Baba Amte Death Anniversary: आधुनिक गांधी के नाम से जाने जाते थे बाबा आमटे, कुष्ठ रोगियों की करते थे सेवा

आज ही के दिन यानी की 09 फरवरी को बाबा आमटे का निधन हो गया था। भारत में समाजसेवियों के नामों की लिस्ट में बाबा आमटे का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। लोग बाबा आमटे को कुष्ठ रोगियों के समाज सेवक के तौर पर जानते थे। बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों के पुनर्स्थापन और सशक्तिकरण के लिए काम किया। उस दौरान कुष्ठ रोगियों को न सिर्फ सामाजिक तौर पर अस्वीकृत किया, बल्कि तिरस्कृत भी हुआ करते थे। इसके अलावा बाबा आमटे ने वन्य जीवन संरक्षण और नर्मदा बचाओं आंदोलन सहित बहुत से सामाजिक उत्थान के लिए योगदान दिया। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर बाबा आमटे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...जन्म और परिवारबता दें कि 26 दिसंबर 1914 में मुरलीधर देवीदास आमटे का जन्म हुआ था। बाद में वह बाबा आमटे के नाम से फेमस हुए थे। इनके पिता देवी दास ब्रिटिश सरकार के एक अधिकारी थे और वर्धा जिले के धनी जमींदारों में उनकी गिनती होती थी। समृद्ध परिवार में जन्मे बाबा आमटे के पास सुख-साधन भरपूर थे। ऐसे में बाबा आमटे के शौक भी उसी के मुताबिक थे। उनको बढ़िया खाने-पहनने का शौक था और उनके पास एक बंदूक भी थी। वह शौक-शौक में शिकार के लिए जंगल रवाना हो जाते थे।माता-पिता अपने बड़ी संतान को प्यार से बाबा कहकर पुकारते थे। बड़े बेटे को किसी चीज की कमी न हो इसके लिए उनके माता-पिता खास फिक्रमंद रहते थे। उनके माता-पिता ने आमटे को एक स्पोर्ट्स कार भी दिलवाई थी और बाबा ने वकालत की पढ़ाई की और उसी पेशे को अपनी आजीविका बनाई। वहीं वर्धा में उनकी अच्छी वकालत भी चल निकली। जीवनदर्शन और सेवाभाव उन्हें आधुनिक गांधी के नाम से भी जाना जाता है।कैसे मिला बाबा नामबहुत कम लोग जानते हैं कि बाबा नाम आमटे को बचपन में ही मिल गया था। बता दे कि यह नाम उनके किसी संत-फकीर या फिर किसी आध्यात्मिक ज्ञान के कारण नहीं, बल्कि उनके माता-पिता द्वारा मिला था। दरअसल, उनके माता-पिता प्यार से उनको बाबा कहते थे। लेकिन सामाजिक असामानता उनको बहुत असहज कर दिया करती थी। बाबा आमटे को उनके सफल वकील थे बाबा आमटेयुवा अवस्था में बाबा आमटे को तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्में देखने का शौक था। इसके साथ ही वह अंग्रेजी फिल्मों की समीक्षा भी लिखा करते थे। उन्होंने एमए एलएलबी तक पढ़ाई की और फिर कुछ दिनों तक वकालत भी की। उन्होंने वर्धा में सफलतापूर्वक कानून की प्रैक्टिस की और उसमें वह सफल भी रहे।स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ावबाबा आमटे अधिक समय तक वकालत में नहीं रह सके। वह जल्द ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए और साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिए गए। जिसके बाद वह भारतीय नेताओं के डिफेंस लॉयर के रूप में काम करने लगे। इसी कारण बाबा आमटे को गांधी जी द्वारा चलाए जा रहे सेवाग्राम में समय बिताने का मौका मिला।अभय साधक गांधीवादीसेवाग्राम में ही बाबा आमटे का गांधी जी से संपर्क हुआ और इसके बाद वह गांधीवाद हो गए। उन्होंने चरखा चलाकर सूत कातने के साथ ही खादी को भी पूरी तरह से अपना लिया था। लेकिन जब गांधीजी को यह पता लगा कि बाबा आमटे ने कुछ ब्रिटिश सैनिकों द्वारा एक लड़की का भद्दा मजाक उड़ाने से बचाया। तो महात्मा गांधी ने बाबा आमटे को अभय साधक नाम दिया।कुष्ठ रोगियों की सेवाकुष्ठ रोगी तुलसीराम को जिंदा लाश के तौर पर देखकर बाबा आमटे बहुत ज्यादा असहज हो गए। बाबा आमटे ने खुद उस दृश्य का जिक्र करते हुए लिखा कि कुष्ठ रोगी को जिंदा लाश की तरह देखकर वह डर के मारे कांपने लगे और इस दृश्य ने उनको इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों की सेवा और उत्थान के लिए लगा दिया।मृत्युमहाराष्ट्र के आनंदवन में उम्र से संबंधित बीमारियों के कारण 09 फरवरी 2008 को बाबा आमटे का निधन हो गया।

Feb 9, 2025 - 12:39
 124  501.8k
Baba Amte Death Anniversary: आधुनिक गांधी के नाम से जाने जाते थे बाबा आमटे, कुष्ठ रोगियों की करते थे सेवा
Baba Amte Death Anniversary: आधुनिक गांधी के नाम से जाने जाते थे बाबा आमटे, कुष्ठ रोगियों की करते थे सेवा

Baba Amte Death Anniversary: आधुनिक गांधी के नाम से जाने जाते थे बाबा आमटे, कुष्ठ रोगियों की करते थे सेवा

Haqiqat Kya Hai

बाबा आमटे की पुण्यतिथि हर साल पूरे देश में श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। वे एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिनका जीवन कुश्ठ रोगियों की सेवा में बिता। आधुनिक गांधी के नाम से पहचाने जाने वाले बाबा आम्टे, ना केवल अपने कार्यों के लिए जाने जाते थे, बल्कि उन्होंने समाज में कुश्ठ रोग के प्रति जागरूकता फैलाने का भी कार्य किया।

बाबा आमटे का जीवन और योगदान

बाबा आम्टे का जन्म 26 दिसंबर 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा में हुआ था। उन्होंने मुंबई से अध्यापक की पढ़ाई की और बाद में एक चिकित्सक बने। जब एक बार उन्होंने कुश्ठ रोगियों की स्थिति देखी, तो उन्होंने अपना जीवन इन्हीं के सेवा में समर्पित करने का निर्णय लिया। उन्होंने न केवल इन रोगियों की चिकित्सा की, बल्कि उन्हें सामाजिक रूप से भी सशक्त बनाने की दिशा में काम किया।

कुश्ठ रोगियों के लिए सेवा

बाबा आमटे ने 1951 में 'आनंद वन' की स्थापना की, जो कुश्ठ रोगियों के लिए पहला आश्रम था। इस आश्रम में उन्होंने रोगियों का और उनके परिवारों का जीवन सरल बनाने के लिए अनेक कार्य किए। उन्होंने शिक्षा, कला, और रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए विभिन्न योजनाएं बनाईं। उनके इस कार्य ने न केवल कुश्ठ रोगियों का जीवन बदला, बल्कि समाज में उनके प्रति व्याप्त भेदभाव को भी समाप्त किया।

समाज के प्रति जागरूकता

बाबा आम्टे ने कुश्ठ रोगियों को सिर्फ चिकित्सा ही नहीं दी, बल्कि उन्हें समाज में सम्मान के साथ जीने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जन जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को बताया कि कुश्ठ रोग कोई दैवीय प्रकोप नहीं है, बल्कि यह एक साधारण चिकित्सा समस्या है जिसे समय पर इलाज करने की जरूरत होती है।

निष्कर्ष

बाबा आम्टे का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाता है कि मानवता की सेवा सबसे बड़ा धर्म है। उनकी पुण्यतिथि पर हमें यह याद करने की आवश्यकता है कि समाज में हर व्यक्ति का सम्मान होना चाहिए और हमें उनके योगदान को कभी नहीं भूलना चाहिए। बाबा आम्टे ने साबित कर दिया कि अगर मन में सच्ची चाह हो, तो हर मुश्किल को आसान बनाया जा सकता है।

बाबा आमटे के कार्यों से प्रेरित होकर हमें भी समाज के कमजोर वर्ग की सहायता करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। हम सभी को उनसे सीख लेनी चाहिए कि सेवा का कोई धर्म नहीं होता, वह तो मानवता का एक रूप है।

अधिक जानकारी के लिए, visit haqiqatkyahai.com.

Keywords

Baba Amte, Baba Amte death anniversary, modern Gandhi, leprosy patients service, social activist, Anand Van, awareness about leprosy, human service, Indian social reformer, compassion in society.

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow