ब्रेकिंग: धराली से 4000 मीटर की ऊंचाई पर वैज्ञानिकों को मिले तबाही के निशान

Rajkumar Dhiman, Dehradun: धराली में खीर गंगा के अपर कैचमेंट में 4000 मीटर की ऊंचाई पर वैज्ञानिकों को तबाही के निशान मिले हैं। जगह-जगह भारी मलबा बिखरा पड़ा है। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं किया जा सका है कि मलबा पुराना है या इस आपदा का। खैर, वैज्ञानिक अध्ययन कर वापस देहरादून लौट आए हैं। … The post ब्रेकिंग: धराली से 4000 मीटर की ऊंचाई पर वैज्ञानिकों को मिले तबाही के निशान appeared first on Round The Watch.

Aug 17, 2025 - 00:39
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ब्रेकिंग: धराली से 4000 मीटर की ऊंचाई पर वैज्ञानिकों को मिले तबाही के निशान

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Written by: Priya Sharma, Anjali Verma, Neha Gupta - Team haqiqatkyahai

वैज्ञानिकों की खोज का مقصد

राजकुमार धीमन, देहरादून: धराली स्थित खीर गंगा के अपर कैचमेंट में 4000 मीटर की ऊंचाई पर वैज्ञानिकों को तबाही के महत्त्वपूर्ण निशान मिले हैं। इस क्षेत्र में कई स्थानों पर भारी मलबा बिखरा पड़ा है, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यहाँ की स्थिति गंभीर हो सकती है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि यह मलबा पुराना है या हालिया आपदा का परिणाम है।

खीर गंगा की आपदा की जांच

वैज्ञानिकों के दो दलों ने इस आपदा की जड़ खोजने के लिए धराली का दौरा किया। एक दल का नेतृत्व उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक डॉ. शांतनु सरकार ने किया, जबकि दूसरे दल का नेतृत्व उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) के वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र सिंह राणा ने किया। दोनों दलों ने कठिन मौसम के बावजूद क्षेत्र का सर्वेक्षण किया और महत्वपूर्ण जानकारी इकट्ठा की।

मौसम की चुनौतियाँ

डॉ. शांतनु सरकार ने बताया कि पहले और दूसरे दिन मौसम की स्थिति ने सर्वेक्षण में रुकावट डाली, लेकिन तीसरे दिन मौसम स्पष्ट हुआ। इसके बाद, वैज्ञानिकों ने धराली और खीर गंगा के ऊपरी क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया। ऊपरी क्षेत्रों में काफी मलबे के निशान देखे गए, जबकि मौसम की वजह से 5000 मीटर और उससे अधिक ऊंचाई पर घने बादल बने रहे।

आपदा के विश्लेषण का तरीका

डॉ. राजेंद्र सिंह राणा के अनुसार, जानकारी एकत्र करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। इससे 4000 मीटर की ऊंचाई पर तस्वीरें ली गईं। वैज्ञानिकों ने पहले और बाद के सेटेलाइट चित्रों का उपयोग किया और विशेष साफ्टवेयर के जरिए वर्तमान स्थिति का आकलन किया। यह प्रक्रिया आवश्यक है ताकि आपदा के कारणों की पहचान हो सके।

संभव कारणों का आकलन

डॉ. शांतनु सरकार के मुताबिक, प्रारंभिक निष्कर्ष बताते हैं कि आपदा का कारण भारी वर्षा हो सकता है। बारिश के कारण मलबे वाले क्षेत्रों में पानी जमा हुआ, जो तेजी से निचले क्षेत्रों की ओर बढ़ा। यह स्थिति इतनी गंभीर थी कि मलबे और पानी का मिश्रण एक खतरनाक स्थिति उत्पन्न कर गया।

निष्कर्ष

धराली से मिले ये संकेत स्पष्ट करते हैं कि जलवायु परिवर्तन और असाधारण मौसम घटनाओं का प्रभाव पर्वतीय क्षेत्रों पर काफी गहरा है। वैज्ञानिकों की आगामी जांच और अध्ययन इस घटना के मूल कारणों को समझने में मदद करेंगे। हमें इस प्रकार की घटनाओं के लिए बेहतर तैयारी की आवश्यकता है ताकि भविष्य में होने वाली आपदाओं को रोका जा सके।

खैर, वैज्ञानिक अध्ययन कर वापस देहरादून लौट आए हैंं। हालाँकि, इन परिणामों को गंभीरता से लेना आवश्यक है ताकि हम आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें।

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