“जब कानून के रक्षक ही उत्पीड़क बन जाएं, तो न्यायपालिका ही आखिरी आशा बचती है” – हाईकोर्ट ने दिखाया विवेक, पर हल्द्वानी विजीलेंस का चरित्र गिरावट की हद तक नीचे

हाईकोर्ट ने आरोपी की पीड़ा को समझा, बच्चों और परिवार की दुर्दशा पर जताई चिंता, लेकिन दूसरी तरफ विजीलेंस हल्द्वानी का झूठ, अन्याय और अमानवीय चेहरा फिर हुआ बेनक़ाब

Mar 27, 2025 - 03:24
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“जब कानून के रक्षक ही उत्पीड़क बन जाएं, तो न्यायपालिका ही आखिरी आशा बचती है” – हाईकोर्ट ने दिखाया विवेक, पर हल्द्वानी विजीलेंस का चरित्र गिरावट की हद तक नीचे
हाईकोर्ट ने आरोपी की पीड़ा को समझा, बच्चों और परिवार की दुर्दशा पर जताई चिंता, लेकिन दूसरी तरफ विजीलेंस हल्द्वानी का झूठ, अन्याय और अमानवीय चेहरा फिर हुआ बेनक़ाब

उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चल रही भ्रष्टाचार की सुनवाई के दौरान न्याय का जो स्वरूप सामने आया, उसने यह सिद्ध कर दिया कि जब पूरी सरकारी मशीनरी झूठ, दबाव और गैर-कानूनी तरीके से निर्दोषों को फंसाने लगे, तो न्यायपालिका ही अंतिम आशा की लौ बनकर चमकती है। न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने सांति भंडारी बनाम राज्य मामले की सुनवाई में न सिर्फ जांच की खामियों पर प्रकाश डाला, बल्कि एक अत्यंत मानवीय प्रश्न उठाया – “किसी अभियुक्त के परिवार और बच्चों पर इस कार्रवाई का क्या प्रभाव पड़ेगा?” यह सवाल अपने आप में आज की कठोर सरकारी मशीनरी की असंवेदनशीलता पर एक तमाचा है।

कोर्ट ने गहराई से महसूस किया कि जब जांच अधूरी है, Trap की वीडियोग्राफी का कोई अंश प्रस्तुत नहीं किया गया है, FSL रिपोर्ट भी लंबित है, और कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं है, तो किस आधार पर किसी अधिकारी को अपराधी मान लिया जाए? इस तरह की गैरकानूनी जल्दबाज़ी विजीलेंस हल्द्वानी की वह पुरानी प्रवृत्ति है जो अब एक संगठित उत्पीड़न मशीन बन चुकी है। इस एजेंसी का व्यवहार न केवल संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है, बल्कि यह दर्शाता है कि उन्हें न मानवता की परवाह है, न ही कानून की।

IO विनोद यादव और Trap Leader ललिता पांडे, जो पहले ही अशोक कुमार मिश्रा केस में कोर्ट में झूठा हलफनामा दायर कर चुके हैं, फिर से इसी मामले में वही खेल खेलते पाए गए। जब कोर्ट में सवाल पूछा गया कि वीडियोग्राफी कहाँ है, तो IO विनोद यादव ने केवल "Sorry" कहकर बात टालने की कोशिश की। अदालत ने भले ही अपनी मर्यादा में उस ‘सॉरी’ को रिकॉर्ड पर नहीं लिया, लेकिन हक़ीक़तक्या है डंके की चोट पर कहता है — यह सॉरी नहीं, न्याय का उपहास है।

क्या यह मात्र "Sorry" कहने से माफ़ हो सकता है कि आप किसी ईमानदार महिला अधिकारी को बिना साक्ष्य जेल भेज दें? क्या कोर्ट को गुमराह करने, झूठा हलफनामा दाखिल करने और निर्दोष को मानसिक यातना देने का कोई मोल नहीं? विजीलेंस हल्द्वानी अब एक जांच एजेंसी नहीं, बल्कि बदले और सत्ता का हथियार बन चुकी है, जो “फँसाओ, बदनाम करो, मीडिया में प्रचारित करो और फिर कानूनी प्रक्रिया का मज़ाक बनाओ” नीति पर काम करती है।

इससे भी शर्मनाक बात यह है कि विजीलेंस हल्द्वानी ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से Trap कार्रवाई के विज्ञापन तक प्रकाशित करवा दिए। न्यायालय ने यह भी कहा – “किस SOP में लिखा है कि आप किसी को ट्रायल से पहले अपराधी घोषित कर सकते हैं?” यह सीधे-सीधे भारतीय संविधान के मूल सिद्धांत — ‘Innocent until proven guilty’ — की हत्या है। और इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि प्रेस के माध्यम से ऐसा प्रचार करके न केवल आरोपी की सामाजिक प्रतिष्ठा को बर्बाद किया जाता है, बल्कि उसके पूरे परिवार को मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ता है।

हम यह भी नहीं भूल सकते कि रेलवे विभाग के ईमानदार अधिकारी श्री बलूनी, जिन्हें विजीलेंस ने झूठे Trap केस में फँसाया था, उन्होंने अंततः आत्महत्या कर ली। यह घटना सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि एक संस्थागत हत्या है, जिसमें विजीलेंस की क्रूरता, झूठ और मनमानी ने एक जीवन लील लिया।

haqiqatkyahai.com यह साफ़ कहता है कि विजीलेंस हल्द्वानी अब जनता की सुरक्षा के लिए नहीं, राजनीतिक दवाब और आंकड़ों के खेल में काम कर रही है। उन्हें न कानून का डर है, न संविधान की गरिमा का ज्ञान। झूठी रिपोर्ट, मनगढ़ंत Trap, झूठे गवाह, मीडिया ट्रायल — यही इनकी पहचान बन चुकी है।

हक़ीक़तक्या है की मांगें:

  1. IO विनोद यादव और Trap Leader ललिता पांडे पर IPC की धारा 191, 193 के अंतर्गत झूठी गवाही और अदालत को गुमराह करने का केस दर्ज हो।

  2. विजीलेंस हल्द्वानी के सभी मामलों की स्वतंत्र न्यायिक जांच कराई जाए।

  3. Trap से पहले प्रेस विज्ञापन जारी करने की प्रवृत्ति को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए।

  4. मानवाधिकार आयोग एवं राष्ट्रीय महिला आयोग इस प्रकरण का स्वतः संज्ञान लें।

  5. बलूनी जैसी आत्महत्याओं की पुनः जांच हो और दोषियों पर हत्या का मुकदमा चले।

जब व्यवस्था न्याय की जगह डर का उपकरण बन जाए, तब पत्रकारिता को तलवार उठानी पड़ती है। हक़ीक़तक्या है संकल्प लेता है कि वह हर उस एजेंसी को बेनकाब करेगा जो न्याय नहीं, षड्यंत्र और सत्ता के दबाव में काम कर रही है।

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