जंगलों में सुलगी भ्रष्टाचार की आग, पूर्व में मुख्यमंत्री ने बचाया, अब तक मंत्री जी का दामाद बेदाग
Rajkumar Dhiman, Dehradun: उत्तराखंड वन विभाग के जंगलराज में भ्रष्टाचार का जानवर खूब फल फूल रहा है। भ्रष्ट अधिकारियों के कारनामे तो चौंकाने वाले हैं ही, पूरा सिस्टम भी उन्हें बचाने में लगा रहता है। नरेंद्रनगर वन प्रभाग में हुए घपले घोटालों ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। भ्रष्ट अधिकारियों को बचाने के लिए … The post जंगलों में सुलगी भ्रष्टाचार की आग, पूर्व में मुख्यमंत्री ने बचाया, अब तक मंत्री जी का दामाद बेदाग appeared first on Round The Watch.

जंगलों में सुलगी भ्रष्टाचार की आग, पूर्व में मुख्यमंत्री ने बचाया, अब तक मंत्री जी का दामाद बेदाग
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राजकुमार धीमान, देहरादून: उत्तराखंड वन विभाग में जारी भ्रष्टाचार के सिलसिले ने एक बार फिर से ध्यान आकर्षित किया है। हाल ही में नरेंद्रनगर वन प्रभाग के अंतर्गत हुई अनियमितताओं ने सवाल उठाए हैं कि कैसे भ्रष्ट अधिकारियों का एक पूरा तंत्र उन्हें बचाने में जुटा रहता है। यह मामला न केवल प्रदेश के वन विभाग के कार्यों को संदिग्ध बनाता है, बल्कि उन नेताओं पर भी उंगली उठाता है, जिन्होंने वर्षों से इन अधिकारियों को संरक्षण दिया है।
भ्रष्टाचार का बड़ा सफर
भ्रष्टाचार की समस्या कई वर्षों से उत्तराखंड में व्याप्त है। जानकारी के अनुसार, नरेंद्रनगर वन प्रभाग में करोड़ों रुपये के गबन और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे हैं। इस मामले की में उच्च स्तर पर जांच हुई, जिसमें यह पुष्टि हुई कि विभागीय अधिकारी ने गलत तरीके से धन का प्रयोग किया। यह देखकर हैरानी होती है कि वर्षों की जांच के बाद भी किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका।
राजनीतिक संरक्षण का आरोप
बात केवल अनियमितता तक सीमित नहीं है। कुछ मामलों में तो पूर्व मुख्यमंत्री के संरक्षण की बात सामने आई है, जब जांच के दौरान एक प्रमुख सचिव को उसके साक्ष्यों के आधार पर स्थानांतरित कर दिया गया। जब जांच की गई तो डीएफओ को "अनुभवहीन" बताते हुए क्लीन चिट दे दी गई। इस प्रकार राजनीतिक हस्तक्षेप ने जांच प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाया।
घोटालों की फेहरिस्त
- बग्वासेरा में पुलिया का निर्माण कागजों में दर्शाया गया, लेकिन वास्तविकता में कोई काम नहीं हुआ।
- गजा-शिवपुरी सड़क के लिए 73 पुश्तों का कोई वास्तविक निर्माण नहीं हुआ है।
- ढालवाला में हाथी सुरक्षा दीवार का निर्माण बिना किसी टेंडर के किया गया।
- वन आरक्षी भर्ती में फर्जीवाड़ा।
भ्रष्टाचार की रिपोर्ट पर कार्रवाई की कमी
शासन ने कई उच्च अधिकारियों द्वारा की गई जांचों के बावजूद डीएफओ को बचाने का प्रयास किया। यहां तक कि जिलाधिकारी और प्रमुख सचिव की रिपोर्ट ने डीएफओ को गुनहगार माना, फिर भी डीएफओ को केवल "भविष्य में सावधानी बरतने" की सलाह देकर छोड़ दिया गया। यह सवाल उठाता है कि क्या भ्रष्ट अधिकारियों को पकड़ने के बजाय सिस्टम के अंदर ही संरक्षण दिया जाता है।
वर्तमान सरकार की भूमिका
हालांकि, वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ओर से जीरो टॉलरेंस नीति का पालन करते हुए इस बार निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद जागी है। अब शासन ने डीएफओ से जवाब तलब किया है, जो इसकी गंभीरता को दर्शाता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी दिनों में इस मामले में किस प्रकार की कार्रवाई होती है।
निष्कर्ष
उत्त्तराखंड में भ्रष्टाचार का यह मामला न केवल वन विभाग बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र के लिए एक चेतावनी है। यदि सिस्टम में सुधार की कोई कोशिश नहीं की गई, तो इस प्रकार के मामले भविष्य में भी सामने आते रहेंगे। सही समय पर कार्रवाई जरूरी है, ताकि जनता का विश्वास सरकार पर बना रहे।
इसके अलावा, प्रदेशवासियों को चाहिए कि वे इस प्रकार की अनियमितताओं पर नजर रखें और अधिकारों का प्रयोग करते हुए अपनी आवाज उठाएं।
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