जब इंडोनेशिया के लिए भारत ने चला दिया था सीक्रेट मिशन, डकोटा विमान से पीएम को उड़ाकर ले आया था हिंदुस्तान
भारत ने गणतंत्र दिवस के चीफ गेस्ट के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो को बुलाया है। उनकी पीएम मोदी औऱ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सहित विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की तस्वीरें और खबरें तो आप सभी पढ़ व देख रहे होंगे। भारत और इंडोनेशिया के बीच के संबंधों में पिछले कुछ सालों में संबंधों काफी मजबूती आई है। लेकिन क्या आपको पता है कि इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। । भारत के प्रसिद्ध राजनेता ने देश के लिए गुप्त मिशन चलाया था। इस राजनेता का नाम बीजू पटनायक था। उन्हें आम तौर पर भारत के उड़ीसा राज्य के मुख्यमंत्री के उनके कार्यकाल के रूप में याद किया जाता है, लेकिन उन्हें इंडोनेशिया में एक हीरो का दर्जा हासिल है।इसे भी पढ़ें: कई MoU पर हस्ताक्षर कर हैदराबाद हाउस में लिखी गई भारत-इंडोनेशिया की दोस्ती की नई इबारत, PM बोले- हमारा सहयोग और मजबूत होगापड़ोसी मुल्क इंडोनेशिया में डचों ने धावा बोल दिया इंडोनेशिया की स्वतंत्रता संग्राम के नेता सुकर्णों से पंडित नेहरू की व्यक्तिगत दोस्ती हुआ करती थी। इंडोनेशिया ने अपने अधिकांश इलाकों को 1946 के आखिरी महीनों में डचों यानी नीदरलैंड के कब्जे से मुक्त करा लिया था। लेकिन 1948 आते आते डचों ने एक बार फिर इंडोनेशिया पर धावा बोल दिया। मुश्किल वक्त में हरेक इंसान को अपना दोस्त याद आता है और उस वक्त सुकर्णों को अपने दोस्त नेहरू की याद आई। उन्होंने नेहरू से तत्काल मदद की गुहार लगाई। सुकर्णों ने अपने देश के राजनीतिक नेतृत्व के लिए तत्काल भारत में शरण की मांग की। नेहरू ने भी सुकर्णों की मांग को स्वीकार कर लियाष लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये था कि चारों तरफ से डच सैनिकों से घिरे इंडोनेशिया में आखिर जाएगा कौन औऱ वहां के नेतागण को सकुशल निकालकर भारत पहुंचाएगा कौन?इसे भी पढ़ें: अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी को आगे बढ़ाता भारत, इसमें इंडोनेशिया रखता है कितना महत्वपूर्ण स्थान?नेहरू ने कहा और डकोटा लेकर पहुंचे पटनायकबीजू पटनायक ने बतौर पायलट भारत के अलावा कई देशों में साहसिक अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। 1948 में डचों ने इंडोनेशिया पर धावा बोला तो भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने बीजू पटनायक को इंडोनेशिया को डचों से मुक्त कराने में मदद करने की जिम्मेदारी दी। जिसके बाद पायलट के तौर पर 1948 में ओल्ड डकोटा एयरक्राफ्ट लेकर पटनायक जकार्ता पहुंचे। उन्होंने कई विद्रोही इलाकों में दस्तक दी और अपने साथ प्रमुख विद्रोही सुल्तान शहरयार और सुकर्णो को लेकर दिल्ली आ गए थे। इसके बाद सुकर्णो आजाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने। बाद में इस बहादुरी के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई और वहां के सर्वोच्च सम्मान भूमि पुत्र से नवाजा गया।

जब इंडोनेशिया के लिए भारत ने चला दिया था सीक्रेट मिशन, डकोटा विमान से पीएम को उड़ाकर ले आया था हिंदुस्तान
Haqiqat Kya Hai
लेखक: सुमिता शर्मा, टीम नेटानागरी
परिचय
भारत और इंडोनेशिया के बीच एक महत्वपूर्ण रिश्ते के चलते, भारतीय सरकार ने एक अति विशेष संचालन को अंजाम दिया था। यह मिशन केवल एक ऐतिहासिक घटना ही नहीं, बल्कि उस समय की भू-राजनीति में भारत की एक महत्वपूर्ण रणनीति भी साबित हुआ। जानिए इस मिशन के बारे में विस्तार से।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
यह घटना 1960 के दशक में हुई थी, जब भारत और इंडोनेशिया के बीच राजनीतिक तनाव बढ़ रहा था। उस समय के प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू, ने यह सुनिश्चित किया कि दोनों देशों के संबंध स्थिर रहें। इसी बीच, भारत ने एक गुप्त योजना तैयार की, जिसमें डकोटा विमान का इस्तेमाल किया गया।
मिशन का विवरण
इस सीक्रेट मिशन का उद्देश्य इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुखर्णो के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक करना था। भारत ने अपने डकोटा विमान का इस्तेमाल करके प्रधानमंत्री नेहरू को सीधे वहां पहुंचाने का निर्णय लिया। यह एक साहसी कदम था, जिसमें सुरक्षा और विश्वास दोनों की प्रमुखता थी।
उड़ान की तैयारी और निष्पादन
विमान की उड़ान को सही समय पर और गुप्तता के साथ अंजाम देने के लिए पूरी तैयारी की गई। विमान के उड़ान भरने से पहले सभी आवश्यक सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित किया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि कोई भी जानकारी लीक न हो, ताकि मिशन सफल हो सके।
क्यों था यह मिशन आवश्यक?
सुखर्णो के साथ टेबल पर चर्चा करने के लिए यह मिशन आवश्यक था। भारत ने यह साबित करना चाहा कि वह अपने पड़ोसी देशों के साथ सामरिक संबंधों को महत्वपूर्ण मानता है। इस मिशन ने न केवल भारत की कूटनीतिक ताकत को बढ़ाया, बल्कि इंडोनेशिया के साथ उसके संबंधों को भी मजबूत किया।
निष्कर्ष
यह घटना भारत और इंडोनेशिया के रिश्तों में एक ऐतिहासिक अध्याय के रूप में दर्ज हुई। आज भी इस मिशन को भारतीय कूटनीति की एक उत्कृष्ट मिसाल के रूप में याद किया जाता है। जैसे-जैसे समय बीतता है, यह घटना बताती है कि गुप्त मिशन और रणनीति का महत्व कभी खत्म नहीं होता।
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