डीसीबी बैंक के आए होश ठिकाने, ब्रांच सील होने के बाद विधवा महिला का होम लोन किया शून्य
Amit Bhatt, Dehradun: ऋण देने के बाद निजी बैंक उसकी वसूली के लिए किस तरह खून चूसने पर आमादा हो जाते हैं, दून की चंद्रबनी निवासी विधवा महिला शिवानी गुप्ता का केस इस बात का जीता जागता उदाहरण है। सरकारी मशीनरी और रेगुलेटरी अथॉरिटी के नाकारेपन के कारण तमाम निजी वित्तीय संस्थाएं निरंतर रक्त पिपासू … The post डीसीबी बैंक के आए होश ठिकाने, ब्रांच सील होने के बाद विधवा महिला का होम लोन किया शून्य appeared first on Round The Watch.

डीसीबी बैंक के आए होश ठिकाने, ब्रांच सील होने के बाद विधवा महिला का होम लोन किया शून्य
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Amit Bhatt, Dehradun: ऋण देने के बाद निजी बैंक उसकी वसूली के लिए किस तरह खून चूसने पर आमादा हो जाते हैं, दून की चंद्रबनी निवासी विधवा महिला शिवानी गुप्ता का केस इस बात का जीता जागता उदाहरण है। सरकारी मशीनरी और रेगुलेटरी अथॉरिटी के नाकारेपन के कारण तमाम निजी वित्तीय संस्थाएं निरंतर रक्त पिपासू बनी रहती हैं। हालांकि, इसी मशीनरी में जिलाधिकारी सविन बंसल जैसे अफसर भी मौजूद हैं, जो खून चूसने वाले बैंकों और एनबीएफसी पर नकेल डाल रहे हैं। शिवानी गुप्ता के मामले में भी जिलाधिकारी बंसल न सिर्फ जनता के सच्चे रक्षक साबित हुए, बल्कि विधवा महिला शिवानी का मानसिक और आर्थिक शोषण करने वाले डीसीबी बैंक की राजपुर रोड स्थित शाखा को सील कर उसकी संपत्ति को कुर्क करने का आदेश जारी कर दिया।
विधवा महिला का संघर्ष
शिवानी गुप्ता ने जिलाधिकारी सविन बंसल की जनसुनवाई के दौरान पेश हुए अपने मामले में बताया कि उनके पति, रोहित गुप्ता की मृत्यु के बाद, बैंक ने कोई मदद नहीं की। रोहित ने भवन निर्माण के लिए डीसीबी बैंक से 15.5 लाख रुपए का ऋण लिया था, जिसे आइसीआइसीआइ लोंबार्ड से बीमा कराया गया था। बीमा की शर्तों के अनुसार, पति की मृत्यु के बाद ऋण का भुगतान शून्य होना चाहिए था।
जिलाधिकारी की कार्रवाई
बैंक द्वारा बीमा राशि का सेटेलमेंट ना करने पर शिवानी ने जिलाधिकारी से गुहार लगाई। जिलाधिकारी ने बैंक को ऋण की बीमा राशि का भुगतान करने का आदेश दिया। यदि आदेश का पालन नहीं होता है, तो बैंक की संपत्ति को कुर्क करने की चेतावनी दी गई थी। इसके बाद, नायब तहसीलदार और राजस्व विभाग के अधिकारियों ने बैंक की संपत्ति को कुर्क करने की प्रक्रिया शुरू की।
बैंक का जवाब
जिलाधिकारी के आक्रामक रुख और उनकी कार्यवाही से डीसीबी बैंक का प्रबंधन घुटनों पर आ गया। अधिकारी दौड़े-दौड़े शिवानी के पास पहुंचे और उनका ऋण शून्य कर दिया। इसके अलावा महिला को नो ड्यूज सर्टिफिकेट भी जारी किया गया। बैंक ने आश्वासन दिया कि एक सप्ताह के अंदर उनके घर के कागजात भी प्रदान कर दिए जाएंगे।
निजी बैंकों की संवेदनहीनता
डीसीबी बैंक का यह व्यवहार निजी बैंकिंग और वित्तीय सेक्टर की संवेदनहीनता को दर्शाता है। जिलाधिकारी सविन बंसल ने स्पष्ट किया कि वह आम जन के अधिकारों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। डीसीबी बैंक ने फिर से अपनी शाखा खोलने की गुहार लगाई लेकिन यह मामला उस संवेदनहीनता को उजागर करता है, जो आजकल के निजी बैंकों में देखने को मिलती है।
निष्कर्ष
इस मामले ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि नागरिक अपनी आवाज उठाते हैं और सरकारी अधिकारियों की मदद लेते हैं, तो वे केवल व्यक्तिगत समस्या का समाधान ही नहीं, बल्कि एक बेहतर भविष्य की दिशा में भी कदम बढ़ा सकते हैं। शिवानी गुप्ता का संघर्ष और जिलाधिकारी की सक्रियता ने एक बार फिर साबित किया है कि सही दिशा में उठाए गए कदम कितने प्रभावशाली हो सकते हैं।
हमारी रिपोर्ट यही साबित करती है कि सरकारी मशीनरी और जिम्मेदार लोग समाज के कमजोर तबके को सहारा देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यह घटना केवल एक महिला के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।
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