नेताओं के बिगड़े बोल से आहत होती राष्ट्रीयता
सेना के शौर्य पर सम्मान की बजाय अपमान के बिगड़े बोल को लेकर राजनीतिक घमासान छिड़ जाना स्वाभाविक है। कर्नल सोफिया और विंग कमांडर ब्योमिका सिंह के संबंध में क्रमशः मंत्री विजय शाह और सपा महासचिव राम गोपाल यादव द्वारा की गई टिप्पणियों पर राजनीतिक विवाद और कानूनी कार्रवाई की मांग तेज हो गई है। बड़ा प्रश्न है कि क्या धर्म और जाति के नाम पर वोट के लिए सेना और सेना से जुड़ी बेटियों के सम्मान को चोट पहुंचाई जाना उचित है? चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष वाणी का संयम अपेक्षित है। भारतीय राजनीति में बिगड़े बोल, असंयमित भाषा एवं कड़ावपन की मानसिकता चिन्ताजनक है। ऐसा लगता है ऊपर से नीचे तक सड़कछाप भाषा ने अपनी बड़ी जगह बना ली है। यह ऐसा समय है जब शब्द सहमे हुए हैं, क्योंकि उनके दुरूपयोग की घटनाएं लगातार जारी हैं।जब देश पहलगाम की त्रासद घटना एवं उसके बाद पाकिस्तान से बदला लेने की शौर्य की महत्वपूर्ण घटना के मोड़ पर खड़ा है, तब कुछ नेताओं के बिगड़े बोल बहुत दुखद और निंदनीय हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार के एक मंत्री विजय शाह एवं समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है। विजय शाह को राज्य मंत्रिमंडल से हटाने की मांग तेज हो गई है। कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ विजय शाह की विवादास्पद टिप्पणी एक ऐसा दाग है, जिसे आसानी से नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा और मामला भी दर्ज हो गया, तो आश्चर्य नहीं । देश के नेताओं व मंत्रियों को ऐसी हल्की और स्तरहीन बातों से परहेज करना चाहिए। इसे भी पढ़ें: भारत की वॉटर स्ट्राइक से बिलबिलाने लगा पाकिस्ताननफरती सोच एवं हेट स्पीच का बाजार बहुत गर्म है। राजनीति की सोच ही दूषित एवं घृणित हो गयी है। नियंत्रण और अनुशासन के बिना राजनीतिक शुचिता एवं आदर्श राजनीतिक मूल्यों की कल्पना नहीं की जा सकती। नीतिगत नियंत्रण या अनुशासन लाने के लिए आवश्यक है सर्वोपरि राजनीतिक स्तर पर आदर्श स्थिति हो, अनुशासन एवं संयम हो, तो नियंत्रण सभी स्तर पर स्वयं रहेगा और इसी से देश एक आदर्श लोकतंत्र को स्थापित करने में सक्षम हो सकेगा। युद्ध जैसे माहौल में सेना एवं उसके नायकों का मनोबल बढ़ाने की बजाय उनके साहस एवं पराक्रम पर छींटाकशी करना दुर्भाग्यपूर्ण है। चर्चा में बने रहने के लिए ही सही, राजनेताओं के विवादित बयान गाहे-बगाहे सामने आ ही जाते हैं, लेकिन ऐसे बयान एक ऐसा परिवेश निर्मित करते हैं जिससे राजनेताओं एवं राजनीति के लिये घृणा पनपती है। यह सही है कि शब्द आवाज नहीं करते, पर इनके घाव बहुत गहरे होते हैं और इनका असर भी दूर तक पहुंचता है और देर तक रहता है। इस बात को राजनेता भी अच्छी तरह जानते हैं इसके बावजूद जुबान से जहरीले बोल सामने आते ही रहते हैं। यह चिंताजनक है कि इधर के वर्षों में कुछ भी बयान दे देने की बुरी आदत बढ़ रही है। बिगड़े बोल वाले नेता बेलगाम हो रहे हैं। कोई दो राय नहीं कि पहले राजनीतिक दलों और उसके बाद सरकारों को इस मोर्चे पर अनुशासन एवं वाणी संयम का बांध बांधना चाहिए। विजय शाह करीब आठ बार चुनाव जीत चुके हैं, मतलब, अनुभवी नेता हैं, तो क्या वह चर्चा में रहने के लिए बिगड़े बोल का सहारा लेते हैं? सर्वोच्च न्यायालय में खिंचाई के बाद अब वह सफाई देने में लगे हैं। उन्होंने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा है कि उनकी टिप्पणियों को संदर्भ से बाहर ले जाया गया और उनका मकसद कर्नल कुरैशी की बहादुरी की प्रशंसा करना था। उन्होंने यह भी कहा कि कर्नल सोफिया कुरैशी मेरी सगी बहन से भी बढ़कर हैं। वह माफी भी मांग रहे हैं, तो साफ है कि उनका पद खतरे में है। अगर वह पहले ही सावधानी बरतते या गलती होते ही माफी मांग लेते, तो मामला इतना नहीं बढ़ता। विजय शाह का मामला थमा भी नहीं है कि मध्य प्रदेश के ही उप- मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने भी बिगड़े बोल को अंजाम दे दिया है। उनका मानना है कि देश की सेना प्रधानमंत्री के सामने नतमस्तक है। वास्तव में, ऐसी गलतबयानी से किसी के भी सम्मान में वृद्धि नहीं होती है। देश अभी-अभी एक संघर्ष से निकला है। यह एकजुटता और परस्पर समन्वय बढ़ाने के लिए संभलकर बोलने का समय है। राष्ट्रीय एकता एवं राजनीतिक ताने-बाने को ध्वस्त कर रहे जहरीले बोल की समस्या दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। संकीर्णता एवं राजनीति का उन्माद एवं ‘हेट स्पीच’ के कारण न केवल विकास बाधित हो रहा है, सेना का मनोबल प्रभावित हो रहा है, बल्कि देश की एकता एवं अखण्डता भी खण्ड-खण्ड होने के कगार पर पहुंच गयी है। राजनेताओं के नफरती, उन्मादी, द्वेषमूलक और भड़काऊ बोलों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने भी कड़ी टिप्पणियां की है। भाषा की मर्यादा सभी स्तर पर होनी चाहिए। कई बार आवेश में या अपनी बात कहने के चक्कर में शब्दों के चयन के स्तर पर कमी हो जाती है और इसका घातक परिणाम होता है। मुद्दों, मामलों और समस्याओं पर बात करने की बजाय जब नेता एक-दूसरे पर निजी हमले करने लगें तो यह उनकी हताशा, निराशा और कुंठा का ही परिचायक होता है। यह आज के अनेक नेताओं की आदत सी बन गई है कि एक गलती या झूठ छिपाने के लिए वे गलतियों और झूठ का अंबार लगा देते हैं। क्या यह सत्ता का अहंकार एवं नशा है? संसद में गलती एक बार अटल बिहारी वाजपेयी से भी हुई थी, उन्होंने तत्काल सुधार करते हुए कहा था कि चमड़े की जुबान है, फिसल जाती है। बेशक, अच्छा नेता वही होता है, जो गलतियां नहीं करता और अगर गलती हो जाए, तो तत्काल सुधारता है। जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि उनके अच्छे-बुरे बोल व गलत-सही कारनामे इतिहास में दर्ज हो रहे हैं। ध्यान रखना होगा, पहले केवल शब्द वायरल होते हैं, पर अब शब्द के साथ वीडियो भी वायरल होता है। ध्यान रहे, समय के साथ मीडिया का बहुत विस्तार हुआ है और उसका एक बड़ा हिस्सा ऐसी ही गलतबयानी का भूखा है। उसे ऐसे ही बिगड़े बोल वाले कंटेंट की तलाश है। अतः कम से कम देश के जिम्मेदार दलों के नेताओं को कोई भी राष्ट्र-विरोधी अप्रिय या प्रतिकूल ध्वनि नहीं पैदा

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नेताओं के बिगड़े बोल से आहत होती राष्ट्रीयता
देश की राजनीतिक फिजा में चल रहे विवादों के बीच, हाल में सेना और उसके नायकों के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों ने राष्ट्रीय भावना को आहत किया है। विशेष रूप से, मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह और समाजवादी पार्टी के महासचिव राम गोपाल यादव के बिगड़े बोल ने राजनैतिक घमासान को जन्म दिया है। क्या ऐसा करना उचित है, जहां धर्म और जाति के नाम पर वोट की राजनीति हो रही है?
बीते घटनाक्रम पर नजर
कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर ब्योमिका सिंह के बारे में किए गए टिप्पणियों के चलते यह मामला अब राजनीतिक बवाल का एक हिस्सा बन गया है। विजय शाह का विवादास्पद बयान इस बात की याद दिलाता है कि हमारे नेताओं के शब्द कितने शक्तिशाली होते हैं, और ये शब्द कब और कैसे घातक हताहत कर सकते हैं। समाज में हेट स्पीच और असंयमित भाषा की बढ़ती प्रवृत्ति ने राजनैतिक शुचिता पर सवाल उठाए हैं। ऐसे बयानों का सीधा असर हमारे सेना नायकों के प्रति सम्मान पर पड़ता है।
नेताओं की जिम्मेदारी
यदि विचार किया जाए तो यह देखना होगा कि सत्ता में बैठे या विपक्षी नेताओं को अपने शब्दों का प्रयोग कैसे करना चाहिए। उनके बिगड़े बोल न केवल उनकी राजनीति को प्रभावित करते हैं बल्कि वे एक समग्र भावना को चोट पहुंचाते हैं। विजय शाह के मामले में, उनका स्पष्टीकरण यह संकेत करता है कि वह अपने बयानों को लेकर गंभीर हैं, और यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने पद का सम्मान करें।
वाणी का संयम आवश्यक
राजनीतिक नैतिकता की अनदेखी करना चिंताजनक है। जब देश एक गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है, तो इस प्रकार के सार्वजनिक बयान न केवल राष्ट्रीय एकता को कमजोर करते हैं, बल्कि समाज में द्वेष फैलाने का कार्य करते हैं। अब समय आ गया है कि नेता सार्वजनिक बोलने से पहले उन शब्दों के प्रति सचेत रहें, जो वे बोलते हैं। राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए संयमित वाणी की आवश्यकता है।
एक नए दौर की शुरुआत
जैसे-जैसे राजनीतिक माहौल बदल रहा है, वैसे-वैसे नेतृत्व की जिम्मेदारियों में भी बदलाव आ रहा है। कठोर टिप्पणियों और बयानों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने विचार साझा किए हैं। यह सही समय है कि नेताओं को यह समझना चाहिए कि वे जो बोलते हैं, उसका गहरा प्रभाव होता है।
आखिरकार, देश के भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि हमारे नेताओं के शब्द नफरत नहीं, बल्कि एकता को प्रेरित करें। ऐसे समय में जब देश बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है, केवल एकजुट होकर ही हम विद्वेष और घृणा के खिलाफ खड़े हो सकते हैं।
इसलिए, यह जरूरी है कि हमारे नेता एक ऐसी भाषा का चयन करें जो न केवल उचित हो, बल्कि समाज को जोड़ने का कार्य भी करे। आज की राजनीति में संयम, सजगता और वाणी की मर्यादा सिखाने की आवश्यकता है ताकि हम एक समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज की ओर बढ़ सकें।
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