जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण पारदर्शिता की ओर कदम
न्यायपालिका पर जनता का भरोसा लोकतंत्र का अहम आधार है। न्यायिक प्रणाली में किसी संदेह की गुंजाइश नहीं रहे, इसके लिये न्यायपालिका में अधिक पारदर्शिता, जबावदेही एवं निष्पक्षता की जरूरत है, इसके लिये सर्वोच्च न्यायालय से निचली अदालतों तक के न्यायाधीशों को संपत्ति सार्वजनिक करने जैसे कदम उठाए जाने की अपेक्षा आजादी के अमृतकाल में तीव्रता से की जा रही थी, ताकि न्यायपालिका की पारदर्शिता को लेकर उठने वाले संदेह दूर हो सकें, यह मुद्दा जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कथित तौर पर जली हुई नोटों की गड्डी मिलने जैसी घटनाओं और उनसे उपजे विवादों के बाद गंभीर सार्वजनिक विमर्श का बन गया था। जनचर्चाओं एवं आदर्श राष्ट्र-निर्माण की अपेक्षाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने पर जो सहमति जताई है, वह सही दिशा में उठाया गया उचित एवं प्रासंगिक कदम है। इससे न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने में मदद मिलेगी और आम लोगों का उस पर भरोसा मजबूत होगा। देश में न्यायालयों को ऐसी संस्था के रूप में देखा जाता है, जो आम लोगों के लिए न्याय की आखिरी उम्मीद है। न्याय करने वाले न्यायाधीशों पर संदेह के बादल मंडराना न्याय-प्रक्रिया पर भरोसा कम करने का एक बड़ा कारण बनता रहा है। अब जनता की अपने पंच-परमेश्वरों की स्वच्छ-धवल छवि की आकांक्षा पूरी होते हुए दिखाई देना एक रोशनी बना है, जिससे न्याय प्रक्रिया के प्रति विश्वास ज्यादा मजबूत होगा। नया भारत बनाने एवं सशक्त भारत बनाने के लिये न्यायिक प्रक्रिया में सुधार एवं पारदर्शिता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी ही चाहिए।न्यायधीशों को भी अपनी संपत्ति को सार्वजनिक करने का मुद्दा बहुत पुराना रहा है। 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसके अनुसार हर न्यायाधीश को अपनी प्रॉपर्टी और देनदारियों के बारे में चीफ जस्टिस को बताना होता है। बाद में, एक और प्रस्ताव आया कि न्यायाधीश चाहें तो अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक कर सकते हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं, स्वैच्छिक था। पिछले लगभग तीन दशक में, यह मामला कई बार उठा है। सूचना का अधिकार लागू होने के बाद यह बहस भी हुई कि न्यायपालिका इसके दायरे में क्यों नहीं? इसके पीछे यही तर्क रहा कि किसी निजी जानकारी को तब तक साझा करने की जरूरत नहीं, जब तक उससे सार्वजनिक हित न जुड़े हों। 2010 और 2019 में जब सुप्रीम कोर्ट में यह केस आया था, तब इसी तथ्य को आधार बनाकर कहा गया कि जानकारी सार्वजनिक करना न्यायाधीशों की इच्छा पर है। एक तरह से यह व्यवस्था न्यायाधीशों को लगातार संदेहों के घेरे में रखती रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा का निर्णय न्यायपालिका में पारदर्शिता कायम करने वाला एक सराहनीय कदम होगा। जजों की संपत्ति सार्वजनिक करने की मांग के पीछे बड़ा तर्क भी यही दिया जाता रहा है कि जब तक जजों की संपत्ति सार्वजनिक नहीं होगी, न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के आरोपों पर ठोस कार्रवाई संभव नहीं हो सकेगी। देश में न्याय की प्रक्रिया सहज, सरल पारदर्शी एवं समानतामूलक होने के साथ आम आदमी के भरोसे वाली होनी चाहिए। इसके लिये भारत की सम्पूर्ण न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण होना चाहिए। भारतीयकरण के लिये ईमानदारी, निष्पक्षता, पारदर्शिता, जबावदेही आवश्यक मूल्य है।इसे भी पढ़ें: जज वर्मा मामले से जजों की नियुक्ति में केंद्र को मिला मौकासरकार की एक संसदीय समिति ने 2023 में सिफारिश की थी कि न्यायाधीशों के लिए संपत्ति की घोषणा अनिवार्य की जाए। हालांकि कतितय कारणों से सरकार इस मामले में आगे नहीं बढ़ी। इसका एक बड़ा कारण सरकार पर यह आरोप लगना भी बना कि सरकार न्यायपालिका में अनावश्यक राजनीतिक दखल दे रही है। लेकिन न्यायपालिका की साख के लिए उसका स्वतंत्र होना और दिखना भी जरूरी है। लेकिन सम्पत्ति की घोषणा के मामले में उन्हें अतिरिक्त सुविधा देना या उनके लिये अतिरिक्त सुविधा का होना, संदेह का कारण बनता रहा है। दरअसल, वर्तमान परिपाटी के अनुसार न्यायाधीशों के लिये निजी संपत्ति का घोषणा पत्र प्रस्तुत करना एक स्वैच्छिक परंपरा है। जिसे अनिवार्य बनाने की मांग की जाती रही है। निश्चय ही न्याय व्यवस्था के संरक्षक होने के कारण इसके स्वैच्छिक रहने पर तमाम किंतु-परंतु हो सकते हैं। यूं तो न्यायपालिका के कामकाज में कई तरह की गड़बड़ियां देखने को मिलती हैं। संपत्ति की घोषणा जैसे कई स्तरों पर न्यायिक सुधार के प्रयास आगे बढ़ाने की जरूरत नये भारत, सशक्त भारत एवं आदर्श भारत के लिये जरूरी है। अब अगर सर्वोच्च अदालत के जज खुद को भी उन कसौटियों पर कसने में नहीं हिचक रहे हैं जिन्हें वे दूसरों के लिए जरूरी मानते हैं, तो निश्चित ही इस कदम से एक सकारात्मक संदेश जरूर गया है।न्यायिक पारदर्शिता को बढ़ाने के उद्देश्य से, सुप्रीम कोर्ट के सभी 30 मौजूदा न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति को न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करके सार्वजनिक रूप से प्रकट करने पर सहमति व्यक्त की है। यह घटनाक्रम न्यायपालिका में पारदर्शिता की कमी को लेकर बढ़ती चिंताओं के बाद हुआ है, खासकर दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा से जुड़े विवाद के बाद। जिन न्यायाधीशों ने पहले ही अपनी घोषणाएं प्रस्तुत कर दी हैं, उनमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी शामिल हैं। इसे फैसले को न्याय के प्रति जनता के भरोसे को और मजबूत करने के लिहाज से सही एवं सामयिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो सुखद होने के साथ-साथ श्रेयस्कर न्याय-प्रक्रिया का द्योतक है। निश्चय ही यह एक सार्थक पहल ही कही जाएगी। इस नवीनतम प्रस्ताव के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने सामूहिक रूप से संपत्ति के खुलासे को सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाने का निर्णय लेकर जवाबदेही के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है। भारत के अनेक पड़ोसी देश

जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण पारदर्शिता की ओर कदम
लेखिका: अंजलि शर्मा, टीम नेटानागरी
Haqiqat Kya Hai
भारत में न्यायपालिका की पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण एक अहम कदम है। यह कदम न केवल न्यायपालिका में विश्वास को बढ़ाएगा, बल्कि आम जनता के बीच न्यायपालिका की कामकाजी प्रक्रिया के प्रति जागरूकता भी लाएगा। अब यह जानना महत्वपूर्ण है कि जजों की संपत्ति का खुलासा कैसे कानून व्यवस्था को मजबूत करेगा।
पारदर्शिता की आवश्यकता
आज की दुनिया में पारदर्शिता एक अहम तत्व बन चुकी है। विशेषकर न्यायपालिका में, जहां आस्था और विश्वास की आवश्यकता होती है। यह कदम हमें यह सुनिश्चित करने का अवसर देता है कि न्याय का मीटर कभी भी प्रभावित नहीं होगा। जजों द्वारा पेश किए गए संपत्ति के विवरण न केवल उनकी व्यक्तिगत संपत्ति को उजागर करेंगे, बल्कि अवैध गतिविधियों से बचने में भी सहायता करेंगे।
प्रकटीकरण प्रक्रिया
जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण एक निरंतर प्रक्रिया होनी चाहिए, जिसमें सभी न्यायाधीशों को अपनी संपत्तियों का विवरण नियमित रूप से प्रस्तुत करने की आवश्यकता होगी। यह जानकारी पारदर्शिता बनाए रखने के साथ-साथ, उनके कार्यों पर निगरानी रखने में भी मदद करेगी। इसके अंतर्गत न केवल अचल संपत्तियों, बल्कि चल संपत्तियों, निवेशों और अन्य वित्तीय विवरणों का भी शामिल होना अनिवार्य है।
जनता का कोर्ट पर विश्वास
जब जज अपनी संपत्ति के विवरण को साझा करते हैं, तो यह आम जनता के विश्वास को और भी संवर्धित करता है। जनता को न्यायपालिका में तब भी विश्वास होगा जब वे यह जानेंगे कि उनके जजों की संपत्तियों की जांच की जा सकती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि न्यायाधीशों का निर्णय कभी भी व्यक्तिगत या स्थानीय हितों से प्रभावित नहीं होगा।
निष्कर्ष
जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण निश्चित रूप से न्यायपालिका में पारदर्शिता को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल विश्वास बलवती होगा, बल्कि यह देश के कानून प्रणाली को भी एक नई दिशा देगा। हमारी समाज में ऐसा वातावरण तैयार करना आवश्यक है जहां सभी नागरिक न्यायपालिका पर विश्वास कर सकें। अंततः, यह कदम एक न्यायपूर्ण और पारदर्शी समाज की ओर बढ़ने का एक प्रयास है।
इसके अलावा, न्यायपालिका की यह पहल अन्य सरकारी संस्थानों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत करती है, जिससे अन्य क्षेत्र भी पारदर्शिता की ओर कदम बढ़ा सकें।
ज्यादा जानकारी के लिए, haqiqatkyahai.com पर जाएं।
Keywords
judges asset disclosure, transparency in judiciary, public trust in courts, property declaration by judges, judicial integrity, justice system in India, legal transparency initiatives, increase public confidence in judiciaryWhat's Your Reaction?






