Bhagat Singh Death Anniversary: शहीद ए आजम भगत सिंह को 23 मार्च को दी गई थी फांसी, मौत को बताया था अपनी दुल्हन

भारत के वीर सपूतों ने 23 मार्च को देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया था। हर देश प्रेमी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाम तो हर कोई जानता है। आज ही के दिन यानी की 23 मार्च को भगत सिंह को फांसी दी गई थी। भगत सिंह को लाहौर षड़यंत्र के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। दरअसल, भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर 08 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर आजादी के नारे लगाए थे। इस दौरान भगत सिंह वहां से भागे नहीं बल्कि बम फेंकने के बाद उन्होंने खुद को गिरफ्तार करवा दिया और इस दौरान उनको दो साल की सजा हुई थी।जन्म और परिवारपाकिस्तान के लायलपुर जिले के बंगा में 27 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म हुआ था। उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसकी पांच पीढ़ियों में क्रांति की ज्वाला का उद्घोष किया था। भगत सिंह अपने चाचा अजीत सिंह से बहुत प्रभावित थे और उनके चाचा भी भारत की आजादी के आंदोलन में सक्रिय थे।इसे भी पढ़ें: Ram Manohar Lohia Birth Anniversary: समतामूलक समाजवादी समाज की स्थापना का सपना देखते थे राम मनोहर लोहियादो साल की कैदभगत सिंह जेल में करीब दो साल रहे और इस दौरान वह क्रांतिकारी लेख लिखा करते थे। इन लेखों में वह अपने विचारों को व्यक्त करते थे। भगत सिंह के लेखों में अंग्रेजी के अलावा पूंजीपतियों के नाम भी शामिल थे। पूंजीपतियों को भगत सिंह अपना और अपने देश को दुश्मन मानते थे। अपने एक लेख में भगत सिंह ने लिखा था कि मजदूरों का शोषण करने वाला उनका शत्रु है, फिर चाहे वह कोई भारतीय ही क्यों न हो।जेल में भी जारी था विरोधभगत सिंह बहुत बुद्धिमान थे और साथ ही कई भाषाओं के भी जानकार थे। उन्होंने अपना जीवन देश के नाम कुर्बान कर दिया था। भगत सिंह को हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, बांग्ला और उर्दू आती थी। वह भारतीय समाज में लिपि, जाति और धर्म के कारण आई दूरियों पर अपने लेखों में चिंता और दुख व्यक्त किया करते थे।मृत्युबता दें कि दो साल की कैद के बाद 24 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी दी जानी थी और उन्हीं के साथ सुखदेव और राजगुरु को भी फांसी होनी थी। लेकिन देश में उनकी फांसी को लेकर लोग काफी भड़क गए थे। भारतीयों का आक्रोश और विरोध देखकर अंग्रेज सरकार काफी डर गई थी। ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत को लग रहा था कि फांसी वाले दिन भारतीयों का आक्रोश फूट पड़ा तो माहौल बिगड़ सकता है। इसलिए भगत सिंह को तय समय और डेट से 11 घंटे पहले 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।

Mar 23, 2025 - 09:39
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Bhagat Singh Death Anniversary: शहीद ए आजम भगत सिंह को 23 मार्च को दी गई थी फांसी, मौत को बताया था अपनी दुल्हन
Bhagat Singh Death Anniversary: शहीद ए आजम भगत सिंह को 23 मार्च को दी गई थी फांसी, मौत को बताया था अपनी दुल्हन

Bhagat Singh Death Anniversary: शहीद ए आजम भगत सिंह को 23 मार्च को दी गई थी फांसी, मौत को बताया था अपनी दुल्हन

Haqiqat Kya Hai - यह लेख भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भगत सिंह की शहादत की 92वीं वर्षगांठ पर आधारित है। आज हम उनके बलिदान और अमर कथाओं को समर्पित कर रहे हैं। इस आलेख को नित्या शर्मा और पूजा देसाई द्वारा लिखा गया है, टीम नेटानागरी।

भगत सिंह का जीवन और उनकी शहादत

भगत सिंह 28 सितंबर 1907 को पंजाब में जन्मे थे। उनका जीवन केवल 23 वर्ष का था, लेकिन उन्होंने अपने कार्यों और विचारों से इतिहास के पन्नों में अपने नाम को अमर कर दिया। भगत सिंह ने आज़ादी की लड़ाई में अपनी भूमिका निभाने के दौरान कई साहसिक कदम उठाए और उन्होंने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगाकर अपने शहीद होने का संकल्प लिया। उन्होंने 23 मार्च 1931 को अपने दोस्तों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दी गई थी।

मौत को दुल्हन समझने का महत्व

भगत सिंह ने अपनी फांसी से पहले कहा, "मौत की सबसे खूबसूरत बात है कि यह मेरी दुल्हन है।" इस वाक्य का गहरा अर्थ है, जिसमें उन्होंने ईमानदारी और साहस के साथ अपने विचारों के लिए बलिदान देने की इच्छा व्यक्त की। वे मानते थे कि आज़ादी की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देना सर्वोच्च सम्मान है। उनके इस दृष्टिकोण ने युवाओं को प्रेरित किया और आगे बढ़ने का साहस दिया।

भगत सिंह के विचार और प्रभाव

भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी ही नहीं थे, बल्कि वे एक विचारक और समाज सुधारक भी थे। उनके विचारों में समानता, स्वतंत्रता, और सामाजिक न्याय की महत्वपूर्ण बातें शामिल थीं। उन्होंने युवा पीढ़ी को हमेशा अपने हक के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। उन्हें अपने समय का सबसे बुद्धिमान और आगे की सोच रखने वाला नेता माना जाता है।

निष्कर्ष: भगत सिंह का अमर योगदान

भगत सिंह का जीवन और उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उनकी सोच के प्रति प्रतिबद्धता और बलिदान आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है। आज उनकी जयंती पर, हमें उन्हें न केवल याद करना चाहिए, बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने का भी प्रयास करना चाहिए। उनका बलिदान कभी नहीं भुलाया जाएगा।

इस अवसर पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके सिद्धांतों और विचारों को आगे बढ़ाने का काम करेंगे और हमारे देश को एक और प्रगतिशील दिशा में ले जाने का प्रयास करेंगे।

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