संजीव चतुर्वेदी: भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदारी की महाकवि

Krishna Bisht, Haldwani: भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार कोई नया विषय नहीं है। अंतर बस इतना है कि अधिकतर अधिकारी तंत्र की प्रवृत्तियों से समझौता कर लेते हैं, जबकि कुछ ही ऐसे होते हैं, जो पूरे सिस्टम को चुनौती देने का साहस दिखाते हैं। भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के वरिष्ठ अधिकारी संजीव चतुर्वेदी इस अपवाद … The post संजीव चतुर्वेदी–व्यवस्था के आईने में ईमानदारी की जंग appeared first on Round The Watch.

Sep 18, 2025 - 18:39
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संजीव चतुर्वेदी: भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदारी की महाकवि
संजीव चतुर्वेदी: भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदारी की महाकवि

संजीव चतुर्वेदी: भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदारी की महाकवि

कम शब्दों में कहें तो: भारतीय प्रशासनिक तंत्र में भ्रष्टाचार का मुकाबला करने वाले संजीव चतुर्वेदी जैसे अधिकारियों की ईमानदारी और साहस ने एक नई मिसाल पेश की है। उनकी कहानी न केवल प्रशासन के भीतर गहरी हलचल उठाती है, बल्कि यह समाज को भी सकारात्मकता का संकेत देती है।
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कृष्ण बिष्ट, हल्द्वानी: भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार एक पुराना मुद्दा रहा है। लेकिन संजीव चतुर्वेदी जैसे आईएफएस अधिकारियों की ईमानदारी ने इस मुद्दे पर एक नई रोशनी डाली है। वे न केवल सिस्टम को चुनौती देने के लिए साहस का परिचय देते हैं, बल्कि खुद को भी कई बार खतरे में डालते हैं।

तंत्र और ईमानदारी का टकराव

संजीव चतुर्वेदी ने अपने कार्यकाल में हरियाणा से लेकर AIIMS, नई दिल्ली और उत्तराखंड तक अनेक बार यह साबित किया है कि एक ईमानदार अधिकारी कैसे व्यवस्था में हलचल पैदा कर सकता है। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने वन विभाग की अनेक अनियमितताओं और AIIMS में भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर किया। ये सिर्फ वित्तीय अपराध नहीं थे, बल्कि सत्ता और नौकरशाही के भीतर गहरे गठजोड़ को झलकाते थे।

हालांकि, उनकी ईमानदारी की कीमत भी चुकानी पड़ी है। उन्हें बार-बार ट्रांसफर, निलंबन और अन्य प्रशासनिक दाओं-पेंचों का सामना करना पड़ा, जिससे यह साफ हो गया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने वाले अधिकारी अक्सर खुद भी सिस्टम की चपेट में आ जाते हैं।

अंतरराष्ट्रीय पहचान और उपेक्षा

वर्ष 2015 में उन्हें रैमॉन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि उनके साहस की वैश्विक पहचान थी। यह केवल उनके कार्यों की सराहना नहीं, बल्कि देश के भीतर कई बार उनका अपमान और उत्पीड़न भी झेलना पड़ा। जिस अधिकारी को एशिया का "नोबेल" प्राप्त हुआ, उसे अपने ही देश में उपेक्षा का शिकार होना पड़ा।

समाज सेवा का नया आयाम

संजीव चतुर्वेदी केवल एक बॉर्डर-क्रासिंग एक्टिविस्ट के रूप में नहीं, बल्कि समाजसेवा के प्रतीक के रूप में भी उभरे हैं। अपनी पुरस्कार राशि और क्षतिपूर्ति का दान कर उन्होंने कैंसर पीड़ितों से लेकर पुलवामा शहीदों की मदद की है। उनके लिए सेवा सिर्फ दफ्तर की चारदीवारी तक सीमित नहीं है, बल्कि वे समाज के हर स्तर पर योगदान देने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।

दिल्ली तक गूंजती घटनाएँ

उत्तराखंड में मसूरी वन प्रभाग में 7,375 सीमा स्तंभों का गायब होना और मुनस्यारी ईको-टूरिज्म परियोजना में 1.63 करोड़ रुपये का घोटाला जैसे मामले अचंभित करते हैं। यह केवल संयोग नहीं हैं। यह भ्रष्टाचार का सुराग देते हैं जिसमें सत्ता संरक्षण प्राप्त नेटवर्क ने प्रशासनिक संरचना को कमजोर कर दिया है। चतुर्वेदी ने इन मामलों को उजागर कर यह स्पष्ट किया कि उत्तराखंड जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भी भ्रष्टाचार कितनी गहराई में फैला हुआ है।

असल प्रश्न: कब मिलेगा जवाब?

यहां असली प्रश्न चतुर्वेदी के बारे में नहीं, बल्कि हमारी पूरी प्रणाली के बारे में हैं:

  • क्या हमारी प्रणाली ईमानदार अधिकारियों को संरक्षण दे सकती है?
  • क्या राजनीतिक दबाव और नौकरशाही के गठजोड़ को तोड़ा जा सकता है?
  • क्या पारदर्शिता सिर्फ एक नारा है, या फिर यह वास्तविक नीति में भी शामिल है?

आईने में सूरत संवारने का समय

संजीव चतुर्वेदी जैसे अधिकारी यह दिखाते हैं कि व्यवस्था को बदलना संभव है, लेकिन इसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है। उनके जीवन में होने वाले घटनाक्रम हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि यदि ईमानदारी ही अधिकतर सजा बन जाए, तो लोकतंत्र और समाज का भविष्य किस दिशा में जाएगा? अब समय आ गया है कि प्रशासन ईमानदारी का सम्मान करना बंद करे और ऐसे अधिकारियों को स्वतंत्र काम करने का आधार दें। अन्यथा, ईमानदारी केवल किताबों में एक आदर्श बनकर रह जाएगी, जबकि वास्तविकता में गायब हो जाएगी।

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Signed by: Anjali Verma, Team Haqiqat Kya Hai

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