क्रांतिकारी कैदी की आजादी की चाह में समुंदर में छलांग, PM मोदी की मार्सिले विजिट और इसका सावरकर कनेक्शन क्या है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तीन दिवसीय फ्रांस यात्रा के आखिरी चरण में मार्सिले जाएंगे। पीएम मोदी प्रथम विश्व युद्ध में लड़ते हुए शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ मजारगुएस युद्ध कब्रिस्तान जाएंगे। मार्सिले यात्रा को पेरिस के बाहर प्रमुख सहयोगियों के साथ राजनयिक शिखर सम्मेलन आयोजित करने के लिए भी डिज़ाइन किया गया है, जैसे पिछले साल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें जयपुर ले गए थे। प्रधानमंत्री मोदी और मैक्रों मार्सिले में भारत के नवीनतम महावाणिज्य दूतावास का उद्घाटन करेंगे।इसे भी पढ़ें: हमारे सिख धर्मगुरुओं...फ्रांस में PM मोदी के सामने ये क्या हो गया, 2 मिनट के वीडियो के आखिरी 10 सेकेंड देख रह जाएंगे हैरानहालाँकि, इस बंदरगाह शहर का भारत के स्वतंत्रता संग्राम से एक महत्वपूर्ण संबंध है। प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर या वीर सावरकर ने 8 जुलाई, 1910 को भागने का साहसपूर्ण प्रयास किया, जब उन्हें परीक्षण के लिए ब्रिटिश जहाज मोरिया पर भारत ले जाया जा रहा था। जैक्सन केस से मिले सुराग से ब्रिटिश पुलिस सावरकर के दरवाजे तक पहुंच गई। तब सावरकर लंदन में कानून पढ़ रहे थ। पुलिस ने 13 मार्च 1910 को उन्हें लंदन रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया. सुनवाई हुई। मजिस्ट्रेट ने उन्हें ब्रिटेन से बंबई भेजने का आदेश दिया। 1 जुलाई 1910 को सावरकर इसी सफर पर रवाना होने के लिए ब्रिटिश जहाज एस एस मोरिया पर सवार हुए। 8 जुलाई 1910 की सुबह उन्होंने पहरेदारी में खड़े सिपाहियों से शौच जाने की अनुमति मांगी. सावरकर को शौचालय में बंदकर दरवाजे पर दो सिपाही खड़े हो गए। इसी बीच सावरकर ने पोर्ट होल का शीशा तोड़कर मुक्ति की उत्कट अभिलाषा लिए समु्द्र में छलांग लगा दी। सावरकर को जैसे ही मार्सिले शहर दिखा। वे पैर-हाथ जोर जोर से चलाने लगे। अंततः फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा पकड़े जाने से पहले भाग गया और फिर जहाज पर अंग्रेजों को सौंप दिया गया। सावरकर के भागने के प्रयास से फ्रांस और ब्रिटेन के बीच राजनयिक तनाव पैदा हो गया। इसे भी पढ़ें: टेक्नोलॉजी नौकरी नहीं लेती, PM मोदी बोले- AI से नई नौकरियों के अवसर पैदा होंगेफ्रांस ने आरोप लगाया कि स्वतंत्रता सेनानी की वापसी ने अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया, क्योंकि उचित प्रत्यर्पण प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था। वे पैर-हाथ जोर जोर से चलाने लगे। अंततः फ्रांसीसी अधिकारियों द्वारा पकड़े जाने से पहले भाग गया और फिर जहाज पर अंग्रेजों को सौंप दिया गया। सावरकर के भागने के प्रयास से फ्रांस और ब्रिटेन के बीच राजनयिक तनाव पैदा हो गया। Stay updated with International News in Hindi on Prabhasakshi

क्रांतिकारी कैदी की आजादी की चाह में समुंदर में छलांग, PM मोदी की मार्सिले विजिट और इसका सावरकर कनेक्शन क्या है?
Haqiqat Kya Hai
भारत के इतिहास में कई ऐसे क्षण आते हैं जो राष्ट्रीय एकता और विदेशी जमीनों पर स्वतंत्रता की चाह को दर्शाते हैं। हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मार्सिले यात्रा ने कई सवाल उठाए हैं, जिनमें प्रमुख है कि इसका सावरकर से क्या संबंध है। इस यात्रा से जुड़े एक प्रमुख घटनाक्रम ने समुंदर में एक क्रांतिकारी कैदी की आजादी की चाह को दर्शाया।
PM मोदी की मार्सिले यात्रा: एक महत्वाकांक्षी कदम
प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में फ्रांस के मार्सिले का दौरा किया, जहां उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने की कोशिशें कीं। इस यात्रा को केवल एक आधिकारिक यात्रा न मानकर, इसे एक ऐतिहासिक पहल के रूप में देखा जा रहा है। मोदी ने उन भारतीयों को याद किया जो स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान हुए।
क्रांतिकारी कैदी का समुंदर में छलांग: एक साहसिक प्रयास
मार्सिले में आयोजित कार्यक्रमों के दौरान, एक युवा क्रांतिकारी कैदी ने अपनी आज़ादी के लिए समुंदर में छलांग लगाने का साहसिक कदम उठाया। यह घटना न केवल व्यक्तिगत आज़ादी की चाह को दर्शाती है, बल्कि यह उन मूल्यों को भी उजागर करती है जिनके लिए हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया। यह कदम युवाओं में साहस और प्रेरणा का संचार करता है।
सावरकर कनेक्शन
वीर सावरकर का नाम आम तौर पर स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। उनकी विचारधारा और कार्यों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नया दृष्टिकोण दिया। प्रधानमंत्री मोदी की मार्सिले यात्रा में सावरकर के विचारों का जिक्र निश्चित रूप से इस यात्रा के पीछे छिपे उद्देश्य को दर्शाता है। सावरकर ने हमेशा स्वाधीनता के लिए कठोर कदम उठाने की प्रेरणा दी।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मार्सिले यात्रा और क्रांतिकारी कैदी की समुंदर में छलांग ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। यह हम सभी को याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि इसका एक संघर्ष भी है। हमें अपने पूर्वजों की कुर्बानियों को भूला नहीं चाहिए। इस यात्रा ने यह भी दिखाया कि आज़ादी की चाह हमेशा जीवित रहती है, और हमें इसे आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।
अंत में, यह कहना समीचीन होगा कि इस यात्रा ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की है और यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने देश की सही तस्वीर को समझें। हाँ, सावरकर के कनेक्शन ने इस कहानी को और भी रोमांचक बना दिया है।
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