कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई, दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के मामले में हाईकोर्ट सख्त

नैनीताल : दून घाटी की अधिसूचना 1989 को निष्क्रिय किए जाने के खिलाफ दायर जनहित The post कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई, दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के मामले में हाईकोर्ट सख्त first appeared on radhaswaminews.

Jun 28, 2025 - 09:39
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कांग्रेस प्रवक्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई, दून घाटी अधिसूचना 1989 निष्क्रिय करने के मामले में हाईकोर्ट सख्त
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नैनीताल: दून घाटी की अधिसूचना 1989 को निष्क्रिय किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर आज उत्तराखंड हाईकोर्ट में अहम सुनवाई की गई। यह सुनवाई कांग्रेस प्रवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर द्वारा दायर की गई याचिका पर हुई, जिसने हाईकोर्ट को केंद्र सरकार से स्पष्ट उत्तर प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।

संक्षिप्त संदर्भ

याचिका दायर करते हुए, थापर ने बताया कि केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने 13 मई 2025 को एक शासनादेश जारी किया था, जिसके माध्यम से 1989 की अधिसूचना को निष्क्रिय किया गया। इससे दून घाटी क्षेत्र में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की संभावना बनी है, जैसे कि स्लॉटर हाउस, क्रशर माइनिंग और अन्य रेड कैटेगरी की औद्योगिक इकाइयाँ। इस निर्णय को भारत सरकार के National Clean Air Programme (NCAP) के भी विपरीत बताते हुए याचिका में चिंता व्यक्त की गई है कि देहरादून जैसे शहरों की वायु गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

अदालत का निर्देश

हाईकोर्ट की खंडपीठ में मुख्य न्यायाधीश नरेंद्र और न्यायाधीश आलोक माहरा ने कहा कि दून घाटी से संबंधित सभी कार्य सुप्रीम कोर्ट के 30 अगस्त 1988 के निर्देशों के अनुसार ही करने चाहिए। इस निर्णय के बाद, याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिजय नेगी ने अदालत को अवगत कराया कि 1989 की अधिसूचना का निलंबन, जिस उद्देश्य से इसे लागू किया गया था, उसके विपरीत परिणाम उत्पन्न करेगा।

पर्यावरणीय संकट की चेतावनी

याचिका में कहा गया कि दून घाटी अधिसूचना का उद्देश्य मसूरी, डोईवाला, सहसपुर, ऋषिकेश और विकासनगर जैसे क्षेत्रों को अवैध खनन और प्रदूषण से बचाना था। लेकिन अब, अधिसूचना को निष्क्रिय कर इन क्षेत्रों को रेड जोन कैटेगरी के औद्योगिक विकास के लिए खोला जाना पर्यावरणीय संकट को बढ़ा सकता है।

याचिकाकर्ता का निर्णय

अभिनव थापर ने प्रधानमंत्री कार्यालय को दो बार ज्ञापन सौंपा था, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय ने उत्तराखंड वन विभाग से रिपोर्ट मांगने के बाद भी शासनादेश जारी कर दिया। थापर ने इस विषय पर कहा कि यह सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है, बल्कि 15 लाख लोगों के जीवन और उत्तराखंड की पारिस्थितिकी से जुड़ा मामला है।

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देशित किया है कि वे पर्यावरण मंत्रालय को इस अधिसूचना के निष्क्रिय होने से हुए नुकसान के प्रमाण प्रदान करें। मामले की अगली सुनवाई 27 जून को निर्धारित की गई है, जिससे उम्मीद है कि इस मुद्दे पर प्रमुख निर्णय संभव हो सकेगा।

निष्कर्ष

दून घाटी की अधिसूचना को निष्क्रिय करने का निर्णय अत्यंत गंभीरता से लिया जा रहा है। यह न केवल स्थानीय निवासियों के जीवन पर प्रभाव डाल सकता है, बल्कि उत्तराखंड की समग्र पर्यावरणीय स्थिति को भी खतरे में डाल सकता है। अब सभी की नजरें हाईकोर्ट की अगली सुनवाई पर हैं, जहां इस स्थिति का समाधान तलाशा जाएगा।

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