साल का ड्राइंग कोर्स पूरा किया। फिर वह महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में कला भवन में शामिल हो गए। इस साल दादा साहेब फाल्के एक फिल्म कैमरा खरीदा और उससे वह मुद्रण, फोटोग्राफी और प्रसंस्करण के साथ प्रयोग करना शुरू किया।इसे भी पढ़ें: Madhubala Birth Anniversary: महज 9 साल की उम्र से काम करने लगी थीं मधुबाला, हॉलीवुड फिल्मों का भी मिला था ऑफरकरियरकला भवन के उपकरणों के इस्तेमाल की अनुमति मिलने के बाद दादा साहेब फाल्के ने एक फोटो स्टूडियो स्थापित किया। इस स्टूडियो को श्री फाल्के एनग्रेविंग एंड फोटो प्रिंटिंग के नाम से जाना जाता है। शुरूआत में असफल होने के बाद फाल्के ने नाटक संगठनों के लिए मंच पर काम करते हुए प्रगति की। उनको नाटक में छोटी-छोटी भूमिकाएं मिलने लगीं। फिर साल 1912 में फाल्के ने एक पद संभाला और फिल्म की शूटिंग के लिए एक छोटा सा कांच का स्थान बनाया।कुछ चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से गुजरने के बाद दादा साहेब फाल्के ने अपनी पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाई। इस फिल्म का प्रीमियर बॉम्बे के ओलंपिया थिएटर में हुआ। इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और फिल्म उद्योग की स्थापना की। राजा हरिश्चंद्र से शुरू हुआ उनका करियर 19 साल तक चला। दादा साहेब फाल्के ने अपने फिल्मी करियर में 95 फिल्म और 26 शॉर्ट फिल्म बनाईं। फिर साल 1920 में उन्होंने सिनेमा जगत से रिटायरमेंट ले लिया। फिर साल 1969 में भारत सरकार ने 'दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड' देना शुरू किया। यह भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है।मृत्युवहीं 16 फरवरी 1944 को दादा साहेब फाल्के का निधन हो गया था। उन्होंने ही भारतीय सिनेमा की पहली स्क्रिप्ट लिखी थी।

Dada Saheb Phalke Death Anniversary: भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाते थे दादा साहेब फाल्के, ऐसे बनाई थी पहली फिल्म
परिचय
भारतीय सिनेमा का इतिहास दादा साहेब फाल्के के बिना अधूरा है। वे भारतीय फिल्म उद्योग के पितामह माने जाते हैं, जिन्होंने न केवल पहली फिल्म "राजा हरिश्चंद्र" बना कर एक नई Dawn की शुरुआत की, बल्कि सिनेमा को एक कला के रूप में स्थापित किया। उनकी पुण्यतिथि पर हम उनके योगदान को याद करते हैं। Haqiqat Kya Hai
दादा साहेब फाल्के: एक दृष्टिका
दादा साहेब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 को महाराष्ट्र में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत पुणे में की और आगे चलकर भारतीय संस्कृति और कला में गहरी रुचि विकसित की।
पहली फिल्म का निर्माण
फाल्के ने 1913 में "राजा हरिश्चंद्र" के निर्माण के साथ भारतीय सिनेमा की नींव रखी। यह एक मूक फिल्म थी, जिसमें उन्होंने लगभग सभी काम स्वयं किए। उन्होंने फिल्म में प्रमुख भूमिका निभाई और इसके सभी तकनीकी पहलुओं को भी संभाला।
यह फिल्म 70 मिनट लंबी थी और इसे देखने के लिए जनता में भारी उत्साह था। दर्शक सिनेमाघरों में लंबी कतारों में खड़े थे। यह फिल्म न केवल दर्शकों को लुभाने में सफल रही, बल्कि इसके माध्यम से फाल्के ने सिनेमा को एक नई पहचान भी दी।
दादा साहेब फाल्के का योगदान
फाल्के ने भारतीय सिनेमा की कई तकनीकी और कलात्मक सीमाओं को चुनौती दी। उन्होंने फिल्म निर्माण की शुरुआत में परिवहन की समस्याओं का सामना किया, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प ने उन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोका। वे सिनेमा में नवाचार लाने के लिए जाने जाते हैं।
दादा साहेब फाल्के के योगदान को याद करते हुए यह भी कहना जरूरी है कि उन्होंने भारतीय सिनेमा के लिए एक अद्वितीय मानसिकता विकसित की। उनके द्वारा स्थापित मानक आज भी फिल्म निर्माता और दर्शकों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
समापन
दादा साहेब फाल्के की पुण्यतिथि पर हमें उनके योगदान को याद करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि वे कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं भारतीय सिनेमा के इतिहास में। उनकी मेहनत और समर्पण ने भारतीय फिल्म उद्योग को ऊँचाइयों पर पहुँचाया। Haqiqat Kya Hai इस संदर्भ में हमें यह सिखाता है कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक कलात्मक अभिव्यक्ति है।
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