जाति जनगणना विभाजन का नहीं, विकास का आधार बने

पहलगाम की क्रूर एवं बर्बर आतंकी घटना के बाद मोदी सरकार लगातार पाकिस्तान को करारा जबाव देने की तैयारी के अति जटिल एवं संवेदनशील दौर में एकाएक जातिगत जनगणना कराने का निर्णय लेकर न विपक्षी दलों को बल्कि समूचे देश को चौकाया एवं चमत्कृत किया है। सरकार का यह निर्णय जितना बड़ा है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी। मोदी सरकार का जातिगत जनगणना के लिए तैयार होना सुखद और स्वागतयोग्य है। पिछले कुछ समय से जातिगत जनगणना की मांग बहुत जोर-शोर से हो रही थी। कुछ राज्यों में तो भाजपा भी ऐसी जनगणना के पक्ष में दिखी थी, पर केंद्र सरकार का रुख इस पर बहुत साफ नहीं हो रहा था। अब अचानक ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में राजनीतिक मामलों की उच्चस्तरीय कैबिनेट समिति की बैठक में यह फैसला ले लिया गया। बाद में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को बताया कि आगामी जनगणना में जातिगत गणना भी शामिल रहेगी। यह कदम जहां देश के राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों को बदलेगा, वही सामाजिक असमानताओं को दूर करने और वंचित समुदायों के उत्थान के लिए लक्षित नीतियों को लागू करने में मील का पत्थर साबित होगा। जातिगत जनगणना 1931 यानी अखंड भारत में अंग्रेजी सत्ता ने कराई थी। भारत में जनगणना की शुरुआत अंग्रेजी हुकूमत के दौर में, सन 1872 में हुई थी और 1931 तक हुई हर जनगणना में जाति से जुड़ी जानकारी को भी दर्ज किया गया। आजादी के बाद सन् 1951 में जब पहली बार जनगणना कराई गई, तो तय हुआ कि अब जाति से जुड़े आंकड़े नहीं जुटाए जाएंगे। स्वतंत्र भारत में हुई जनगणनाओं में केवल अनुसूचित जाति और जनजाति से जुड़े डेटा को ही पब्लिश किया गया। 2011 में मनमोहन सरकार ने जातिवार जनगणना कराई अवश्य, लेकिन उसमें इतनी जटिलताएं एवं विसंगतियां मिलीं कि उसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए। इसके बाद कुछ राज्यों ने जातियों की गिनती करने के लिए सर्वे कराए, क्योंकि जनगणना कराने का अधिकार केवल केंद्र को ही है। हालांकि भाजपा ने बिहार में जाति आधारित सर्वे का समर्थन किया, लेकिन जातिगत जनगणना को लेकर वह मुखर नहीं रही। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अवश्य इसका समर्थन किया। लेकिन अब एकाएक भाजपा को जातिगत जनगणना करना अपने हित में दिखाई दिया क्योंकि अपनी नीतियों एवं योजनाओं के बल पर भाजपा ने पिछड़ी जातियों और दलितों की गोलबंदी कर सत्ता का सफर आसान बनाया है।इसे भी पढ़ें: जाति जनगणना को लेकर PM Modi की चिराग पासवान ने की जमकर तारीफ, कांग्रेस और राहुल गांधी पर बरसेजातिगत जनगणना का भारतीय राजनीति और समाज-व्यवस्था पर व्यापक एवं दूरगामी प्रभाव पडेगा। कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय दल इसकी पुरजोर मांग करने में लगे हुए थे। सबसे ज्यादा जोर राहुल गांधी दे रहे थे, जबकि नेहरू से लेकर नरसिंह राव तक ने इसकी जरूरत नहीं समझी। यह तय है कि जातिगत जनगणना कराने के फैसले पर जहां कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दल इसका श्रेय लेना चाहेंगे, वहीं भाजपा इसे सामाजिक न्याय एवं समता-संतुलित समाज-निर्माण केंद्रित अपनी पहल बताएगी। जाति आधारित जनगणना सामाजिक न्याय में सहायक बनेगी या नहीं, लेकिन इससे जातिवादी राजनीति के नए दरवाजे खुलेंगे एवं आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर राजनीति की धूरी बनेगा। कांग्रेस एवं विपक्षी दलों ने अपने संकीर्ण एवं स्वार्थी राजनीतिक नजरिये से यह मांग इसलिए उठाई थी ताकि इस आधार पर आगे आरक्षण के मुद्दे को गर्माया जा सके और जातीय गोलबंदी कर चुनावी फायदा लिया जा सके। लेकिन भाजपा-सरकार ने जाति जनगणना का ऐलान कर इस मुद्दे को अपनी पाली में ले लिया है। भले ही इसके आंकड़े आने के बाद आबादी के अनुपात में आरक्षण की मांग से भाजपा कैसे निपटेगी, यह बड़ी चुनौती उसके सामने है। वैसे भी इस तरह की पहल जिन राज्यों में हुई है, वहां भी इसे लेकर विवाद चल रहा है। ऐसे विवाद भाजपा के लिये एक नयी चुनौती बनेंगे। जाति आधारित जनगणना से भारतीय समाज के नये कोने-अंतरे-चुनौतियां सामने आयेगी। लेकिन जातिगत जनगणना के समर्थकों का मानना है कि यह सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। जनगणना में दलितों और आदिवासियों की संख्या तो गिनी जाती है और उन्हें राजनीतिक आरक्षण भी मिला हुआ है लेकिन पिछड़ी और अति पिछड़ी (ओबीसी और ईबीसी) जातियों के कितने लोग देश में हैं इसकी गिनती नहीं होती है। जनगणना एक बहुत बड़ी कवायद है और अगर इसमें जातिगत गणना को भी शामिल किया जा रहा है, तो काम और भी सावधानी एवं सतर्कता से करना होगा। हजारों जातियां हैं और उनकी हजारों उप-जातियां हैं। सबको अलग-अलग गिनने के लिए देश को अपनी डिजिटल शक्ति का उपयोग करना पड़ेगा। निश्चित ही नयी राजनीतिक एवं नीतिगत स्थितियां समस्याएं खड़ी होगी। अब सभी जातियों की गिनती होगी। यह गिनती मुस्लिम, ईसाई और अन्य समुदायों में भी होनी चाहिए, क्योंकि कोई दावा कुछ भी करे, जाति और उसके आधार पर विभेद सब जगह है। इससे भी ज्यादा आवश्यक, बल्कि अनिवार्य यह है कि जातिगत जनगणना जातिवाद की राजनीति का हथियार न बने और वह भारतीय समाज को विभाजित न करने पाए। इस अंदेशे को दूर करने के कुछ ठोस उपाय होने ही चाहिए कि जाति आधारित जनगणना जातीय विभाजन का कारण न बनने पाए। यह अंदेशा इसलिए है, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि कई राजनीतिक दल खुले रूप से जाति की राजनीति करते हैं। माना जाता है कि देश की आबादी में 52 फ़ीसदी लोग पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति के हैं। ओबीसी समुदाय के नेताओं का मानना है कि इस हिसाब से उनकी राजनीतिक हिस्सेदारी काफ़ी कम है। राजनीतिक दल इन समुदायों का समर्थन हासिल करने के लिए जाति जनगणना का समर्थन कर रहे हैं। भारत में जाति जनगणना आजादी के बाद रुकी, पर अब सामाजिक न्याय, नीतिगत सुधार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। पारदर्शिता और सावधानी से किया गया यह कदम समावेशी विकास का आधार बन सकता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जाति आधारित जनगणना को एक समतामूलक समाज निर्माण के दृष्टिकोण से समर्थन देने के संक

May 2, 2025 - 18:39
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जाति जनगणना विभाजन का नहीं, विकास का आधार बने
जाति जनगणना विभाजन का नहीं, विकास का आधार बने

जाति जनगणना विभाजन का नहीं, विकास का आधार बने

Haqiqat Kya Hai

लेखक: दृष्टि शर्मा, टीम नीतानागरी

परिचय

भारत में जाति जनगणना एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों में हलचल है। जाति जनगणना को विभाजनकारी मानने के बजाय इसे विकास का आधार बनाने की आवश्यकता है। इस लेख में, हम इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं और इसके संभावित लाभों पर चर्चा करेंगे।

जाति जनगणना की आवश्यकता

जाति जनगणना का प्रमुख उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों की सही पहचान करना है। इससे सरकारी योजनाओं और नीतियों को उन लोगों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी जिनकी स्थिति को सुधारने की सबसे अधिक आवश्यकता है। यदि हम जातियों की संख्या और उनकी आर्थिक स्थिति का आकलन करें, तो हम समाज के विकास में अधिक प्रभावशाली तरीके से योगदान कर सकेंगे।

विभाजन का डर

कई लोग यह मानते हैं कि जाति जनगणना विभाजन का कारण बनेगी। हालांकि, यदि हम सही दृष्टिकोण अपनाएं, तो यह हमारे समाज में संतुलन और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह आवश्यक है कि हम जाति को केवल एक पहचान के रूप में न देखें, बल्कि इसे विकास के उपकरण के रूप में उपयोग करें।

आर्थिक विकास की दिशा

जाति जनगणना के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि कौन से समुदाय आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। इसकी मदद से सरकार उन समुदायों को विशेष ध्यान दे पाएगी जिन्हें विकास की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, यदि हमें पता चलता है कि एक विशेष जाति के लोग शिक्षा या रोजगार के मामले में पीछे हैं, तो उन पर विशेष नीतियाँ बनाई जा सकती हैं।

सरकारी योजनाओं में सुधार

जाति जनगणना से मिली जानकारी का उपयोग करके सरकारी योजनाओं को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। यदि सरकार यह समझती है कि किस जाति के लोग किस क्षेत्र में अधिक हैं, तो वह स्थानीय स्तर पर उन लोगों के विकास हेतु उचित कार्यक्रम चला सकेगी।

निष्कर्ष

जाति जनगणना को एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि विभाजनकारिता के दृष्टिकोण से। हमें इसे विकास का आधार बनाने के लिए एक मंच के रूप में उपयोग करना चाहिए। यह समय है जब हम अपनी संकीर्ण सोच को छोड़कर व्यापक दृष्टिकोण अपनाएं। एक सर्वांगीण विकास की दिशा में जाति जनगणना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।

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