गडकरी की तरह बाकी नेता भी 'जात की बात करने वालों को लात कब मारेंगे' ?

बेबाक अंदाज में अपनी बात कहने के लिए मशहूर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक बार फिर से जातिवाद को लेकर बड़ा बयान दे दिया है। देश में जाति, धर्म और भाषा के नाम पर मचे राजनीतिक बवाल के बीच नितिन गडकरी ने अपने ताजा बयान से सबको आईना दिखाने की कोशिश की है।केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नागपुर स्थित ‘सेंट्रल इंडिया ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस’ में आयोजित दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए एक बार फिर से जाति की बात करने वालों को कसके लात मारने की बात कही है। गडकरी ने जोर देते हुए कहा कि, "किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, भाषा या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।" उन्होंने आगे कहा, "जो करेगा जात की बात, उसको कसके मारूंगा लात’’। इसे भी पढ़ें: Prabhasakshi NewsRoom: Nitin Gadkari ने फिर किया ऐलान- जो करेगा जात की बात, उसको कसके मारूंगा लातइस देश की राजनीति की विडंबना देखिए कि, यहां अब शायद ही कोई ऐसा राजनीतिक दल बचा है जो चुनावी रणनीति बनाते समय जातिगत समीकरण को ध्यान में ना रखता हो। हालात इतने भयावह हो चुके हैं कि उम्मीदवारों को टिकट देते समय भी सबसे ज्यादा ख्याल क्षेत्र के जातिगत समीकरणों का ही रखा जाता है। यह हालत सिर्फ सांसदों या विधायकों के चुनाव में ही दिखाई नहीं देता है बल्कि वार्ड मेंबर से लेकर पंचायत चुनाव तक राजनीतिक दल जातीय समीकरण और गणित का ध्यान रखते हुए ही उम्मीदवार तय करते हैं। राहुल गांधी, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव सहित अन्य कई विपक्षी दलों के नेता बार-बार जाति जनगणना का राग अलाप रहे हैं। जाति आधारित जनगणना कई राज्यों में राजनीति और चुनाव का बड़ा मुद्दा बन चुका है और आने वाले दिनों में कई राज्यों में इसी मसले पर विधानसभा का चुनाव भी होने जा रहा है। देश के राजनीतिक दलों ने जातिवाद का बीज इतने गहरे तक बो दिया है कि उम्मीदवारों की लिस्ट तो छोड़िए, अब पार्टी पदाधिकारियों की घोषणा करते समय भी उनकी जाति खासतौर से बताई जाने लगी है। देश के राजनीतिक दल बड़े ही गर्व से यह बताते नजर आते हैं कि उन्होंने किस जाति के कितने नेताओं को पार्टी की राष्ट्रीय टीम में जगह दी है।ऐसे माहौल में नितिन गडकरी जैसे बड़े कद के नेता का बार-बार जातिवाद के खिलाफ बयान देना अपने आप में एक बड़ा और महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश माना जा सकता है। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल तो यही उठ रहा है कि सड़कों के निर्माण के मामले में सदन के अंदर से लेकर बाहर तक नितिन गडकरी के कामकाज की तारीफ करने वाले केंद्रीय मंत्री, सांसद, मुख्यमंत्री, विधायक, एमएलसी, मेयर, पार्षद, मुखिया और अन्य जनप्रतिनिधि क्या गडकरी की सलाह मानेंगे? क्या इस देश के तमाम जनप्रतिनिधियों में इतनी हिम्मत है कि वे भी गडकरी की तरह जाति की बात करने वाले लोगों को कस के लात मारने की बात सार्वजनिक तौर पर खुले मंच से कह पाए? शायद नहीं, क्योंकि जब जाति का राग अलापने से सबको फायदा हो रहा है तो फिर बिल्ली के गले मे घंटी कौन बांधना चाहेगा? जातिवाद का यह जहर, देश को अंदर से खोखला करता जा रहा है। लेकिन क्या इसके लिए सिर्फ देश के नेता ही जिम्मेदार है? बिल्कुल नहीं, जाति देखकर वोट करने वाले मतदाता भी इसके लिए उतने ही जिम्मेदार है। वास्तव में, जब तक देश की जनता जातिवाद से बाहर निकल कर जातियों की राजनीति करने वाले नेताओं और राजनीतिक दलों को सबक सिखाना शुरू नहीं करेगी , तब तक भारत की जनता को इस जहर से छुटकारा नहीं मिलने जा रहा है।-संतोष पाठक(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)

Mar 18, 2025 - 12:39
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गडकरी की तरह बाकी नेता भी 'जात की बात करने वालों को लात कब मारेंगे' ?
गडकरी की तरह बाकी नेता भी 'जात की बात करने वालों को लात कब मारेंगे' ?

गडकरी की तरह बाकी नेता भी 'जात की बात करने वालों को लात कब मारेंगे' ?

Haqiqat Kya Hai

लेखिका: सुषमा माथुर, टीम नेटानागरी

परिचय

हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने जातिवाद पर अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब नेता जात की बात करने वालों को लात मारें। यह बयान न केवल उनके लिए, बल्कि समस्त राजनीतिज्ञों के लिए एक संकेत है कि समाज में सामंजस्य और एकता की आवश्यकता है। लेकिन क्या अन्य नेता भी इसी तरह की सोच अपनाएंगे?

गडकरी का जातिवाद के खिलाफ स्टैंड

गडकरी ने यह बयान ऐसे समय में दिया जब देश में जातिवाद का मुद्दा फिर से चर्चा में है। उन्होंने कहा कि जब हम जाति के नाम पर वोट मांगते हैं, तो विकास की राजनीति कैसे हो सकती है? उनका यह विचार विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह भाजपा जैसी पार्टी के प्रमुख नेताओं में से एक हैं।

अन्य नेताओं की चुप्पी

गडकरी की इस प्रतिक्रिया के बाद कई राजनीतिक नेताओं ने मौन धारण किया है। क्यूंकि जातिवाद उनकी चुनावी राजनीति का केंद्र बना हुआ है, ऐसे में उन्हें अपने बयानों में सावधानी बरतने की आवश्यकता महसूस होती है। अगर अन्य नेता भी गडकरी के रास्ते पर चलते हैं, तो इससे न केवल राजनीति बदलेगी, बल्कि समाज में एक सकारात्मक बदलाव भी आएगा।

जातिवाद और भारतीय समाज

भारत में जातिवाद का मुद्दा कभी खत्म नहीं हुआ है। यह एक ऐसा रोग है जो न केवल सामाजिक समरसता को बाधित करता है, बल्कि आर्थिक विकास को भी प्रभावित करता है। ऐसे में नेताओं का यह कर्तव्य है कि वे जातिवाद को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

विश्लेषण और निष्कर्ष

गडकरी के बयान को एक नई दिशा देने वाले कदम के रूप में देखा जा सकता है। अगर अन्य नेता भी इसी तरह की सोच का पालन करते हैं, तो इससे भारत में जातिवाद के खिलाफ एक सशक्त प्लेटफॉर्म का निर्माण होगा। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम सभी एकजुट होकर इस मुद्दे के खिलाफ उठ खड़े हों और समाज में एक नई सोच का संचार करें।

भावी दिशा

इस भर्त्सना से यह स्पष्ट होता है कि भारत के भविष्य में जातिवाद को खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। अगर नेता इस दिशा में फ्रंटफुट पर आकर काम करें, तो उस दिन की कल्पना करना सरल होगा जब भारत स्वाभाविक रूप से जातिवाद से मुक्त होगा।

तो प्रश्न यह है कि क्या अन्य नेता गडकरी की तरह जमीनी हकीकत के खिलाफ आवाज उठाएंगे या फिर मौन रहेंगे? यह एक ऐसा सवाल है जो केवल समय ही बताएगा।

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